जोगी जी गोरखपुर में आये तो उन्हें गोरखपुर से शर्म आयी या नहीं?
BY Suryakant Pathak13 Aug 2017 1:13 PM GMT

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Suryakant Pathak13 Aug 2017 1:13 PM GMT
गोरखपुर की घटना पर लिखना नहीं चाहता था। गोरखपुर के उस बी आर डी मेडिकल कॉलेज से मेरी व्यक्तिगत पीड़ा जुडी है। आज से छः साल पहले उसी मेडिकल कॉलेज में मैं भी एक दिन अपनी गोद में अपने नवजात बेटे का शव ले कर तड़प रहा था। फिर भी शुक्रगुजार ही रहता हूँ उस अस्पताल का, कि गोरखपुर के दो बड़े नर्सिंग होम द्वारा आधे घण्टे में दस दस हजार ले ले कर रेफर कर देने के बाद उसी ने हमें सहारा दिया था। गोरखपुर में जिस तरह साठ से अधिक बच्चे मरे, वह कितना दुखद है यह मुझसे ज्यादा कौन जानेगा?
सरकार कह रही है कि वे ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरे, इंसेफ्लाइटिस से मरे। मैं पूछता हूँ, वे इंसेफ्लाइटिस से ही क्यों मरे? गोरखपुर में पिछले दस साल से हर अगस्त में मरने वाले बच्चों की असली संख्या चार अंक में होती है। पर इस बार तो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री उसी शहर का है, इस बार भी यह सूरत क्यों नहीं बदली। क्या जोगी नहीं जानते थे कि फिर अगस्त आएगा, फिर इंसेफ्लाइटिस जानलेवा बनेगी, और बच्चे मरेंगे? जोगी को तो मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले इसी तरफ ध्यान देना चाहिए था, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में इससे ज्यादा संवेदनशील मुद्दा कोई है। फिर आखिर कहां सोये रह गए वे।
इस देश में कैसी स्वास्थ्य व्यवस्था है जो एक शहर में लगातार बीस साल से एक महामारी फैलती है, पर स्वास्थ्य विभाग कुछ नहीं कर पाता?
ऑक्सीजन देने वाली कम्पनी कह रही है कि मेरे 67 लाख बाकि थे, सो हमने सेवा बन्द कर दी। जिस देश में खरबों रूपये बिना वजह की सब्सिडी बांटी जाती हो, हर साल भोट लूटने के अरबों रुपये फूंक दिए जाते हों, उस देश में एक बड़े अस्पताल की यह दशा है कि जरूरी सुबिधायें भी उपलब्ध नहीं, यह कैसी व्यवस्था है? हमने कैसा देश बनाया है जहां स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं?
कोई कुछ भी कहे, मैं सीधा मानता हूँ कि सारा दोष योगी जी का है। वे गोरखपुर के सांसद रहे हैं, वे इस विभीषिका के बारे में खूब जानते हैं, फिर भी वे इस तरफ से निश्चिन्त कैसे रहे? अगर व्यवस्था को पूर्ववत ही रखना था, तो हमने अखिलेश और मायावती का विरोध कर आपका समर्थन क्यों किया था। मारने का काम तो वे भी आपसे ज्यादा खूबसूरती से कर लेते थे।
मैं उनसे नैतिकता के नाम पर इस्तीफा नहीं मांग सकता, क्योंकि भारत की राजनीति से नैतिकता ने अटल बिहारी बाजपेयी के साथ ही सन्यास ले लिया था। पर इतना जानता हूँ कि यदि उन मृत बच्चों के अपराधी दण्डित नहीं हुए, तो जनता उनको बहुत बेइज्जत कर के निकालेगी।
लोग जोगी को लगातार गालियां दे रहे हैं, गाली के उन स्वरों में एक स्वर मेरा भी है। पर मेरी पीड़ा सिर्फ उन साठ बच्चों के लिए ही नहीं है, मेरी पीड़ा अपने बेटे के साथ उन असंख्य बच्चों के लिए है, जो सिर्फ इस लिए मर जाते हैं क्योंकि उनके शहर में स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं है। और ये सुविधाएं सिर्फ इस कारण नहीं हैं, क्योंकि सरकार स्वास्थ्य के हिस्से का भी सारा पैसा लोगों को लुभाने के लिए खर्च करती है। छोटे शहरों के लोगों के स्वास्थ्य की चिंता किसी को भी नहीं।
कल असित कुमार मिश्र ने लिखा था-" श्रधांजलि इस व्यवस्था को।" मैं इस व्यवस्था को श्रद्धांजलि भी नहीं दूंगा।
परसों बलिया में सरेआम एक लड़की को मार देने वाले हत्यारे का प्रधान पिता जब कोर्ट में हाजिर होने हँस कर एक विजेता की तरह हाथ हिलाते हुए जा रहा था, तो मुझे लगा वह इस व्यवस्था पर पेशाब कर रहा है। जिस व्यवस्था पर रसूखदार लोग कभी भी पेशाब कर देते हों, उस व्यवस्था को मैं श्रद्धांजलि भी नहीं दूंगा। मैं थूकता हूँ उस व्यवस्था पर।
मुझे जोगी जी से बस इतना पूछना है, कि आज जब जोगी जी गोरखपुर में आये तो उन्हें गोरखपुर से शर्म आयी या नहीं? या मुख्यमंत्री बनते हीं वे इसे भी पी गये?
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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