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राखी के कच्चे धागों से रिश्ता है पुराना, जानें शुभ मुहूर्त और पवित्र मंत्र
BY Suryakant Pathak7 Aug 2017 2:30 AM GMT

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Suryakant Pathak7 Aug 2017 2:30 AM GMT
रक्षाबंधन पर आपको 'हिन्दुस्तान परिवार' की ओर से अनंत शुभकामनाएं। रक्षाबंधन का जिक्र स्कंधपुराण, पद्मपुराण, भविष्यपुराण और भगवद्गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि पहला रक्षासूत्र लक्ष्मी ने सावन मास की पूर्णिमा को राजा बलि की कलाई पर बांधा था। यही कारण है कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
मंत्र
येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
मायने
-जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे (राखी), तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना।
-भविष्यपुराण के मुताबिक प्राचीन काल में जब देवों और असुरों में युद्ध चल रहा था, तब गुरु बृहस्पति ने इसी मंत्र के उच्चारण के साथ इंद्र की कलाई पर विशेष रक्षासूत्र बांधा था और वह विजयी रहे थे।
-कहते हैं, प्राचीनकाल में जब राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरे कर स्वर्ग का सिंहासन छीनने का प्रयास किया तो देवताओं की मदद के लिए विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। वह राजा बलि के पास पहुंचे और भिक्षा मांगी। बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। विष्णु ने पहले पग में आकाश, दूसरे में धरती और तीसरे में पाताल नापकर बलि को रसातल भेज दिया। रसातल में बलि ने कड़ी तपस्या कर विष्णु से दिन-रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया। जब लक्ष्मी को इसकी जानकारी हुई तो वह राजा बलि के पास गईं और उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया। वह उपहार में विष्णु को साथ ले आईं।
-पुराणों में लिखा है कि जब कृष्णा ने शिशुपाल के वध के लिए सुदर्शन चक्र चलाया तो उनकी उंगली चोटिल हो गई। उंगली से खून बहता देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उस पर बांधी। इसके बाद कृष्ण ने वचन दिया कि वह द्रौपदी की इज्जत की रक्षा करेंगे। चीर हरण के दौरान उन्होंने इसका पालन किया।
-इतिहास में जिक्र है कि 16वीं सदी में जब रानी कर्णावती को गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण करने की सूचना मिली तो खुद को युद्ध लड़ने में असमर्थ देख उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूं ने भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ की रक्षा करने पहुंचे।
-एक अन्य प्रसंग के अनुसार 326 ईसा पूर्व में सिंकदर की पत्नी रोक्साना ने कटोत्च राजा पुरु को राखी बांधकर भाई बनाया और युद्ध में पति को नहीं मारने का वचन लिया। पुरु ने सिकंदर से युद्ध के दौरान कलाई पर राखी बांधे रखी। साथ ही दुश्मन सेना पर बढ़त के बावजूद सिकंदर को जीवनदान दिया।
-1905 में बंगाल विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम आबादी को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकजुट रखने के लिए रबींद्रनाथ टैगोर ने रक्षाबंधन के त्योहार का सहारा लिया था। उन्होंने लोगों से एक-दूसरे की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हुए सांप्रदायिक हिंसों से दूर रहने की अपील की थी।
-रक्षासूत्र सिर्फ बहन की रक्षा का संकल्प नहीं, बल्कि इसे यश, शक्ति, दीर्घायु और शत्रु पर विजय दिलाने में भी सक्षम माना जाता है। पुराणों में जिक्र है कि प्राचीनकाल में दानवों को युद्ध में हावी होता देख इंद्र घबरा गए। वह मदद के लिए गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। तब वहां मौजूद इंद्राणी ने विशेष शक्तियों से लैस रक्षासूत्र तैयार किया। गुरु बृहस्पित ने यह रक्षासूत्र इंद्र की कलाई पर बांधा, जिसके बाद उनकी सेना असुरों पर विजयी साबित हुई।
मुहूर्त
-सुबह 11.04 बजे से दोपहर 1.50 बजे के बीच
-यूं तो पूर्णिमा तिथि 6 अगस्त रात 10.28 बजे से शुरू हो जाएगी, लेकिन उस वक्त भद्राकाल होगा, जो 7 अगस्त की सुबह 11.04 बजे तक व्याप्त रहेगा।
-7 अगस्त को रात 10.52 बजे से चंद्र ग्रहण लगेगा, जो 12.49 बजे समाप्त होगा। ग्रहण का सूतक काल 7 अगस्त को दोपहर 1.50 बजे से शुरू हो जाएगा।
-शास्त्रों के मुताबिक भद्राकाल और सूतक में राखी बांधने से भाई का अहित होता है। ऐसे में 7 अगस्त को सुबह 11.04 बजे भद्राकाल के अंत के बाद और दोपहर 1.50 बजे सूतक की शुरुआत से पहले राखी बांध लें।
-कहते हैं कि शूर्पणखा ने भद्रा में भाई रावण को राखी बांधी थी, जिससे उसका विनाश हो गया। हालांकि यदि आपको किसी मजबूरी के चलते भद्राकाल में ही राखी बांधनी हो तो भद्रा-मुख को छोड़कर भद्रा-पुच्छ काल का चयन कीजिए।
काल : समय (7 अगस्त को)
-भद्रा पूंछ : सुबह 6.40 से 07:55 बजे तक
-भद्रा मुख : सुबह 7.55 से 10.01 बजे तक
-भद्रा का अंत : सुबह 11.04 बजे
राखी का सफर
-रक्षाबंधन पर पहले कलावा या कच्चा सूत बांधने की परंपरा था। बाद में रेशम के धागों, सोने-चांदी के तारों और नग-धातु से बनी डिजाइनर राखियां बांधने का चलन जोर पकड़ने लगा।
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