क्या विधान परिषद के रास्ते ही सदन में जाएंगे योगी और केशव
BY Suryakant Pathak6 Aug 2017 1:21 AM GMT

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Suryakant Pathak6 Aug 2017 1:21 AM GMT
विधान परिषद में सपा के एक के बाद एक सदस्य के इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामने और बसपा के भी एक एमएलसी द्वारा सदन और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने से राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी क्या विधान परिषद के रास्ते विधानमंडल के सदस्य बनेंगे?
सपा की डॉ. सरोजनी अग्रवाल के विधान परिषद से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के साथ परिषद में पांच सीटें खाली हो गई हैं। इनमें चार विधानसभा कोटे की अर्थात विधायकों से चुनी जाने वाली हैं और एक स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र यानी ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य व प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्षों के अलावा स्थानीय निकाय के सदस्य व अध्यक्षों के वोट से चुनी जाने वाली है।
19 सितंबर तक सदस्यता जरूरी
भाजपा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री स्वतंत्र देव सिंह तथा राज्यमंत्री मोहसिन रजा के लिए विधानमंडल के किसी सदन (विधानसभा या विधान परिषद) की सदस्यता चाहिए।
योगी और केशव इस समय सांसद हैं, पर विधानमंडल के सदस्य नहीं हैं। शेष तीनों लोग न तो सांसद हैं और विधानमंडल के ही सदस्य हैं।
सदन की सदस्यता के लिए ये है नियम
नियमानुसार, इन सबको 19 सितंबर से पहले विधानमंडल के किसी न किसी सदन की सदस्यता ग्रहण करनी है। भाजपा के इन पांच लोगों को सदन की सदस्यता चाहिए और परिषद में पांच सीटें खाली हो चुकी हैं।
हालांकि भाजपा के सूत्र तर्क देते हैं कि इनमें से किसी को स्थानीय प्राधिकारी कोटे की सीट से नहीं लड़ाया जाएगा। इसलिए आश्चर्य नहीं कि जल्द ही कोई और भी विधान परिषद की सीट से इस्तीफा देकर भाजपा की राह आसान बना दे।
योगी व केशव लड़ना चाहते हैं विधानसभा चुनाव
जानकारी के मुताबिक, भाजपा का एक धड़ा योगी व केशव की जननेता की पहचान बरकरार रखने के लिए विधानसभा चुनाव के जरिये ही इन्हें सदन में भेजने का पक्षधर है। बताया जाता है कि योगी और केशव ने भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने भी यह इच्छा रख दी है कि उन्हें विधानसभा चुनाव ही लड़ाया जाए।
पर, पार्टी के रणनीतिकार फिलहाल चुनावी राजनीति में उलझने की जगह परिषद के जरिए सदन में जाने को उपयुक्त मान रहे हैं। इससे योगी और केशव के त्यागपत्र से रिक्त होने वाली लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीट पर पूरा फोकस करके भाजपा चुनाव लड़ सकेगी। कारण, ये सीटें भाजपा के लिए काफी प्रतिष्ठापूर्ण हैं।
कम से कम 30 दिनों की है जरूरत
मुख्यमंत्री, दोनों उप मुख्यमंत्री और दोनों राज्य मंत्रियों को सदन की सदस्यता के लिए अब 45 दिन ही बचे हैं। निर्वाचन आयोग की व्यवस्था के अनुसार, विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से लेकर मतदान तक कम से कम 30 दिन चाहिए।
जाहिर है कि भाजपा अगर योगी और केशव को विधानसभा का ही चुनाव लड़ाना चाहेगी तो भी दो-चार दिन में ही किसी विधायक का सदन की सदस्यता से त्यागपत्र हो पाएगा। हालांकि इसकी उम्मीद कम ही लगती है।
विधानसभा की सिकंदरा सीट खाली, पर लड़ने की उम्मीद कम
वैसे कानपुर देहात के सिकंदरा से भाजपा विधायक मथुरा प्रसाद पाल के निधन से यह सीट खाली हो चुकी है। चर्चा भी है कि यहां से योगी या स्वतंत्र देव को लड़ाया जा सकता है, पर भाजपा के सूत्र इसकी पुष्टि नहीं करते।
इनका तर्क है कि पाल की सीट पर उन्हीं के परिवार या उस वर्ग से संबंधित किसी अन्य कार्यकर्ता को लड़ाया जाएगा ताकि कानपुर से लेकर कन्नौज और आगरा के बीच बड़ी संख्या में मौजूद पाल बिरादरी के बीच भाजपा का संदेश सकारात्मक बना रहे।
हालांकि अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्तर से ही होगा। लेकिन प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव मौर्य, उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल के बीच मंत्रणा हुई है।
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