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उत्तर प्रदेश

बनारस के चाय की एक दुकान पर सुबह-सुबह कुछ दोस्तों के बीच की चर्चा....

बनारस के चाय की एक दुकान पर सुबह-सुबह कुछ दोस्तों के बीच की चर्चा....
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मुन्ना गुरु : "का गुरु ! कहाँ चल देहला ?"
अ'सहाय' : "कत्तो नाहीं गुरु ! बस चनुआ-सट्टी ले ।"
मुन्ना गुरु : "त का चनुआ-सट्टी कत्तो ना पड़ेला ?"
अमित जुझारू : "अरे नाहीं गुरु ! एन्करे कहय क मतलब ई हौ, कि ई जाइल त कत्तौ ना चाहत रहलन, लेकिन मेहरारू ठेल के चनुआ-सट्टी भेज देहलस।"
अ'सहाय' : "त तोहूँ ठेलवावय क इन्तेजाम काहे ना कै लेता छिनरौ कै। काहे के रणुआ बईठल हउवा ?"
अमित 'जुझारू' : " कहलीं त बाऊ से, कि बियाह करावा। त कहै लगलन कि कउनो बऊरहट बाप त खोजीं पहिले, जे तोहसे आपन बिटिया बियाहय । दिन भर लंठन के साथ चौराहा पे खड़ा होयके अड्डाबाजी करबा, त तोहरे मेहरारू बच्चा के का तोहार बाप खिअइहन ?"
परकास : "त पुछला काहे ना अपने बाऊ से ! कि ओनकर बियहवा कईसे होय गयल ? तोहार नन्ना भी बउरहै रहलन का ?"
सनिच्चर : "अरे त सब क नन्ना तोहरे नन्ना मतिन थोड़ो होइहन ।"
परकास : "तूँ त चुप्पै रहा बुजरौ कै। सुपवा बोलै त बोलै, चलनियौ बोलै, जे के खुदै बहत्तर छेद !"
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