मीडिया के एंकरो! तुम्हें राजनीति का घंटा ज्ञान नहीं है
BY Suryakant Pathak28 July 2017 6:14 AM GMT

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Suryakant Pathak28 July 2017 6:14 AM GMT
राजनीति की समझ मुझमें नहीं है। ये बात मुझे पता है, आपको पता नहीं है। मैं सिर्फ तुक्के फेंकता हूँ, और उनमें से कुछ लड़ जाते हैं, कुछ नहीं। आपको भी पता है कि आप भी वही करते हैं। बस आप हमारे एंकरों की तरह ये मानते नहीं कि आपको भी राजनीति की समझ नहीं है। आप वही हैं ना जो डिमोनेटाइज़ेशन के बाद यूपी में भाजपा की हार देख रहे थे? आप वही हैं ना जो भाजपा की मोदी लहर को बिहार लीलते देख रहे थे! आप वही हैं ना जो लालू की वापसी के बारे में मज़े लेकर कहते थे कि पगला गए हो क्या, लालू इज़ डन?
इसी अनभिज्ञता और अज्ञानता के बल पर मैंने बिहार वाले 'राजनैतिक भूचाल' पर बहुत ज्यादा नहीं लिखा। मैंने सिर्फ मज़े लिए, लिखा नहीं। विडियो में भी कुछ ख़ास नहीं था। जो हुआ वो क्यों हुआ, ये सबको पता है। जो होगा वो भी सबको पता है। लेकिन ज्ञान बाँटकर, जो हो गया वो कैसे हो गया के चक्कर में लोग बहुत पीछे जा-जा कर तर्क कर रहे हैं।
आपको अभी जो भी कुछ बोलता नज़र आएगा वो सब पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है। इन एंकरों की शक्लें देखो। कोई ऐसे कर रहा है जैसे बाप का बियाह हो रहा हो दोबारा, तो कोई ऐसे कर रहा है जैसे बाप मर गया। कौन सा कौन है ये आपको पता है। अब सब राजनीति में आदर्शवादिता खोज रहे हैं। अब रवीश कुमार वैसे ही ये सवाल पूछ रहे हैं कि 'जनादेश का सम्मान हुआ क्या', जैसे स्टीफ़न कोल्बेयर हर रात ये कहकर हँसता है कि ट्रम्प तो पॉपुलर वोट में पीछे था। ये दोनों ये बात नहीं कहते कि संविधान के, कानून के, और चुनाव आयोग के हिसाब से नीतीश ने जो किया वो भी सही है, और ट्रम्प का एलेक्टोरल कॉलेज से राष्ट्रपति बनना भी।
रवीश जी से ये पूछना था कि लालू के साथ का नीतीश क्यों और कैसे बेहतर है? किस आँकड़े पर आपने उसे जनादेश का सरकार माना? जबकि भाजपा का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा था बिहार में। क्या भाजपा के वोटरों का जनादेश, जनादेश नहीं होता? या फिर जनता क्या चाहती है वो एक स्टूडियो में बैठा वो एंकर तय करेगा जो कि अपने मालिक की करोड़ों के हेरफेर की जाँच को प्रेस की स्वतंत्रता के हनन से जोड़ देता है? इस एंकर के तो तर्क ही वक्र हैं, वो सही बात करेगा भी तो कैसे? ये एंकर तो इसी मैक्सिम से चलता है कि आँकड़े को अगर बहुत ज्यादा टॉर्चर करो तो उससे कुछ भी क़बूल कराया जा सकता है।
मोदी जीते तो कहेंगे कि देश की 31% आबादी ने ही उसको वोट दिया, 69% तो उसके ख़िलाफ़ है। नीतीश पाला बदल कर कहीं और चला जाय तो फिर कोई और आँकड़ा ले आएँगे कि नीतीश को वोट तो लालू के साथ होने पर मिला था। तो ऐसा है राजदीप जी, रवीश जी, और बाकी ज्ञानी लोगों, कि आपलोग संविधान में संशोधन कराइए कि अगर गठबंधन पहले से ही घोषित हो, तो उसके घटक दल चुनाव के बाद किसी दूसरे गठबंधन के साथ नहीं जुड़ सकते। जब तक ऐसा नहीं है, और जब तक आपके पास ये आँकड़ा ना आ जाय कि ऐसा पहली बार हुआ है सत्रह-अठरह सालों में, ये हवाबाज़ी बंद कीजिए स्टूडियो में बैठकर।
मुझे ऐसे जानकार मूर्खों से बहुत ज्यादा घिन आती है जो जानता सबकुछ है लेकिन अपने ज्ञान का प्रयोग उल्टा काम करने में लगाता है। ये लोग सचिन की औसत की तुलना कालिस से करेंगे, स्ट्राइक रेट की अफ़रीदी से, सेकेंड इनिंग के रनों की द्रविड़ से, कप्तानी की गांगुली से और कह देंगे कि सचिन तो इन सबसे हीन है। ये एंकर लोग यही करते हैं।
इनको किसी को भी राजनीति की कोई समझ नहीं है। इनके सारे एक्ज़िट पोल हमेशा गलत होते हैं, और जब सही भी होते हैं तो वो एक तुक्का भर है। इनको राजनीति की समझ होती तो ये लालू-नीतीश को बेहतर विकल्प बनाकर रोते नहीं कि लोकतंत्र की हत्या हो गई। अरे लोकतंत्र की हत्या तो उसी दिन हो गई जब लालू यादव चुनावों के प्रचार में घूम रहा था। लोकतंत्र की हत्या तभी हो गई थी जब हर पार्टी के आधे से अधिक नेताओं पर भ्रष्टाचार, हत्या और अपहरण के मामले होने के बावजूद हमारा संविधान उन्हें चुनाव लड़ने की आज़ादी देता है।
आप इतने मासूम हैं कि आप ये कह देंगे कि नीतीश ने जनादेश का सम्मान नहीं किया और लोग मान लेंगे!भाजपा के विधायक चुनकर नहीं, मनोनीत होकर आए थे बिहार विधानसभा में, इसीलिए ये जनादेश का सम्मान नहीं है। आप इतने भोले हैं कि आपको ये अंकगणित समझ में नहीं आता है कि जो हो रहा है, वो क्यों हो रहा है।
मैं राजनीति की समझ नहीं रखता, लेकिन मीडिया की रखता हूँ। आप अपने मालिकों की गोद में खेलना बंद कीजिए, फिर ये बताइएगा कि कौन किसकी गोद में है।
अजीत भारती
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