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काफी दिनों बाद तेवर में दिखे नेताजी, कांग्रेस को बताया सबसे बड़ा सियासी दुश्मन
BY Suryakant Pathak26 July 2017 3:11 PM GMT

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Suryakant Pathak26 July 2017 3:11 PM GMT
लगभग 10 महीने बाद मुलायम सिंह यादव पूरे तेवर में दिखे. बुधवार सुबह मुलायम सिंह यादव ने संसद के पार्टी कार्यालय में सांसदों की बैठक बुलाई. बैठक में राज्य सभा और लोक सभा के सभी सांसदों को बुलाया गया था. एक्शन में आये "नेताजी" ने सांसदों से क्षेत्र में जाकर 2019 के लोक सभा चुनाव की तैयारी में जुट जाने का आदेश दिया.
पिछले साल समाजवादी कुनबे में मचे घमासान के बाद ये पहली बार है जब मुलायम सिंह ने पार्टी के संसद सदस्यों की बैठक बुलाई. मुलायम ने बैठक में सांसदों की जमकर क्लास ली. कई सांसदों से उनके क्षेत्र के बारे में पूछा और कुछ को क्षेत्र के लोगों की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान देने की हिदायत दी. कांग्रेस से नेताजी की पुरानी अदावत है, लिहाजा बैठक में कांग्रेस को सबसे बड़ा सियासी दुश्मन भी बताया. हालांकि उनके बेटे अखिलेश ने न सिर्फ विधानसभा का चुनाव कांग्रेस से मिलकर लड़ा बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन बनाने में अखिलेश यादव हामी भरी.
बैठक में सभी सांसदों को बुलाया गया था, लेकिन पार्टी के बड़े नेता नदारद ही रहे. परिवार में तल्ख़ी अब भी बरक़रार है, क्योंकि न तो समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव और न ही उनके बेटे और लोक सभा सांसद अक्षय यादव बैठक में शामिल हुए. दूसरे बड़े नेता नरेश अग्रवाल ने भी बैठक में आना मुनासिब नहीं समझा. मुलायम की बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव भी बैठक में हिस्सा लेने नहीं पहुंची. पार्टी के एक अन्य सांसद अमर सिंह भी मीटिंग में नहीं पहुंचे. कभी मुलायम के खास और पार्टी में झगड़े की वजह बने अमर की मुलायम से बातचीत फिलहाल बंद हैं. परिवार से भतीजे धर्मेंद्र यादव बैठक में ज़रूर मौजूद रहे.
मुलायम पार्टी के संरक्षक हैं और उनके छोटे भाई शिवपाल यादव मांग करते रहे हैं कि पार्टी अध्यक्ष का पद अखिलेश को मुलायम सिंह को तुरंत वापस कर देना चाहिए.
बैठक में शामिल एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ लोग परिवार में सुलह कराने की कोशिश भी कर रहे हैं . ये कोशिश अभी शुरुआती स्तर पर ही है. अर्से से पार्टी की गतिविधियों से दूर रहे मुलायम की पार्टी सांसदों के साथ बैठक एक सकारात्मक कदम है. नेताजी अब पार्टी के काम में रुचि लेने लगे हैं और पार्टी के नेता इसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों मानते हैं. सकारात्मक इसलिए क्योंकि पार्टी के एक बड़े परंपरागत वोट बैंक पर मुलायम का अब भी प्रभाव है और उनके अनुभव से पार्टी को फायदा मिल सकता है.
मुलायम के दोबारा सक्रिय होने से पार्टी में उनका दखल बढ़ेगा और इससे नया संघर्ष भी शुरू हो सकता है. अब मुलायम सिंह के सामने न सिर्फ परिवार को एक करने की चुनौती है बल्कि उन्हें अपना खोया वोट बैंक वापस पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी होगी.
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