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बुद्ध-आनंद संवाद: बंग्लोर में हिन्दी पर कालिख पुताई

बुद्ध-आनंद संवाद: बंग्लोर में हिन्दी पर कालिख पुताई
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आनंद हाफ पैंट पहन कर दौड़ रहा था और बुद्ध कान में एयरपॉड लगाए पद्मासन में लेविटेट करते हुए जा रहे थे। किसी Praveen Jha नामक प्राणी के हैशटैग दस हज़ार क़दम के चक्कर में आनंद खुद तो दौड़ ही रहा था, तथागत को भी कन्विन्स कर चुका था।

"ऐ महराज! थोड़ा स्लो चलिये! आप तो योगविद्या से फ्लोट कर रहे हैं, हम यहाँ पछड़ रहे हैं," आनंद ने पीछे छूटते हुए आवाज़ दी।

"बोले थे ना, ई झा जी सबके चक्कर में मत पड़ो। ऊ तो राज्यसभा चला जाएगा तुम यहाँ पैडोमीटर में दस हज़ार क़दम गिनते रहना। झा जी सबसे बच कर रहो। साँप और झा जी दिखें तो..."

"तो कुछ मत कीजिए! आप बुद्ध हैं, आप यही सब पूर्वाग्रह लेकर चलेंगे तो कैसे होगा?" आनंद ने बग़ल वालों का ख़्याल करते हुए तथागत को रोका।

"अरे हम थोड़े बोल रहे हैं, दीवार पर कहीं लिखा हुआ देखे थे। वैसे भी हम कौन सा संसद में बोल रहे हैं। इतना लोड मत लिया करो। दौड़ते रहो," बुद्ध ने स्पीड बढ़ाते हुए कहा।

"दीवार से याद आया, ये बंग्लौर वाले पगला गए हैं क्या? आपने सुना हिन्दी जहाँ भी लिखी हुई है उसको कालिख से, काले स्प्रे आदि से पोत रहे हैं। इतनी क्रिएटिविटी कहाँ से लाते हैं ये लोग?"

"सुना तो था ही, सुबह ही व्हाट्सएप्प पर किसी राष्ट्रवादी व्यक्ति का विडियो भी आया था। इनका हाल ग़ज़ब का है। हिन्दी की पुताई से पहले तो अंग्रेज़ी की पुताई होनी चाहिए थी। ये विचित्र बात है कि जिन अंग्रेज़ों ने दो सौ साल तक ग़ुलाम बनाए रखा, समाज को पीछे ढकेल दिया, सब लूट कर ले गए, इनकी भाषा स्वीकार्य है, लेकिन अपने ही देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा से समस्या है। इज़रायल वाले हिब्रू में माइक्रोसॉफ़्ट वालों से कोडिंग कराते हैं, और यहाँ अपनी भाषाओं पर कालिख पोत रहे हैं!

"मुझे ये समझ में नहीं आता कि बोर्ड पर लिखी हिन्दी से कर्नाटक का या कन्नड़ का क्या नुक़सान है? क्या कर्नाटक को अलग देश का दर्जा दे दिया जाय? या बंग्लौर में हिन्दी भाषियों को आने पर रोक लगा दी जाय? अपनी भाषा का सम्मान सबको करना चाहिए, लेकिन हिन्दी मुर्दाबाद करने से क्या हो जाएगा? अंग्रेज़ों की चाटुकारिता में लगे रहो, अंग्रेज़ी बोलकर स्टेटस बढ़ा हुआ महसूस करो, लेकिन हिन्दी शब्दों को पोस्टर पर देखने से ही कन्नड़ का अपमान हो रहा है! बंग्लोर वालों से ये आशा नहीं थी," बुद्ध ने अपनी बात कही।

"परंतु तात्! हम हिन्दी क्यों थोप रहे हैं वहाँ?" आनंद ने फॉलोअप क्वेश्चन दागा।

"ये किसने कहा कि थोपा जा रहा है? बोर्ड पर हिन्दी थोपने के लिए नहीं होती। वो उनके लिए है जो वहाँ दूसरी जगहों से आए हैं और उन्हें कन्नड़ या अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं है। आँकड़ों की बात करें तो अंग्रेज़ी का ज्ञान देश की दस प्रतिशत जनता को भी नहीं। कर्नाटक में, खासकर बंग्लोर में उत्तर भारत के लोग ना सिर्फ सॉफ़्टवेयर प्रोग्रामिंग में हैं बल्कि फल से लेकर सब्ज़ी तक बेचते हैं। वहाँ लोग घूमने भी जाते हैं। कर्नाटक में कई मंदिर हैं, दार्शनिक स्थल हैं। यहाँ के पर्यटन स्थल को कर्नाटक से बाहर के लोग भी आते हैं।

"अगर हिन्दी को बोर्ड पर लिखने भर से कन्नड़ लोगों को हिन्दी पढ़ने की इच्छा जगती है तब तो मैं कहूँगा कि दुनिया की तमाम भाषाएँ बोर्ड पर लिखवा दी जानी चाहिए ताकि कर्नाटक के लोग बोर्ड से ही भाषाएँ सीख लें! बोर्ड पर लिखी हिन्दी को कन्नड़ पहचान पर हमला मानना वैसा ही तर्क है जैसा ये कहना कि मिनी स्कर्ट में जाती लड़की अपनी शीलहरण का आमंत्रण देती है।" बुद्ध ने अपनी बात ख़त्म की।

"सही कह रहे हैं आप। अंग्रेज़ी से दिक़्क़त नहीं, जिसने तुम्हारी पहचान मिटाने की हर संभव कोशिश की। तुम्हारे राजाओं को मारा, तुम्हारे धर्म पर हमला किया, किताबों को जलाया लेकिन बोर्ड पर लिखी हिन्दी से उस पहचान पर आक्रमण हो रहा है। जरूर इनके पास अलग डिक्शनरी होगी, और बेहतरीन स्कूलों में पढ़ते होंगे," आनंद ने समझ का परिचय दिया।

"मेरा तो दस हज़ार हो गया, आपका कितना हुआ?" आनंद ने अपने पैडोमीटर देखते हुए पूछा।

"यही दिक़्क़त है। तुम्हारी कोशिश और तुम्हारा ध्यान इस बात पर है कि दस हज़ार हो जाएँ। तुमको चलने से मतलब नहीं, दस हज़ार तक पहुँचने से है। व्यायाम में सिर्फ शारीरिक कोशिश ही नहीं, मानसिक स्थिति भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दिमाग़ खुला रख कर दौड़ो, एप्प को जेब में रहने दो। तब दस हज़ार नहीं होने पर भी दस हज़ार का फल मिलेगा।"

"आप एकदम दिमाग़ खोल देते हैं। ग़ज़ब ज्ञानी हैं आप। आप हर रोज़ फिर दस हज़ार क़दम ऐसे ही अपडेट मार देते हैं? मतलब आपका हर रोज़ दस हज़ार से बस दस-बीस क़दम ही ज्यादा रहता है। आपको पता चल जाता है?" आनंद ने आश्चर्य से पूछा।

"नो ब्रो! आई नो फोटोशॉप। जस्ट चिल एन्ड कीप रनिंग। हेल या!" बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा।


अजीत भारती
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