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उत्तर प्रदेश

पता नहीं पढ़े-लिखे किसान कब होंगे भारत में जो और भी गर्व के साथ कहा सकेंगे कि हाँ हम किसान है और हमारा भारत कृषि प्रधान देश है।

पता नहीं पढ़े-लिखे किसान कब होंगे भारत में जो और भी गर्व के साथ कहा सकेंगे कि हाँ हम किसान है और हमारा भारत कृषि प्रधान देश है।
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अभी मैं खेत में उतर कर हल का बूटा पकड़े बरद सब को दो राउंड घुमाया ही था कि इतने में बड़े पापा के बड़े बेटे मने कि मेरे बड़े भैया आ गए जो मेरे घर में कमिया का काम कर रहे है, आ के सीधा मेरे हाथ से हल छीनते हुए बोले.. "अरे कौन लगाया हमरे भाय को हल जोतने!?.. हांय! ? .. अरे तुम लोग कम पड़ गए या हम कम पड़ गए जो हमरे इंजीनियर भाई को बूटा पकड़ा दीये?? .. बेचारा आया है कितना दिन में घर आराम करने और इहाँ हार(हल) जोतने में लगा दिया ई बेचारे को.. ए बाबू! जो बाहर जो.. हमनी हैं न हार-फार करे खातिर.. जाओ खेत के बाहर जाओ.. हमलोग कर लेंगे!!"
कौड़ी करने भी गया तो वहाँ भी कौड़ी छीन लिए!! .. लास्ट में केवल बिहिन छींटने दिए खेत में वो भी बड़ी मुश्किल से।

पिछली बार जब सोहराय (दीवाली) में घर गया था तो एक फोटो भी अपलोड किया रहा ढेंकी कूटते हुए.. आधा चावल कूटा ही था इतने में फिर वही भैया आ गए और फिर मुझे वहाँ से भी हटा दिए और लगे भौजी और मैया को डाँटने.. " काहे हमर भइवा को लगा दिए ढेंकी कूटने में !?? .. ओह हो ओह हो हम नाय रहो हिये ने तो हमर इंजीनियर बाबू के खटाय के मोराय देबथिन एखनी.. ई ढेंकी कुटेगा!? ई ढेंकी कूटने लायक है!? .. यही रह गया इसका काम!? इसलिए ये पढ़ा-लिखा है??.. बेचारा परब मनाने आया है और ढेंकी कुटने में लगा दिया!!? .. ओह हो!.. हमर इंजीनियर भईवा के कुछो ख्याल है कि नहीं तुमलोगों को!!? .. बेचारा बाबू हमर.. जो जो बाबू हम कूट लेंगे.. हमरे रहते तुमको कोनो काम करने की जरूरत नहीं है!.. जो!"
मैं झल्लाया "क्या दादा!.. मैं जब भी कुछ काम करने को जाता तो आप रोक काहे देते है!?.. बीच काम में से काम छुड़वा देते है! .. अरे यही काम आज से दस बरस पहले नहीं करते थे तो आप ही डांटते थे और खूब डाँटते थे.. तरह-तरह के ताने मारते थे.. और इतना ताना मारते थे कि हम खेत-बारी-टाँड़-पोखर में उतर कर ही दम लेते थे.. और आज हमें रोक रहे है!?.. काहे??"
"अरे बाबू! जखन हम तुमको काम करने के लिए बोलते थे न तखन तुम गाँव का मोदी था,इधर-उधर घूमने वाला छौवा, लेकिन अब तुम गंगा बाबू बन गए हो, इंजीनियर बाबू बन गए हो, तो अब ई सब काम अब थोड़ी शोभता है तुम्हरे ऊपर!!.. अरे हमरा भईवा इंजीनियर है इंजीनियर, कोनो लेल्हवा बुधवा है का जो अब आलतू-फालतू का काम करेगा , हां!?.. साला हम भी अब कहीं जाते है न तो सीना तान के बोलते है कि हम केतनो पढ़ल-लिखल नहीं है लेकिन हमरा छोटका भईवा इंजीनियर है इंजीनियर!! .. और तुम ई सब काम करेगा!? नहीं कतई नहीं!! .. हमरे रहते तो कतई नहीं!!"
मैं बोला "इंजीनियर होगा मैं खोपोली में.. इहाँ तो हम बस मोदिया है मोदिया.. और मोदिया बन के ही हम गाँव आते है। इंजीनियरी को लात मार के खोपोली में ही छोड़ देते है.. जो काम हम मोदिया के रूप में करते थे आज भी वही मोदिया बन के ही करेंगे.. इसमें रुकावट न डालिये.. आपन काम-धंधा में शर्म करने वाला सबसे बड़ा गधा.. और हमको गधा नहीं बनना है। हमको मोदिया ही रहने दीजिए.. मैं आऊंगा और काम करूंगा और बराबर करूँगा.. आपका उसास होगा ही होगा साथ में हम भी अभ्यस्त रहेंगे।।"
भैया अब बस अलग भाव से ही मेरा चेहरा देखे जा रहे थे।

इधर राँची में बीएससी कर रही परमिलवा भी जिनिस पहिन के जब खेतवा में उतरी तो उकर आजी(दादी) टोक दी.. "अगे ए परमिलवा तोरा के केय उतरे बोला गे खेतवा में!!? .. हमर पूतोह सब मर गई है का जो जो तुम खेतवा में कूद गई हो!!? .. हाय गे हमर बेटी छौवा! चल भाग जल्दी हियां खेतवा से!.. ऐते सुंदर बेटी हमर धान रोपते? कादो-कीचड़ में उतरते!? बिहिन मारते!? .. नाय कभी नाय!! .. अहे खातिर हम आपन नतनी के पढ़ाय-लिखाय रहल हिये जे कादो-कीचड़ में उतरते!? हांय! .. हमर नतनी तो साहेब बनते साहेब! .. जो बेटी तोरा ई सब काम करे के जरूरत नाय हो, हमनी हिये ने अभी कोनो काम करे के जरूरत नाय हो तोरा!.. जो बाहरी जो!"
फिर परमिलवा खेत के आरी में खड़ी हो के फुटकरवा(स्प्रिंग वाला) छाता फुटकार के एंड्रॉयड वाला फोन से सबका फोटुआ खींचने लगती है।

इधर DAV में आठवीं क्लास में पढ़ने वाला मिन्टूआ परमेसरा संग उकर खेतवा में कौड़ी करैत हेलल मिल गया तो उसकी मैया ले खेतवा से ही क्लास लगाती हुई घर ला रही है.. "हां रे मिंटू! तोरा बड़ी कौड़ी करे के मन करो हो रे हां?? .. तोरा अहे खातिर DAV इस्कूल में पढ़ाय रहल हियो रे बेटा, हां!? .. बप्पा तोर अहे खातिर खट-खट के तोरा DAV इस्कूल में पढ़ा रहा है तोरा के!?.. खबरदार जो अबरी कहीं हम तुमको किसी के खेत में देखे तो! नहीं तो ढेड़ाय-ढेड़ाय के बीसीक चाम न छोड़ाय दिए तो हमर नाम नाय बिलसी देवी!.. बड़का आया हरहवा बनने!"

पता नहीं क्या हवा चल पड़ी है!! .. हाथ में कलम न आई कि कौड़ी का बेंट और हल का बूटा छूना गुनाह हो जाता है! पुश्तैनी काम अनपढ़ों की निशानी मान उससे दूर रहने का परामर्श! .. मेरे नजर में एक भी सो कॉल्ड पढ़ा-लिखा आदमी नहीं होगा जो अपने बच्चों को कभी खेत में उतरने दिया होगा! और कभी प्रात्साहित भी किया होगा!.. और पढ़ा-लिखा आदमी ही क्यों जिनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं वे भी कभी उतरने न देते खेत-बारी में!.. हल-जुआठ-कौड़ी पकड़े जब अपने बच्चों को देख ले न तो ऐसा लगता जैसे इन्वेस्ट किया पैसा हुआ सब गुड़-गोबर! .. इतने जोर से झिड़कते कि लौंडा उतरे ही न कभी खेत में!.. सरकारी इस्कूल में है तो थोड़ी रियायत है लेकिन अगर अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में पढ़ रहे हो तो कोई गुंजाइश ही नहीं है कि आप खेत में उतर जाओ।.. इधर सरकारी इस्कूल वाले लौंडे अपने बाप-दादा,मैया-आजी का डाँट सुन-सुन के सोचते 'साला काश हम भी बढ़िया अंग्रेजी वाला इस्कूल में पढ़ रहे होते तो हमको भी कोय काम करने नय बोलता!'

अभी जो समाज के अगुआ पढ़ुआ लोग दिन-रात किसानी खेती का ज्ञान पेलते रहते हैं उनसे पूछो कि आपने कितना अपने बच्चों को खेत में उतरने दिया है, कितना हल का बूटा पकड़ाना सिखाया है!? तो जवाब आयेगा नील बट्टा जीरो! अ बिग घण्टा!!.. लेकिन हां इनके बेटे जरूर सोशल मीडिया में 'वी सपोर्ट किसान' का प्रोफाइल पिक्चर चिपकाये किसानों को सपोर्ट करते मिलेंगे और पूछने पे बताएंगे कि हम भी किसान है,हमरे घर में 52 बीघे की खेती होती है!! .. लेकिन भइये तू कितना किसान है!? कभी घरवालों ने कौड़ी-कोदाइर हल-जुआठ छूने भी दिया है तुम्हें!? या ट्रैक्टर है तो कभी ट्रैक्टर ले के उतरने दिया गया है तुम्हें कभी खेत में!?.. ये कथित किसान कभी टमाटर के लिए रोना रोयेंगे तो कभी दाल के लिए.. और बात-बात में सरकार गिराते मिलेंगे।

भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन कृषि मूर्खों का काम है। .. पता नहीं पढ़े-लिखे किसान कब होंगे भारत में जो और भी गर्व के साथ कहा सकेंगे कि हाँ हम किसान है और हमारा भारत कृषि प्रधान देश है।

गंगवा
खोपोली से।
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