रूद्राभिषेक महामृत्युन्जय की महिमा.. ; प्रेम शंकर मिश्र
BY Suryakant Pathak17 July 2017 10:59 AM GMT

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Suryakant Pathak17 July 2017 10:59 AM GMT
"वेदः शिवः शिवो वेदः" वेद शिव हैं और शिव वेद हैं अर्थात शिव वेदस्वरूप हैं। यह भी कहा है कि वेद नारायण का साक्षात स्वरूप है।_वेदों नारायण: साक्षात स्वयम्भूरिति शुश्रुम "।इसके साथ ही वेद को परमात्मप्रभु का निःश्वास कहा गया है।
इसीलिये भारतीय संस्कृति में वेद की अनुपम महिमा है। जैसे ईश्वर अनादि-अपौरुषेय हैं, उसी प्रकार वेद भी सनातन जगत में अनादि-अपौरुषेय माने जाते हैं। इसीलिये वेद -मंत्रों के द्वारा शिवजी का पूजन, अभिषेक, यज्ञ और जप आदि किया जाता है।
"शिव" और "रूद्र" ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रूद्र इसलिये कहा जाता है__ये "रुत्" अर्थात दुःख को विनष्ट कर देते हैं।
'रुतम__दुःखम, द्रावयति__नाशायतीति रुद्रः ।' रूद्र भगवान् की श्रेष्ठता के विषय में रुद्रह्रृदयोपनिषद में इसप्रकार लिखा है_सर्वदेवात्मको रुद्रः सर्वे देवाः शिवात्मका:*।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।
यो रुद्रः स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशनः।
ब्रह्म्विष्णुमयो रूद्र अग्निषोमात्मकं जगत्।।
_इस प्रमाण के अनुसार यह सिद्ध होता है कि रूद्र ही मूलप्रकृति-पुरुषमय आदिदेव साकार ब्रह्म हैं। वेदविहित यज्ञपुरुष स्वयम्भू रूद्र हैं।
इसीसे भगवान् रूद्र(साम्ब सदाशिव)-की उपासना के निमित्त 'रुद्राष्टाध्यायी' ग्रन्थ वेद का ही सारभूत संग्रह है। जिसप्रकार दूध से मक्खन निकाल लिया जाता है, उसीप्रकार जन्कल्याणार्थ शुक्लयजुर्वेद से रुद्राष्टाध्यायी का भी संग्रह हुआ है।
इस ग्रन्थ में गृहस्थधर्म,राजधर्म,ज्ञान-वैराग्य,शान्ति,ईश्वरस्तुति आदि अनेक सर्वोत्तम विषयों का वर्णन है।
मनुष्य का मन विषयलोलुप होकर अधोगति को प्राप्त न हो और व्यक्ति अपनी चित्तवृत्तियों को स्वच्छ रख सके__इसके निमित्त महामृत्युन्जय रूद्र का अनुष्ठान करना मुख्य और उत्कृष्ट साधन है। यह रुद्रानुष्ठान प्रवृति-मार्ग से निवृति-मार्ग को प्राप्त कराने में समर्थ है।
इस ग्रन्थ में ब्रह्म के निर्गुण एवं सगुण_दोनों रूपों का वर्णन हुआ है। जहां लोक में इसके जप,पाठ तथा अभिषेक आदि साधनों से भगवत्भक्ति,शान्ति,पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि,धन-धान्य की सम्पन्नता तथा सुन्दर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है;वहीँ परलोक में सद्गति एवं परमपद(मोक्ष) भी प्राप्त होता है।
वेद के ब्राह्मण-ग्रंथों में,उपनिषदों में,स्मृतियों और पुराणों में शिवार्चन के साथ 'रुद्राष्टाध्यायी' के पाठ,मंत्र जप,रुद्राभिषेक आदि की विशेष महिमा का वर्णन प्राप्त होता है।
वायुपुराण में लिखा है____
यश्च्साग्र्पर्यन्ताम सशैलवनकाननाम्।सर्वानात्म्गुणोपेताम सुब्रिक्षजल्शोभिताम्।।दद्यात् कान्चनसंयुक्तां भूमिं चौषधिसंयुताम्।तस्मादप्यधिकं तस्य सकृदरूदजपाद्भवेत्।।यश्च रुद्रान्जपेंनित्यम ध्याय्मानो महेश्वरम्।स तेनैव च देहेन रुद्रे संजायते ध्रुवम्।।__अर्थात जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त वन,पर्वत,जल, एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है जो धन-धान्य,सुवर्ण और औषधियों से युक्त है,उससे भी अधिक पुण्य एक बार के मंत्र 'रुद्रीजप'एवं 'रुद्राभिषेक-का है।
इसलिये जो भगवान् रूद्र का ध्यान करके महामृत्युन्जय जप रुद्री का पाठ करता है अथवा रुद्राभिषेक यज्ञ करता है वह उसी देह से निश्चित ही रुद्ररूप हो जाता है, इसमे संदेह नहीं है।
_हर-हर महादेव-----
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