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शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां पर ब्रह्मा जी ने दस बार किया था अश्वमेध यज्ञ
BY Suryakant Pathak13 July 2017 2:36 AM GMT

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Suryakant Pathak13 July 2017 2:36 AM GMT
सावन में दारागंज स्थित दशाश्वमेध घाट से गंगाजल भरकर कांवरिये काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करते हैं। बगल में संगम के होते हुए भी इसी घाट से जल भरने की परंपरा है। मान्यता है कि दशाश्वमेध घाट पर ब्रह्मा ने बालू की रेत से शिवलिंग बनाकर लगातार दस बार अश्वमेध यज्ञ किया था, इसलिए इस घाट का नाम दशाश्वमेध पड़ा। ब्रह्मा के यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान शिव इस घाट पर प्रकट हुए थे। इस कारण कांवरिया सावन में इसी घाट से गंगाजल भरकर शिवधाम के लिए प्रस्थान करते हैं।
माना जाता है कि इस घाट पर आने वाले सभी कांवरियों की रक्षा और उनकी यात्रा की निगरानी भगवान शिव स्वयं करते हैं। अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री मुधचकहा ने बताया कि प्रयाग क्षेत्र में सबसे अधिक अनुष्ठान संगम क्षेत्र के दशाश्वमेध घाट पर ही किए गए हैं। इसका वर्णन वत्सपुराण में भी है। इसलिए इस घाट का महत्व कलियुग में भी बना हुआ है।
दशाश्वमेध मंदिर में दो शिवलिंग हैं
दशाश्वमेध मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। एक का नाम दशाश्वमेध महादेव और दूसरे का ब्रह्मेश्वर महादेव। कहा जाता है कि दोनों शिवलिंग को मुगल बादशाह औरंगजेब ने खंडित करवाने का प्रयास किया था। तलवार चलाते ही ब्रह्मेश्वर महादेव से दूध और रक्त की धारा निकलने लगी थी। यह दृश्य देखकर वह लौट गया।
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