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उत्तर प्रदेश

"सावन का पहला सोमवार - प्रेम कथा" -विशाल "अज्ञात"

सावन का पहला सोमवार - प्रेम कथा -विशाल अज्ञात
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हर रोज कि तरह आदतन गौरव ने अपने निर्धारित ब्रह्ममुहुर्त (जो कि सुबह के 8 बजे होता था) में अधखुली आॅखो से मोबाईल कि तरफ लेटे लेटे देखा और सुबह के 5:58 पर आऐं काल पर दुबारा काल किया..
घंटीओं ने लगातार अपना काम किया और अंततः फोन स्वामी तक संदेश न पहुॅच पाने का खेद प्रकट कर अपना काम समाप्त किया, इधर गौरव के नींद में खिड़की से आ रहे तेज उजाले ने खलल डाला और लाल हुई आॅखो में रौशनी ने मिर्च का काम किया फिर एहसास कराया कि उठ जाओ..बहुत सो लिऐ !! आखिरकार रात के गौरव का 9 बजे सुबह हुआ और नित्यकर्म से निवृत होने के पश्चात सुबह कि चाय का आनंद लेने के लिऐ अपने रूम से निकल कर पत्रिका चौराहे तक (जो उसकी रूम से थोड़ी दुर था) उसी नंबर पर फोन लगाते झुमते झुमते पहुॅच गया, इधर उधर निगाह डाली लेकिन कोई टेबल खाली दिखा नही फिर भी चाय वाले से चाय आर्डर कर उससे कुछ लिया और अपने छात्र होने का एहसास कराते हुऐ गौरव ने हाथों कि दो अंगुलियों के बीच 42mm कि कोई वस्तु से भौतिक क्रिआऐं करना आरंभ कर दिया..तब तक चाय आ गई और चाय कि चुस्कियाॅ और वह भौतिक क्रिया साथ साथ गठबंधन कर गौरव को आनंद कि अनुभुति कराने लगी, चाय पीने का क्रम जारी ही था कि अचानक मोबाईल ने बेतहासा संकेत देना प्रारंभ किया..अब दोनो हाथ दो क्रिआओं में फंसे होने के कारण गौरव ने चाय खत्म कर ही मोबाईल का दीदार करना बेहतर समझा क्युकी उसे मालुम था कि इस आनंद में खलल उसके (प्रेयसी) अलावा और कौन डाल सकता है ?
चाय खत्म होते होते फोन का आना भी बंद हो गया था, अब गौरव हाथ में मोबाईल ले टेबल को साईड कर थोड़ा किनारे हो लिया जिसका मतलब था कि फोन उनकी यशस्वी प्रेयसी का ही रहा होगा..गौरव ने फोन लगाया और घंटी बजी ही थी कि उधर से हलो !!
गौरव : हाॅ बोलो कहाॅ थे सुबह से ?
.......?: (आवाज में अत्यधिक मधुरता) मन्दिर चली गई थी माॅ के साथ
गौरव: अच्छा !! कौन सा लालच देकर और क्या मन्नत माॅग कर आई हो !! वो भी इतनी सुबह सुबह
.......: अरे आलसी 10 बज रहे है और आज सोमवार था न
गौरव : हाॅ तो ये तो हर हफ्ते आता है
......: हाॅ लेकिन आज सावन का पहला सोमवार था
गौरव: ओहो हो तो मोहतरमा अच्छे पति कि कामना में अब भगवान शंकर तक पहुॅच गई ! अरे हमसे कहा होता हमारी अच्छी सेटिंग है बाबा भोलेनाथ से
.......: हा हा अच्छा !!
गौरव: फिर तो अभी तक कुछ खाया भी नही होगा
......: हाॅ जी आज तो व्रत रहना है
गौरव : पुरा दिन
.....": और नही तो क्या ? क्यु तुम्हारे घर में सब कुछ घंटे ही रहते है क्या ? हाहा
गौरव : नही पुरा दिन ही रहते है ! मुझे लगा तुम भुख्खड़ लड़की कैसे रहोगी
.....: हलो ! मै रह लेती हु
गौरव : उर्वशी मैडम इतने त्याग बलिदान का कारण !
(लड़की का नाम उर्वशी)
उर्वशी : कुछ देर पहले जो बोले थे उसी लिऐ
गौरव : अच्छा बेटा तो ये सब पतिदेव के लिऐ हो रहा है ! अच्छा है पुरी रात प्रेम व्रत कराकर हमारी आॅखे लाल कराओ और सुबह मन्दिर पहुॅच अच्छा पति माॅग लो...बहुत सही
उर्वशी : हाहा
गौरव : हॅसो मत ! सारे व्रत का अधिकरण पति लोगो ने कर रख्खा है कम से कम एक व्रत तो प्रेमियों के लिऐ समाज ने बना रखा होता...कुछ बेचारे प्रेमी रश्मों को तोड़ कुवाॅरी प्रेमिका को करवा चौथ का चाॅद दिखाते है और अगर गलती से पकड़ लिऐ जाते है तो उनकी जिंदगी अंधेरे में कर गहरी दैहिक समीक्षा भी कर दी जाती है,और "सुबह के अखबार बताते है कि चाॅद दिखाते धराया मजनू गाॅव वालों ने जमकर किया हाथ साफ"|
उर्वशी : (तेजी से हॅसते हुऐ) हाहा तुम भी न
गौरव : हॅस लो भाई हमारी भी हार्दिक इच्छा है आपकी मनोकामना पुरी कर दे बाबा
उर्वशी : जी बिल्कुल गौरव जी...आपको ही तो माॅगा है !
गौरव : क्या पता !
(पाॅच सालों के बाद)
गौरव घर पर बैठ मन ही मन सोच रहा है की
आज सावन का पहला सोमवार है आज भी वो मंदिर जरूर गई होगी समय तिथी वर्ष सब जरूर बदले है, मंदिर का स्थान भी बदला होगा ! उनकी आस्था वही पुरानी होगी लेकिन कुछ है जो बदला बदला होगा...वो ये है कि पहले वो माॅ के साथ मंदिर जाकर अच्छे पति कि कामना करती थी ! अब अपनी सासु माॅ के साथ मंदिर जाकर अपने पति के दीर्घायू होने कि कामना कर रही होगी या करके आई होंगी..!! लेकिन गौरव आज भी उसी समय सो कर उठा है और उसने फिर से वही कामना कि है की भगवान भोलेनाथ उसकी जो भी कामना हो सब पुरी कर देना..!!"
समय का परिवर्तन कितना खतरनाक है खासकर प्रेमियों के लिऐ यही सब उधेड़ बुन कर अब गौरव भी भगवान शंकर से मिलने शिवालय जाने कि तैयारी में है...लेकिन सोच रहा है कि क्या माॅगुगा...!!
शायद कुछ भी नही...या फिर बहुत कुछ लेकिन वो ये जरूर सोच रहा है कि आखिर उर्वशी ने माॅगा क्या था ? क्युकी उसको ये भी पता है कि उसने उसको ही माॅगा होगा फिर कोई और कैसे मिल गया !!
आज गौरव बस यही प्रश्न लिऐ मंदिर जाऐगा....
-विशाल "अज्ञात"
जौनपुर [उ○ प्र○]
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