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उत्तर प्रदेश

सौहार्द की मिसाल : हरदोई में पंडित की जमीन पर ईदगाह तो नवाब की जमीन पर मंदिर

सौहार्द की मिसाल : हरदोई में पंडित की जमीन पर ईदगाह तो नवाब की जमीन पर मंदिर
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कुछ लोग तहजीब में रचे-बसे सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं, तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिन्होंने इसे बचाए रखा है। हरदोई में ऐसी एक नहीं, दो-दो मिसाले हैं। यहां एक पंडित की जमीन पर ईदगाह बनी है तो नवाब की जमीन पर मंदिर।

हरदोई शहर की इकलौती ईदगाह का एक चौथाई हिस्सा पंडित की जमीन पर है। इसका इतिहास एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। बताया जाता है कि ईदगाह बनाने की जरूरत पेश आई तो शाहजहांपुर के हाजी सईद खां सामने आए। उन्होंने 1903 में बिलग्राम चुंगी पर जमीन खरीदी। यह जमीन पर्याप्त नहीं थी। पड़ोस में ही पंडित इकबाल नारायण की भी जमीन थी। उनसे जमीन खरीदने की पेशकश की गई, तो इनकार कर दिया। खुद जमीन मुफ्त में ईदगाह के नाम पर करने की पेशकश की। पहले इस पर बात नहीं बनी, फिर भी पंडित जी अड़े रहे तो उनकी पेशकश कुबूल कर ली गई। बाकायदा ईदगाह के नाम जमीन कर दी गई।

अंजुमन इस्लामिया की देखरेख में है ईदगाह

आज शहर के बिलग्राम चुंगी पर स्थित ईदगाह गंगा-यमुनी तहजीब का नायाब नमूना है। ईदगाह की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इस्लामिया के जिम्मेदार इसकी तस्दीक करते हैं। अंजुमन के सदर मोहम्मद खालिद एडवोकेट व जनरल सेक्रेटरी हफीज अहमद खां बताते हैं कि अपनी तामीर के बाद से ही इसकी निगरानी अंजुमन के हवाले है। पहले इसकी इमारत नहीं थी। सिर्फ चारों तरफ छोटी-छोटी दीवारें थीं, जो काफी जर्जर हो गई थीं। बाद में समाज की मदद से इसकी नई इमारत तामीर करवाई गई।

नवाब साहब की जमीन पर शिवजी का मंदिर
सीतापुर रोड पर पुल के नीचे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पड़ोस में बना शिवजी का मंदिर भी इस शहर की तहजीब की नजीर पेश करता है। जिस जगह पर मंदिर है, वह जमीन गोपामऊ के नवाब रईसुल इस्लाम की है। नवाब साहब की वहां पर काफी जमीन अब भी है। कहते हैं कि काफी पहले वहां पर एक साधु आकर रहने लगे। नवाब साहब ने उनके लिए कुटिया का इंतजाम करवा दिया। बाद में साधु ने वहां पर शिवजी की प्रतिमा स्थापित कर दी। वहां लोगों का आना-जाना बढ़ गया और मंदिर का निर्माण हो गया। नवाब साहब ने कभी इस पर ऐतराज नहीं किया। उनके पुत्र नवाब साद मियां फारूकी कहते हैं कि मंदिर-मस्जिद तो ईबादत की जगह है। हमें सभी का अदब करना चाहिए।

फर्रुखाबाद की नई ईदगाह
फर्रुखाबाद में अहमद खां बंगश ने बनाई थी नई ईदगाह
वैसे तो फर्रुखाबाद में दो ईदगाह हैं। इसमें एक ईदगाह खंदिया और दूसरी अर्राह पहाड़पुर में है। नई ईदगाह के नाम से जानी जाने वाली ईदगाह शहर के चौथे शासक अहमद खां बंगश ने बनवाई थी। कहते हैं कि उनको यह जगह बहुत पसंद थी इसीलिए उनकी पूरी बस्ती को अहमदगंज का नाम दिया गया था जो आज खंदिया के नाम से जाना जाता है। ईदगाह के सामने उनकी बेगमों के मकबरे बने हैं तो वहीं ईदगाह के पीछे अहमद खां बंगश का मकबरा बना है। नई ईदगाह में आज करीब एक साथ बीस हजार नमाजी नमाज पढ़ते हैं। नवाव के वंशज काजिम हुसैन खां ने बताया कि अहमद खां बंगश ने नमाज को ईदगाह का निर्माण कराया था। जहां आज लोग नमाज अदा करते चले आ रहे हैं। इससे उनकी याद ताजा होती है। इतिहासकार डाक्टर रामकृष्ण राजपूत ने बताया कि यह ईदगाह काफी पुरानी है। जानकारी करने से पता चलता है कि इसको अहमद खां बंगश ने बनवाया था।

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