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उत्तर प्रदेश

इधर देश में राष्ट्रपति चुनाव की गरमा-गर्मी मची हुई है , कि किसको राष्ट्रपति बनाया जाये ?

इधर देश में राष्ट्रपति चुनाव की गरमा-गर्मी मची हुई है , कि किसको राष्ट्रपति बनाया जाये ?
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पक्ष-विपक्ष दिन रात कड़े परिश्रम से शत प्रतिशत ISI मानक वाला दलित उम्मीदवार ढूंढने में लगा है , और उधर अपने मुहल्ले के लौंडे , एंजेल चिंकिया के प्यार में पड़ कर दलित हुए जा रहे है , एक होड़ सी मच गई है दलित बनने की ।

अब जब चिंकी शाम को गली से निकलती है तो कोई टिका-टिप्पड़ी नही होती बल्कि सब प्यार से जय भीम , जय भीम बोलते हैं ..............और कुछ क्रन्तिकारी तो अपनी प्राइमरी स्कूल की वही पुरानी नीली शर्ट फाड़ते हुए नीला सलाम तक ठोक देते हैं एंजेल चिंकिया को।

राकेशवा तो इन सब से एक कदम आगे बढ़ते हुए बोल दिया ..................

~ " कि देखो चिंकी हम तुमसे बहुत प्यार करते है , और आज ये सिन्दूर अपनी मांग में सजा के हमे अपना पति स्वीकार कर लो क्योंकि हमारा क्या हमको कल कोई न कोई तो राष्ट्रपति के लिए मनोनीत कर ही देगा । "

पर चिंकी ने ये बोलते हुए प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि ..................

~ " तुम बहुत भोले हो राकेश , बस यूँ समझ लो की तुम्हे कभी कोई मनोनीत नही करेगा क्योंकि तुम सच में दलित हो । "

वैसे चिंकी बोल दी है कि वो उसी से विवाह करेगी जिसमे 50.5 प्रतिशत अनारक्षित के , 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के , 22.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के गुण होंगे ।

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वैसे किस बात की दलित मीरा कुमारी और किस बात के दलित रामनाथ कोविंद .............ऐसे ही विचारों का पुल हमारी सरकारें बनाती हैं , और टीना डाबी जैसे लोग चुप चाप उसपे से निकल जातें है । अगर दलित शब्द लाभ का पर्याय है , तो इन लोगों को और इनके जैसे लोगों को , अब अनारक्षित या लाभार्थी बुलाना शुरू करिये।

और अगर राज्यपाल और सांसद बनने के बाद भी लोग दलित ही रह जाते है तो फिर नौकरी एवं उच्च संस्थानों में आरक्षण का क्या मतलब क्योंकि दलित तो दलित ही रहेगा ना , फिर चाहें वो ......क्लर्क , बैंक अधिकारी या कुछ भी बन जाए ।

मेरी नज़र में दलित सिर्फ वो व्यक्ति है जिसके अंदर आगे आने की ललक है पर संसाधन का आभाव उसे आगे आने से रोक रहा है , बस दूसरा कोई नही और लाभ भी सिर्फ उन्हीं को मिलना चाहिए ।

वैसे मैंने एक और दलित आज देखा था , जो सिसक सिसक कर गुजर बसर तो कर रहा था पर किसी पे दोषारोपण नही कर पा रहा था क्योंकि सुना है ज़ात से वो सामान्य वर्ग में आता है और धन से वो निर्धन वर्ग में ।

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" भईया फिर से विचार करिये आरक्षण समता के लिए ही है ना , क्योंकि परिश्रम घूँघट में मुह छुपाए रो रही है । "

~ हिमांशु सिंह
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