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उत्तर प्रदेश

"अपमान के बदला " ..........: धनंजय तिवारी

अपमान के बदला  ..........:   धनंजय तिवारी
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उमेश और ओकर तीनू छोट भाई के देख, मास्टराइन के दिमाग उखड गईल। मन में आयिल की लाठी उठा के कपार फोड़ देस ओकनी के । रात के करीब ९ बजत रहे और उ खाना खाए बइठल रहली। खाना आधा ख़तम भईल रहे, पर अब उनकर मन उचट गईल। एक कौर भी खाए के इच्छा ना बाकि रहल।
"दुल्हिन थरिया लेजा। " उ अपना पतोह के आवाज देहली।
"इ का, रउवा त आधा भी खाना नइखी खइले। " पतोह थरिया के देख के चिंता से कहली " खाना निमन नइखे भईल का। "
"खाना निमन बा। हमके मन नइखे करत और खाए के। "
"का बात बा तबियत ठीक नइखे का। " उनकर बेटा राजेश पूछले।
"नाहीं सब ठीक बा। तह लोग चिंता मत कर । " उ कहली और हाथ धोवे खातिर उठ गईली।
पर इ का, उ चारु त एनिये आवतर सन। उनका मन में जिज्ञासा और शंका उठल। बीस साल से उ कुल कभी हमरा दुवार पर लात ना रखल सन, कभी सामने आईला पर भी उनके गोड़ ना लगलसन, आज का बात हो गईल की एने आवतर सन। ऐही सोच में पड़ल रहली उ, तबतक उमेश और उनकर भाई कुल असोरा में आ गईल सन।
"गोड़ लागतानी मास्टराइन। " चारु लगभग एके साथै उनकर गोड़ छुवत कहलसन।
मास्टराइन के कुछु समझ में ना आयिल। पूरा गाव का ऐ दुनिया में उ चारु भाई ही अइसन रहलसन जेकरा से उ सबसे ज्यादा घृणा करस। कवनो अइसन दिन ना होखे जब ओकनी के चेहरा एकबार उनका सामने ना आ जाऊ और बीस साल पुराना अपमान याद आ जाऊ। मन में आवे की जाके ओकनी के का क लेती। दिन भर बच्चन के नैतिकता के पाठ पढ़ावे वाला, बच्चन के चरित्र के निर्माण करेवाला, अच्छा बुरा के रास्ता देखावे वाला शिक्षिका ही खुद चारित्रिक दुर्बलता के शिकार हो जास और बस मन में एकहि इच्छा रहे की उमेशवा और ओकर भाई कुल के नाश क दी।
आज त उनकर दुश्मन उनके सामने का गोड़ के निचे रहल सन। आज उ चहिति त हथियार से ना त अपना शब्दन से ओकनी के घायल क देती पर घरे आयिल त मेहमान होला। एगो मर्यादा के पालन करेके होला। जवन मर्यादा के पाठ उ पूरा दुनिया के पढावस, अगर खुद उ ओकर पालन ना करीहे त केतना जगहंसाई होई। अपना मन के स्थिर क के उ ओ लोग के खुश होखेके आशीर्वाद देहली।
"बइठ लोग। कैसे ऐने के रास्ता भुला गईल ह लोग। तह लोग त बड़का आदमी हउव लोग। " ना चाहते हुवे भी मुह से व्यंग्य निकलिये गईल।
"एगो जरूरी काम बा, राउर सहयोग चाही। " उमेशवा दिन हीन बनके कहलस।
"हमार सहयोग। " मास्टराइन के भी अचम्भा भईल " महाबलशाली, बुद्धि के खान , सब त तह लोग बाड़, फिर हमरा जइसन कमजोर आदमी तह लोग के का साथ दे सकेला। "
"रउवा जवन कहेके बा कही। बड़ हई, मन करे त चार जूता मारली पर सहयोग करी।" उमेश से छोट दयवा कहलस।
घोर आश्चर्य ! जवन चारु भाई के बल रोकले ना रुके, गाव में केहु के सामने कभी ना झुकल सन, उ आज अपना सबसे बड़हन दुश्मन के सामने नतमस्त बाड़ सन। अब उनहू के मन में बात जाने के इच्छा प्रबल हो गईल।
"बात त बताव लोग। "
"नाही पहिले रउवा बचन दी की हमनी के साथ देब। "
"बिना बात जनले हम कैसे बचन दे सकतानी। पर एतना जरूर कहब की अगर बात सही होई त हम पूरा साथ देब। "
"रामबचन के खेत में शराब के दुकान खोलाता। "
"जेके सुरेन्द्र खरीद के दुकान बनववले बाड़े, ओइजा ?"
"जी। "
"पर उ त ठीक तहरा घर के सामने बा ?"
"इहे न दिक्कत बा। कवनोगा से इ दुकान ना खुले के चाही। अब सब रउवे हाथ में बा " उमेशवा लाचारी से कहलस।
मास्टराइन के त ऐ बात पे विश्वास ही ना होत रहे। प्रकृति के खेल भी निराला बा, आज से ठीक बीस साल पहिले, जवन उमेशवा अपना भाई पट्टीदार कुल के साथै शराब के दुकान खोले खातिर उनका ऊपर लाठी तान दिहलस, उनकर सबसे बढ़हन दुश्मन बन गईल, आज शराब के दुकान ना खुले खातिर गिड़गिड़ात रहल सन। देहात में कहल जाला की कभी कभी दूसरा के ऊपर चलावल लाठी लौट के अपने मूडी फोरेला, आज इ साक्षात लउकत रहे।
मास्टराइन के बीस साल पुराना दिन याद आ गईल। ओतना पहिले बीतल घटना आँख के सामने नाचे लागल और लागे की जैसे काल्ह के ही बात होखे।
मास्टराइन के असली नाम वीणा रहे। जमींदार के बेटी रहली, तीन भाई के एकलौती बहन और पूरा घर के लाडली। अपना जमाना में पूरा गाव ही नाही जवार में, b.a. करेवाला पहिला लड़की उ रहली। उनकर ससुराल,. उनका नैहर के तुलना में कुछहु ना रहे पर उनका पति अशोक के c.a. कईला के वजह से उनकर शादी ऐ घर मे हो गईल। शादी के ५ साल तक त बड़ा निमन चलल। दू गो लड़िकी और बेटा राजेश के जनम हो गईल। पर अचानक ही वक्त के बुरा नजर लॉग गईल और अशोक के मौत दुर्घटना में हो गईल । इनकर त पूरा जिंदगी उजड़ गईल। सास -ससुर, जेठ और जेठानी सबके व्यवहार बदल गईल। बात बात पे ताना मारे लोग। उनका बाबूजी और भाई लोग के इ बर्दाश्त ना भईल और उनके नैहर में रहे खातिर जिद करे लागल लोग । एतना धन- सम्पदा कवना काम के जब एकलौती बेटी ही सुख से ना रहे। पर वीना अलगे मिट्टी के बनल रहली। उ वो लोगन मेसे ना रहली जे वक्त से हारके ,किस्मत के भरोसे बैठ जाउ। उ जिंदगी अपना शर्तन पे जिए के चाहत रहली। शादी के बाद ससुराल ही लड़की के घर होला, इ उनका दिमाग में बैठ गईल रहे। उ अपना बाबूजी से कहली की अगर रउवा हमार सहायता करे चाहतानी त हमके b.ed. करादी। हम अपना पैर पे खड़ा होखत चाहतानी। भला इ कवन बढहन काम रहे , उ उनके b.ed. करा देहले और फिर बरिस भीतर उ लड़कियन के कॉलेज में टीचर बन गईली। पूरा समाज के चलन के खिलाफ साइकिल से स्कूल जाये वाला उ ओ जिला के पहिला महिला रहली। शुरू शुरू में उनका मास्टर बनला पर तरह तरह के बात भईल, पर उ अपना काम से सबके मुह बंद ल देहली। लोगन के सुख में दुःख में हमेशा खड़ा रहस। सामाजिक बुरायिन के भी जमके विरोध करस और कभी कभी त अइसन काम क देस की उ काम गाव के मरद लोग भी ना करे और तब गाव के अधिकतर लोग कह उठे , पूरा गाव में अगर केहु मरद बा त उ बाड़ी मास्टराइन। पूरा गाव अब उनके वोही नाम से पुकारे। जवन सास ससुर, कभी उनके घर से निकाले के सोचत रहे अब उनका पर गर्व करे, जेठ जेठायीन के लड़िका कुल उनका ही पैसा से पढ़ सन । घर के साथ साथ पूरा गाव उनका के मान सम्मान देऊ और हर निमन - बाउर में उनकर राय लेउ लोग।
बीस साल पहिले रामचरण सेठ के गाव के मोड़ पर शराब के दुकान खोले के लाइसेंस मिलल त पूरा गाव में बवाल हो गईल। गाव के लोगन के मत बटल रहे। शिवदेनी और उनकर चारु बेटा जहा एकरा पक्ष में रहलसँ त सुरेन्द्र, योगेन्द्र और कुछ और लोग जेकर घर मोड़ पर रहल, उ एकरा विरोध में। मास्टराइन के टोला के भी सब लोग एकरा विरोध में रहे पर चुकी शिवदेनी और उनकर पट्टीदार कुल मिलके पूरा गाव के आधा हो जाऊ सन, हर काम में ओकनी के पलड़ा भारी रहे। लाठी और स्वांगी के बल वाला जमाना रहे उ।
सुरेन्द्र के पहल पर गाव में पंचायत बइठल। गाव के लोगन के साथे, रामचरण सेठ भी अपने अपने लठैत कुल के साथे जुटले।
"गाव में शराब के दुकान खुलला से ख़राब काम और कवनो नइखे हो सकत। " मास्टराइन कहली "पूरा गाव के लोग एकरा खिलाफ बा। "
"पूरा गाव के ठेका रौवे लेलेबानी का ?" उमेशवा खिसिया के कहलस " हमनी के त एकरा खिलाफ नइखी जा। "
"तू त नाहिये खिलाफत करब। " सुरेन्द्र कहले " जब तहरे दुकान में खोलाता। "
"तहरा एतना तकलीफ बा त, तू अपने घर में खोलवा द। " घमंड से दयवा कहलस।
"इ बात खाली एक दू घर के नइखे, पूरा गाव - समाज के बा। शराब से पीढ़ी के पीढ़ी बर्बाद हो जाला। " मास्टराइन समझवलि।
"पूरा पीढ़ी के जिम्मा सरकार के पास बा। " रामचरण सेठ कहले " रउवा चिंता कईला के जरुरत नइखे। इ सरकार के अनुमति से ही खुलता। "
"पर गाव के लोग के आपत्ति नइखे गईल सरकार के पास, नाहीं त इ अनुमति ना मिलल रहित। या त सेठ जी रउवा खुदे एके मना क दी नात हमनी के एके ना खोले देब जा। "
"केकर हिम्मत बाकी एके रोक ली। " उमेशवा मास्टराइन के ओर लाठी लहरावत कहलस " एहि लाठी से उनकर मूडी फोर देब। जेभी आपत्ति करी। "
गाव के कुछ लोग विरोध में सुगबुगायिल पर, उमेशवा और ओकरा पाटीदार कुल के देख के चुप हो गईल लोग।
"हम करब एकर विरोध। " मास्टराइन निडरता से कहली "जेकरा फोड़े के बा फोड़े हमार मूडी। "
रामचरण के लठैत कुल, उनका तरफ ए उम्मीद से देखल सन की उ आदेश करस और हमनी के इनकर मूडी फोड़ी जा। उमेशवा अपना भाई पट्टीदार कुल के साथे पहिलही से लाठी तान के खड़ा रहे। मास्टराइन के उम्मीद रहे की उनका हिम्मत देखवला से गाव के लोग में हिम्मत आई पर गाव के लोग के चुप देख के उ बड़ा अपमानित महसूस कईली। काश आज उनका लगे स्वांगी के ताकत रहित त ओकनी के जबाब देती।
"अरे मास्टराइन रउवा खड़ा काहे बानी। "चिढावत उमेशवा कहलस " लियाई आपन लाठी आज फैसला होइए जाऊ। "
रामचरण सेठ के अब तनी खतरा महसूस भईल। जोश होश के दुश्मन होला। जोश से केतना रजवाड़ा उजड़ गईल सन, राजा से लोग रंक बन गईल, ए बात के उ भली भाति जानत रहे। एहिंगा एतना बड़हन सेठ थोड़े बनल रहे। उ जान गइल रहे की मास्टराइन वो लोग में से नइखी जेकरा के डरा के चुप करावल जा सकेला। कही जोश में केहु लाठी चला दिहल त बरसो के मेहनत बर्बाद हो जाइत। एक त औरत और ऊपर से मास्टर, हाथ उठवला से जिला जवार दुश्मन हो जाइत, केस होइ तवन अलग। सारा पैसा त उन्ही के खर्च करके पड़ी, शिवदेनी और उनकर बेटा त फूटी कौड़ी भी ना दिह सन। व्यापारी , व्यापार करी की कोर्ट कचहरी के चक्कर लगायी।
"तह लोग आपन लाठी निचे रख। " रामचरण उमेश्वा से कहले "मारपीट से कवनो हल थोड़े निकली। जे विरोध में बा उ कोर्ट जा सकेला। "
उ कहिके अपना आदमी कुल के साथै चल गईल और ओकरा पीछे शिवदेनी और उनकर बेटा पट्टीदार। कुछ देर में गाव के अन्य लोग भी चल गईल। मतलब साफ़ रहे , गाँव में केहु के विरोध करे के हिम्मत ना रहे। उ अकेले कहा कोर्ट के चक्कर लगयिति। मास्टराइन अपमान के घूंट पि के रह गईली पर ओइदिन से कवनो अइसन दिन ना बीतल जब उनका उ अपमान याद ना आयिल और ओ अपमान के बदला लेबे के इच्छा ना भईल।
उमेशवा और ओकरा भाई कुल से हारला और अपमानित भईला के बाद भी गाव जवार में उनकर पहिले वाला ही इज्जत रहे। पिछला साल जब उ नौकरी से रिटायर भइली त उनका पंचायत के लोग सर्वसम्मति से उनके सरपंच चुन लिहल। अपना इलाका के एगो छोट कोर्ट रहली उ और रोज केतना ही मुकदमा आवे फरियावे खातिर उनका सामने और पूरा निष्पक्षता से आपन फैसला सुनावस ।
"का कहतानी रउवा ? उमेशवा पूछलस।
"ठीक बा। काल्ह पंचायित बैठी। तह लोग घरे जा लोग। "
मास्टराइन के इत्मीनान दियवला पर उ वापस चल गईल सन।
बीस साल में जमाना बदलल, सरकार बदलल और नियम कानून भी। पुराना दारू के लाइसेंस ख़तम हो गईल और अब हर साल लाटरी से दारू के दुकान के ठेका दियावु। ऐ साल सुरेन्द्र के लॉटरी लागल रहे और उ उमेश के ठीक दुवार के सामने दुकान खोलत रहले।
मास्टराइन के मन में द्वन्द चले लागल। बरसो बाद आज उनकर अपमान के बदला पूरा होखे के समय आयिल रहे।
उमेशवा और ओकरा भाई कुल के झुकल सर देखल केतना सुखद होइ। ओकर लाठी उठी की ना इ देखे लायक होइ हालॉकि अब लाठी उठावे के ओकर औकात नइखे। अब जमाना स्वांगी के ना होकर, पैसा के बा और समय के साथै उमेशवा के परिवार पैसा में पिछड़ गईल। जेकरा लगे पैसा बा उ मिनट में हजारन लाठी उठवा सकेला। सुरेन्द्र पर लक्ष्मी के कृपा बा और अब उ उमेशवा और ओकरा पटीदार के अच्छा से जबाब दे सकेले। एहिसे त उनकर अपमान के बदला भी लियाई। पर वो शिक्षा के का होई जवान उ सारा जिंदगी देहली। अच्छाई बुराई के परिभाषा त नइखे न बदलल जा सकत। हमेशा उ पढ़वली की बुराई पे अच्छाई के जीत होला और अगर उ दारू के दुकान खोले के पक्ष में फैसला देतारी त उनकर पढ़ावल गलत ना हो जाई। जवन दारू मोड़ पे रहके केतना घर बर्बाद क देहलस , जब ठीक गाव के बीचो बीच आ जाई तब केतना बर्बादी होई। रातभर इहे सब सोचत बीत गईल, उ कवनो निर्णय पर न पहुंच पवली।
सबेरे १०बजे पंचायत बइठल।
"मोड़ पर से शराब के दुकान ठीक गाव के बीच में लियायिल गलत बा। अगल बगल के औरत, लड़की , बच्चा कुल के निकलल काल हो जाई। " उमेश कहले।
"तहार औरत, औरत, तहार बेटी, बेटी ह और हमनी के का रहे जवन की तू हमनी के घर के बगल में दारू के दुकान खोलवा देहल। " बरसो के भड़ास सुरेन्द्र उगिल देहले।
उनका बात से साफ़ रहे की उ इ शराब के दुकान उमेश और उनका पट्टीदार कुल के बदला लेबे खातिर ही खोलत रहले। सुरेन्द्र के बात भी एक हद तक जायज रहे। शराब के दुकान और हुंडदंग के वजह से उनका आपन मोड़ के घर छोड़ के दूसरा जगह रहे के पड़ल।
"वो बेरा हमनी इ समझ ना रहे। " दयवा बेचारगी से कहलस।
"तहरा ओ बेरा समझ ना रहे , हमरा ए बेरा समझ नइखे। दुकान ओहिजा खोलाई। याद बा तहलोग के आपन बात। लाठी से फरियावे के बात, ओइसे फरियाल नात कोर्ट जा। "
उमेश और ओकरा भाई के बोलती बंद हो गईल। अब ओकनी के निगाह मास्टराइन पर टिक गईल हालाँकि उनका से अपना पक्ष में फैसला के उम्मीद नाहिये रहे। सुरेन्द्र के भी पूरा उम्मीद रहे की मास्टराइन उनके पक्ष में ही फैसला दिहे।
" शराब के दुकान ओइजा ना खुली। " मास्टराइन आपन फैसला सुनवली।
सब केहु हक्काबक्का हो गईल। नात सुरेन्द्र के ही विश्वास भईल ना उमेशवा के।
"का कहतानी रउवा मास्टराइन " सुरेन्द्र कहले " रउवा भुला गईनी आपन अपमान और उमेशवा के लाठी तानल।"
"हमरा सब याद बा, पर हमार अपमान एतना बढहन नइखे की हम ओकरा खातिर पूरा गाव के बलि लेली। आवेवाला पीढ़ी के भविष्य दाव पे लगा दी। बहु बेटी कुल के इज्जत खतरा में डाली। शराब काल्ह भी ख़राब रहे और आज भी बा
ख़राब बा। एकर उदहारण उमेश और इनका परिवार से ज्यादा के जनता। इनका पूरा खानदान में सुरति का केहु सुपारी ले ना छुवे, पर मुफ्त के शराब ये लोग के पूरा पट्टीदार के बर्बाद खत्म क देहलस। जवना लाठी के बल पर इ हमनी के चुप करा देहले, शराब इनकर लाठी के ताकत खा गईलस। बुराई के फल बुराई ही होला और जे एकर जबाब बुराई से देला वोहू के साथ इहे होला। "
सुरेन्द्र के मास्टराइन के निर्णय के वजह बुझा गईल।
"रउवा सही कहतानी मास्टराइन , हमसे बहुत बढहन गलती होखे जात रहल ह। हम आग से आग बुझावे जात रहनी ह। आग हमेशा पानी से ही बुझाला। अपमान के बदला खातिर गाव के दाव पे ना लगाएब। अब इ शराब के दुकान उमेश के दुवार का, पूरा गाव में कही ना खुली। " कहिके सुरेन्द्र दुकान के लाइसेंस के कागज फाड़ देहले। पूरा गाव मास्टराइन के जय जयकार करे लागल और उमेशवा अपना भाई कुल के साथे मास्टराइन के गोड पकड़ लिहलस।

धनंजय तिवारी
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