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उत्तर प्रदेश

गधा कोई गाली नहीं, तारीफ की थाली है – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

गधा कोई गाली नहीं, तारीफ की थाली है – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जैसे ही यह कहा कि अमिताभ गुजरात मे गधों का प्रचार न करें। राजनीतिक क्षेत्र मे भूचाल आ गया। किसी ने भी यह आशा नहीं की थी कि अखिलेश ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ। मुझे भी लगा। आम जनता की तरह मैंने भी सोचा कि शायद उनका इशारा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की तरफ है। लेकिन मन इसे मानने को तैयार नहीं हो रहा था। फिर मैंने इसके जद मे जाने का निश्चय किया। टीवी के सामने बैठा, अमिताभ के विज्ञापनों को देखा। लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। फिर नेट का सहारा लिया, तब जाकर मुझे सफलता मिली। दरअसल यह एक विज्ञापन का हिस्सा था। जिसमें अमितभा बच्चन कहते हैं कि ''अगली बार कोई आपको गधा कहे तो बिल्कुल बुरा मत मानिएगा, बल्कि उसे थैंक यू कहिएगा। मैं बताता हूं क्यों? गुजरात का सरताज, इंडियन वाइल्ड ऐसा। ये जनाब पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं मिलेंगे। अहमदाबाद से डेढ़ घंटे दूर। गुजरात की वाइल्ड एस सेन्चुरी। महीनों हो गए इन्हें नहाए हुए, लेकिन दिखते हैं एकदम नीट एंड क्लीन। ये वो शहर वाला गधा नहीं है जो सड़क पर खड़ा कोई बात सोचता रहता है। इनके पास खड़े होने और सोचने की फुर्सत कहां। 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भागते हैं ये भाई साहब। बड़ा हैंडसम जानवर हैं। सर्वगुण सपन्न। ऐसा गधा जो सारे गधों का नाम रोशन कर रहा है। ऐसे 4500 हैं यहां और खूब फल-फूल रहे हैं गुजरात के आंगन में। तो याद रहे गधा कोई गाली नहीं, तारीफ की थाली है।''

जब उस विज्ञापन के उपरोक्त अंशों को पढ़ा, तो मेरे भी दिमाग मे जो चुलबुल हो रही थी, वह समाप्त हुई।

दरअसल इसकी शुरुआत देश के प्रधानमंत्री मोदी ने एक साल पहले कर दी थी। इटावा के लायन सफारी के बब्बर शेरों को लेकर मोदी ने कमेन्ट कसा था - ''यूपी में जो शेरों को ले जाते हैं, वो भी हमारे गुजरात से हैं। उनको भी यूपी के सीएम सही से रख नहीं पा रहे हैं। उनसे गुजरात के दो शेर नहीं संभल रहे हैं, वो प्रदेश को क्या संभाल पाएंगे?'' उसी दिन अखिलेश ने भी उनका जवाब दिया था - ''हमने गुजरात के इन शेरों के लिए अमेरिका से अच्छे एक्सपर्ट डॉक्टर्स की टीम को बुलाया है। हमें मालूम है कि शेरों को कैसे रखा जाता है।''

दरअसल, चुनाव का माहौल है, हम हर चीज को उसी से जोड़ कर देखते हैं, इसलिए हमने इस कमेन्ट को भी मोदी और अमित शाह से जोड़ कर देख लिया। और हमने बिना सच को जाने ही, अखिलेश यादव के बारे मे अपनी तमाम राय कायम कर ली। राजनीतिक चिंतकों के लिए यह ठीक नहीं है। मुझे भी एक सबक मिला, वैसे मैं सहसा ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करता, उसकी तह तक जरूर जाता हूँ। लेकिन इस बार चूक गया।

एक बात और है, चुनाव के साथ-साथ फाल्गुन का महिना भी चल रहा है। चुनाव धीरे-धीरे खसक कर पूर्वाञ्चल की ओर जा रहा है, जहां इस महीने मे ऐसी मसखरी हर उम्र के लोगों मे चलती रहती है।

इस लेख के माध्यम से एक बात और आपसे कह देना चाहता हूँ। अपने निजी जीवन मे भी हर बात को अखिलेश सीधे और सपाट शब्दों मे ही कहते हैं। लाग-लपेट करना उनकी आदत नहीं है। लेकिन कुछ भी बोलने के पहले वे सोचते जरूर हैं कि इससे उनके जीवन और राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है। इस तरह से राजनीतिक शुचिता की जो नींव उन्होने रखी है, विशेष कर भाषा के क्षेत्र मे वह अभी भी कायम है।

(यह मेरा मौलिक लेख है, जनता की आवाज की अनुमति के बगैर इसका उपयोग अवैधानिक है। )

- प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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