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ग्राउंड रिपोर्ट: सीएम अखिलेश यादव के घर से 20 किलोमीटर दूर ही दम तोड़ने लगता है 'विकास'
BY Suryakant Pathak18 Feb 2017 1:06 PM GMT
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Suryakant Pathak18 Feb 2017 1:06 PM GMT
लखनऊ के मलिहाबाद में लोगों को किसी राजनैतिक पार्टी से कोई उम्मीद नहीं है। ऐसा भी नहीं कि किसी से कोई नाराजगी है, बस अब वे गुहार लगा-लगाकर थक चुके हैं। सीजन में यहां की सड़कों से गुजरने पर आम की महक ठहरने को मजबूर कर देती है, मगर राजनीति का ठौर-ठिकाना नहीं है। आम से पहचान पाने वाले इस क्षेत्र में 'आम' कोई मुद्दा नहीं है।
हम कस्बे में एक चाय की दुकान पर रुके तो मैकूलाल मिल गए। चार बीघे में आम लगा रखे हैं, पूछा कि चुनाव को लेकर उनके यहां कैसी फिजा है तो भड़क गए। कहने लगे कि चुनाव है तो आप भी आए हैं, वर्ना कोई झांकने नहीं आता। थोड़ी देर बात संयत हुए तो बहुत कुछ बताया। उन्होंने कहा, 'आम की बात मत पूछिए। इतना आम होता है कि खाते-खाते थक जाएंगे। मशहूर भी है, बाहर भी जाता है, मगर टाइम से नहीं जाए तो दिक्कत हो जाती है। यहां किसानों को खुद ही गाड़ी करके देशभर में आम भिजवाना पड़ता है। सौदा चाहे जितने में हो, गाड़ी, तेल का खर्चा निकालके बचता कुछ भी नहीं।' अब जरा सोचिए, जहां आम ने मलिहाबाद की पहचान खास बना रखी है, वहीं पर आम को विदेश भेजने के लिए कोई बाजार नहीं है।
कहने को तो मलिहाबाद का इलाका लखनऊ में आता है, मगर प्रदेश की राजधानी में ही दो अलग हिन्दुस्तान नजर आते हैं। जहां हजरतगंज की सड़कें चकाचक और रात में रोशन रहती हैं, वहीं मलिहाबाद की सड़कें हिचकोलों का सफर कराती हैं। कहीं न कहीं, यह टीस इस इलाके के लोगों के मन में है कि लखनऊ का हिस्सा होने के बावजूद इस क्षेत्र को वह सब नहीं मिला, जिसका यह हकदार था। गैस एजेंसी चलाने वाले मो. रिजवान ने हमसे कहा, "मुश्किल से 25-30 किलोमीटर की दूरी होगी यहां से लखनऊ शहर की, यहां प्लाटिंग होने लगी है। खेतों में बड़े-बड़े प्लॉट बिल्डरों ने खरीद लिए हैं। मगर अभी बहुत अंतर है। मेन सड़क ही ठीक नहीं है, जबकि कम से कम लखनऊ के नाम पर तो काम होना चाहिए था। यहां के लोग तो लखनऊ देखकर हैरान हो जाते हैं कि हम भी इसी जिले का हिस्सा हैं और ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
इस इलाके में सपा की ठीक पकड़ है, पिछले दो बार से उसी का प्रत्याशी जीत रहा है। यहां जीत का अंतर बमुश्किल दो-तीन हजार वोट रहता है। इस बार सपा ने निवर्तमान विधायक इंदल कुमार का टिकट काटकर राजबाला को दे दिया है। बसपा की तरफ से सत्या कुमार मैदान में हैं तो बीजेपी ने जय देवी कौशल को प्रत्याशी बनाया है।
कस्बे में एक बीमा कंपनी के लिए काम करने वाले हरगोविंद बताते हैं कि 'अभी तक तो यहां सपा जीतती आई है, मगर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है। कांग्रेस तो लड़ाई में कहीं है ही नहीं।'
मुस्लिम वोट को लेकर यहां की राजनीति गर्म है। पेशे से अध्यापक राम सजीवन बताते हैं कि 'मुस्लिम वोट साधना सबके लिए चुनौती है। 8 परसेंट यादव है, कैसे जिता देंगे। जब तक मुस्लिम वोट नहीं पड़ेगा, तब तक जीत मिलनी मुश्किल है।' खेती-किसानी कर जिंदगी गुजारने वाले राधेश्याम कहते हैं, 'फलपट्टी खत्म हो गई, मंडी पता नहीं कहां बन रही है। किसान चकरा रहा है। इधर इलेक्शन में क्या हो रहा, उधर मंडी में क्या हो रहा। कारोबारी पूरा बिखरा जा रहा है।'
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