फागुन का महीना और सार का जीजा होना... : सर्वेश तिवारी श्रीमुख
BY Suryakant Pathak14 Feb 2017 2:25 PM GMT
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Suryakant Pathak14 Feb 2017 2:25 PM GMT
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फागुन का महीना सम्बन्धों का संक्रमण काल होता है। इस महीने में हर व्यक्ति किसी विशेष से अपने संबंधों को ले कर असंतुष्ट होता है, और नया सम्बन्ध कायम करना चाहता है। ससुर से अजियाससुर होने की ओर अग्रसर एक सत्तर साल के बुजुर्ग भी देवर होने को बेचैन होते हैं, तो बत्तीस नाती पोतों की दादी नानी भी ब्लू लिपस्टिक लगा कर भौजी बनने को बेकरार दिखती है। पर सम्बन्ध बदलने की सबसे ज्यादा बेकरारी होती है एक सार में। वैसे तो सार की महिमा अपरंपार है, और कहते हैं कि सार है तो संसार है, पर जिस प्रकार चुनावकाल नेताओं के लिए असंतुष्टि का काल होता है, उसी प्रकार फागुन भी सार के लिए असंतुष्टि का काल होता है। जिस प्रकार हर छुटभैया नेता बिधायक बनने को बेकरार होता है, उसी प्रकार हर सार अपने बहनोई का सार बनने को बेकरार होता है। फागुन के महीने में यदि कोई सार बहनोई एक साथ खड़े हों, और आप उनसे सम्बन्ध पूछिये तो बहनोई से पहले ही सार बोलेगा- ये मेरे सार हैं। और बहनोई बेचारा चुपचाप इतने धीरे से मुस्कुराएगा जैसे उसके मुस्कुराने से ही भूकम्प आ जाने वाला हो। पर देखने वाला बोलने वाले की बेचैनी से ही समझ जाता है, कि इनमें सार कौन है और बहनोई कौन है। वास्तव में सामान्यतः हर सार एक बहनोई होता है, और हर बहनोई एक सार। सो हर व्यक्ति सारत्व की पीड़ा और जीजत्व की लालसा को भलीभांति समझता है।
वैसे तो फागुन में हर सार जीजा होने को लालायित होता है, पर कुछ "सारों" में यह लालसा बहुत तीब्र होती है। वे इधर उधर घूमते फिरते हर परिचित अपरिचित व्यक्ति के जीजा बने फिरते हैं। ऐसे लोग दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे, जिन्हें अभी जीजा कहलाने का सौभाग्य नही मिला होता, और दूर दूर तक इसकी संभावना भी नही दिखती, और दूसरे वे जिन्हें गली मोहल्ले के सारे छोकड़े अपना सार बताते फिरते हैं। ये दूसरी प्रजाति के सार जगत-सार होने की पीड़ा से व्यथित हो कर अवसादग्रस्त हो जाते हैं, और सारी दुनिया को अपना सार बताते फिरते हैं।
फागुन के महीने में सारों को एक और संक्रमण रोग पकड़ लेता है, जिसके विषाणु उन्हें पक्का गालीबाज बना देते हैं। अब वे इधर उधर घूम घूम कर और लोगों को पकड़ पकड़ कर गाली देते फिरते हैं। यदि फागुन में कोई व्यक्ति यूँ ही गाली देता फिरे तो समझना चाहिए कि वह "साराइटिस" से पीड़ित है।
अभी कुछ दिन पहले ही जब मैं अपने छोटे भाई सुधीर के यहां गया, तो उसके दरवाजे पर ही एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझे जम के गालियां सुना दी। मैं हैरान, कि कौन है यह शैतान? पूछने पर उसने बताया कि हम सुधीर जीजाजी के सार हैं। मैंने सुधीर का कॉलर पकड़ा- क्यों बे सुधीरवे, ये कैसा सार पाल रक्खा है जो मुझे गाली दे रहा है?
सुधीर मुस्कुराया- भइया, आप साफ लेंढा आदमी हैं क्या?
हम बोले- अबे इतनी अंदर की बात तूने कैसे पता लगा ली भाई? वैसे यह बताओ कि उसने मुझे गाली क्यों दी?
सुधीर बोले- अरे भइया, आप मेरे बड़े भाई हैं न?
हम बोले- हाँ!
सुधीर बोले- फिर मेरा सार आपका भी सार हुआ कि नहीं?
हम बोले- बिलकुल हुआ। हम तो उसके बड़के जीज्जा हुए।
- फिर गाली पर क्यों भड़क रहे हैं? अरे गाली देना तो सार का जन्मसिद्ध अधिकार है।
हम बोले- बात तो सही कह रहे हो भाई, मुझे ही समझ नही आ रही थी।
सुधीरवा बोला- अरे तो जब रोज बीबी की मार खाएंगे तो बात समझ में कैसे आएगी भइया।
हम मुस्कियाये और लौटते समय सुधीर के सार को एक सौ एक रूपया दे कर बोले- मस्त रहो लल्ला, खूब गाली बको। फागुन तुम्हारा है।
असल में फागुन जिज्जावों से ज्यादा सारों का महीना होता है, क्योंकि उन्हें गाली देने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। अतः हर जिज्जे को चाहिए कि वह फागुन में सार से प्यार करते हुए उसका हर अत्याचार बर्दास्त करे।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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