राजनीतिक आलोचना सहने के लिए सहनशीलता और साहस जरूरी –प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
निदंक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय. तुलसीदास की यह पंक्तियाँ सिर्फ सामाजिक जीवन के उतरोत्तर विकास के लिए ही नहीं सही नहीं है, राजनीतिक जीवन में भी अहम् भूमिका निभाती हैं. आलोचना उसी की होती है, जिसमे कुछ होता है. अगर कोई आपकी आलोचना करे, तो हमें उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए. अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हुए खुश होना चाहिए कि अब मैं इस लायक हो गया हूँ कि लोग मेरी आलोचना करने लगे हैं. समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने यह बात पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कही. उत्तर प्रदेश की राजनीति का यह एक ऐसा चेहरा है,जिसकी सबसे अधिक आलोचना हुई. १९६७ से लेकर २०१५ तक वर्षों तक के अपने राजनीतिक सफ़र में अपनों ने भी और परायों ने भी उनकी आलोचना की. जिसके ऊपर हाथ रखा, जिसे राजनीति में आगे बढाया, एक मुकाम पाते ही, वह उनसे दूर जाकर खड़ा हो गया, उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से हाथ मिला लिया, मुखर विरोधी हो गया, मंच पर भी और समाज में भी. पर मुलायम सिंह ने इसकी कभी भी परवाह नहीं की. वे लगातार अपने स्वाभाव के अनुरूप लोगों की मदद करते रहे. अपनी शरण में आये किसी को निराश नहीं किया. पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया. मन में कभी भी किसी के लिए मैंल नहीं रखा. सिर्फ बंद कमरे में ही लोगों को नहीं समझाया, मंचों से भी अपने लोगों की कमियों को उजागर किया. जो सही दिखा, उसके हमेशा पक्ष में खड़े रहे, चाहे उसके लिए कितना नुक्सान क्यों न हुआ है. आज अपने सुपुत्र को प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी मात्र इसलिए सौप दी, क्योंकि प्रदेश सरकार अखिलेश के कारण प्रदेश में चुनाव जीती थी. तमाम लोगों ने कहा, कि यह ठीक नहीं है, उनके इस निर्णय की आलोचना भी की, पर वे अपने निर्णय से डिगे नहीं. उनके इसी स्वभाव और जिद के कारण अखिलेश को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली.
उन्होंने इसी मंच ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा कि राजनेता को सहनशील और साहसी होना चाहिए. क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि राजनेता सहनशील नहीं होगा, तो अपनी हनक, अपने पद, अपनी सत्ता का दुरुपयोग करके अपने विरोधियों को निपटाने के लिए अपराध करने लगेगा, जो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर बदनुमा दाग बन जाएगा. एक प्रतियोगिता भी शुरू हो जायेगी. जिसकी सत्ता होगी, वह सत्ता से बाहर लोगों पर तरह –तरह से अत्याचार – दुराचार करेगा. यह उनके साथ हुआ था. उनके भाई शिवपाल सिंह और वर्तमान में काबिना मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आने वाले उनके सभी करीबियों पर पिछली सरकार ने मुकदमा कायम करवा दिया था. कोई घर नहीं बचा था, जिस पर मुकदमा न किया गया हो. किसी-किसी घर में तो चार-चार युवा थे, उन सभी पर मुकदमा कायम हुआ था. सत्ता आयी, वे मुकदमे वापस ले लिए गये. क्योंकि राजनीतिक विद्वेष के कारण कायम कराये गये थे. किन्तु उन्होंने बदले की भावना से कोई काम नहीं किया. जिन लोगों ने उन पर मुकदमे कायम करवाए थे, उनको माफ़ कर दिए. अपनी पार्टी के अन्य नेताओं से भी वे इसी प्रकार की अपेक्षा रखते हैं. सभी नेता सहनशील बनें.
वे इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि व्यक्ति साहसी नहीं है, तो उसे राजनीति में नहीं आना चाहिए. राजनीति एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिस पर आने पर सबसे पहले उसे डराया-धमकाया जाता है. यदि वह डर गया, तो उसकी कोई पहचान नहीं बन पाती है, वह किसी की पहचान के साथ ही अपनी पहचान कायम रख पता है. राजनेताओं को बड़े खतरे उठाने पड़ते हैं. जनता के खिलाफ आन्दोलन में सत्ता से टकराना पड़ता है. लाठी – डंडे खाने पड़ते हैं. तमाम तरीके से उसे डराया-धमकाया जाता है. बिना साहस के वह एक दिन भी यहाँ नहीं रुक सकता है. आलोचना भी सहने के लिए बड़े ही साहस की जरूरत होती है. आलोचना वही सह सकता है, जो साहसी होगा.
प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक व पत्रकार