" दारू के दोकान"...........धनंजय तिवारी
BY Suryakant Pathak10 Feb 2017 5:23 AM GMT
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Suryakant Pathak10 Feb 2017 5:23 AM GMT
"चाचा, ऐ चाचा ! जागल बाड़ ?" चिल्लात केहू असोरा में घुसल। रात के करीब ९ बजत रहे अउरी जाड़ा के दिन रहे। देहात में ऐ समय लगभग पूरा गाँव सुत जाला पर चुकी हम अउरी दीदी रात दस बजे तक पढ़ी जा ऐ वजह से माई अउरी बाबूजी भी जागल रहनी सभे। माई नीचे बैठ के बोरसी तापत रहली जबकि एगो चौकी पे रजाई ओढ़ के बाबूजी लेटल रहनी। दूसरा चौकी पर हमनी के पढ़त रहनी जा।
"के ह ?" बाबूजी हडबडा के अपना बिस्तर से उठनी।
"हम हई चाचा। सुन्दर"
"हई के ह ?"
"गोण लागतानी बाबा। हम हई सुग्रीब"
"खुश रह। ते त ऐसन मफलर लपेटले बाड़े की चिन्हाते नइखे। आव बईठ लोग" ई कहत बाबूजी उठके बैठ गईनी। उहो लोग एक तरफ चौकी पर बैठ गईल लोग'.
"हम त कही की तू सुत गईल होखब। संजोग ठीक बा कि जागल बाड़" घबरायिल आवाज में सुन्दर भैया कहले।
"का बात ह हो सुन्दर ? तू बड़ा घबरायिल लाग तार ? कौनो परेशानी बा का?" बाबूजी सुन्दर भैया के घबराहट देख के पूछनि।
"बाते ऐसन बा बाबा। रउवा सुनब त रउवा भी परेशां हो जाएब" सुग्रीव कहले।
ई सुनके बाबूजी भी तनिक चिंतित हो गईनी अउरी रजाई उतार देहनी।
"का बात ह ? कह"
"मोड़ पर दारू के दुकान खोलाता" सुन्दर भइया कहले।
"का बात करतार ? वोइजा त हाई स्कूल बा। वोइजा कईसे दारू के दुकान के लाइसेंस मिली" बाबूजी आवेशित होके कहनी।
"इ सच बा बाबा। रामचरण सेठ के लाइसेंस मिल गईल बा."
"रामचरण सोनार ?"
"हा चाचा। वोहिके। पईसा के दम पर वोके दोकान के लाइसेंस मिल गईल ह। अब त गाँव ज्वार के बच्चा कुल बिगड़ जइह सन। हमरा नइखे लागत कि अब कुछु हो भी सकेला। वोकरा जेतना पईसा वाला अउरी पावरवाला के बा ऐ इलाका में" सुन्दर भैया मायूसी से कहले।
"वोही सार के हिम्मत बा." बाबूजी के मिलिट्री वाला जोश आ गईल "पईसा के बल पे उ जवन चाहिये उ करिहे। हम देखतानी की कैसे उ स्कूल के पास दारू के दुकान खोलेले। तह लोग जाके सुत लोग। काल्ह गाँव के मीटिंग बैठी"
बाबू जी से तिहा पाके सुदर भैया अउरी सुग्रीव चल गईल लोग।
"रउवा ऐ फेर में मत पड़ी" अब तक चुप माई कहली "ऐ गाँव के लोग के का भरोसा बा? काल्ह वोकरा से जाके मिल जाई लोग अउरी फेरु रउवा अकेले पड़ जाएब। सब काम में रउवा के आगे बढ़ा के इ लोग राउरे पैर खिचेला लोग"
"तू चुप रह." बाबूजी क्रोधित होके कहनी " बात ई खाली हमार या हमरा गाँव के ही नइखे। पूरा जवार अउरी बच्चन के भविष्य के बा. हम चुप होक नईखी बैठ सकत"
माई आगे कुछु न कहली अउरी हमनी के सुते खातिर चल गईनी जा।
बात ई तब के ह जब हम नौवी में रहनी। गाँव के मोड़ पर हाई स्कूल रहे जहा के करीब १० km के दायरा के गावन के लईका, लईकी पढ़े आवसन। करीब दसगो दुकान रहली सन जहा किराना अउरी खाये पिए के सामान मिले। साझी खान वोइजा सब्जी के बाजार भी लागे। हमरा गाँव से करीब पांच किलो मीटर दूर एगो बड़हन क़स्बा रहे जहा की रामचरणसेठ के दुकान रहे। पहिले त उनके सोनारी के दुकान रहे पर बाद में कई जगह शराब के दुकान खुल गईल रहे अउरी नेता कुल से भी उनकर काफी घनिष्ठ सबंध रहे।
बाबूजी फ़ौज से रिटायर होके आइल रहनी अउरी गाँव ही नाही पूरा जवार में बड़ा रसूख रहे जवना के मुख्य वजह नियम कानून के जानकारी अउरी अंग्रेजी के अच्छा ज्ञान रहे। दूर दूर से लोग उहा से कानून के जानकारी अउरी अंग्रेजी में कागज वाचे या दरखास लिखवावे खातिर आवे लोग। फ़ौज में रहिके भी बाबूजी दारू के हाथ न लगायी अउरी ऐ वजह से उहा के ढेर सम्मान के नजर से देखल जाऊ। शुरू शुरू में गाँव में जेतना सामाजिक कार्य होखे वोइमे बाबूजी बढ़ चढ़ के भाग ली। पर हर काम के अंत पे गाँव के कुछ लोगन के स्वार्थ हावी हो जाऊ अउरी ए बात पे बाबूजी से विवाद हो जाऊ। उहा के ईमानदारी के वजह से ए लोग के खाए के न मिली अउरी एही से झगडा होखे। ऐ वजह से बाबूजी अब अपना के गाँव के काम से अलग रखे के ईरखा ध लेहनी, पर अगर केहुके अगर कवनो कानूनी मदद के जरुरत होखे या दरखास लिखे के त उ जरूर क दी।
लेकिन दारू के दोकान के वजह से बाबूजी अपना अपना ईरखा के त्याग क देहनी काहे से कि इ ईगो साफ़ सुघर समाज के अस्तित्व के सवाल रहे। सवेरे ही हमरा दुवार पर पूरा गाँव तथा आसपास के गावन के लोगन के भीड़ जुट गईल। लोग बड़ा क्रोधित रहे अउरी ई साफ़ जाहिर रहे कि रामचरण सेठ के पईसा अउरी पावर के लोगन के कौनो भय न रहे। यहाँ तक की गाँव ज्वार के बड़ा बड़ा पियक्कड़ भी एकरा खिलाफ रहल सन। पियक्कड़ भईला के बाद भी ओ लोग में इ चेतना जिन्दा रहे कि उ आपन लगावल पौधा के बड़ा होखे से पाहिले ही वोकरा मिटटी के ना खोदे के चाही। अधिकतर केहू केई विचार रहे कि अभिये चलके रामचरण के सबक सिखावल जाऊ। ओइजा कुछ लोग रामचरण के हितैषी भी रहे जे कभी उनका इहाँ से उधार लेउ या कामिसन खाऊ। उ लोग तुरंत एकर विरोध कईल लोग पर हमरा गाँव के सबसे बड़का लठधर भीम भैया माने के तैयार न रहले। कई साल हो गईल रहे गाँव में मार भईले अउरी तबसे उनकर लाठी के तेल पियावल पानी में जात रहे। उनका नजर में ई तेल के पईसा वसुले के बढ़िया मौका रहे। एकरा अलावा भी उनका ऐ उतावलापन के दूसर कारन रहे। रामचरण उनका के एक बार उधार देहला से मना का देहले रहले अउरी भीम भाई अपना के बहुत अपमानित महसूस कईले। उ अपना वो अपमान के हिसाब भी एही से चुका लेबे चाहत रहले एगो अउरी बड़का पियक्कड़ राजेंद्र भैया के विचार रहे कि उ ए मामला के शांतिपूर्ण समाधान निकाल सकत रहले। कभी कभी दारुखाना में वो लोग के मुलाकात होखे अउरी उनकर विचार रहे कि वोहिजा दारू में जहर पिलाके उनकर काम तमाम क दिहल जाऊ.
"फौजी बाबा हमार बात मानी त, ताश के मुकाबला हो जाऊ रामचरण सेठ से" गाँव में सबसे बड़का ताश के खिलाडी, सबसे बड़का दारुबाज अउरी महा जुवारी छांगुर कहले " एक ही दांव से ससुर से उनकर दुकान जीत लेब। हम दाँव में आपन पूरा सम्पति लगावे के तैयार बानी" कहिके गर्व से अपना मूंछ के ताव देहले।
"सबरे ही पियले बाड़े का रे?" सुन्दर भैया डटले "तोरा लागे बटले का बा दाँव पे लगावे खातिर। सब खेत त ते दारू अउरी जुवा में उड़ा देहले। ऐगो टूटल मडई पे रामचरण तोरा से जुवा खेली"
अउरी कईगो विचार आइल एकरा समाधान के जवन की कानून सम्मत न रहे। बाबूजी के गुस्सा त जल्दी आवे पर फ़ौज में रहला के वजह से उहा के कानून के अपना हाथ में लेहला के विरोधी रहनी। हमेशा उहा के कानून के ही सहारा ली अउरी एमे उहा के सफलता भी मिले। उहा के आपन विचार रखनी की ए मामला में क़ानून के सहारा लियावु अउरी सब लोग ऐई पर सहमती दे देहल। ईहो सहमति भईल कि मोड़ पर केहू उनके दारू के दुकान खोले खातिर आपना दुकान न दी। तुरंत ही दरोगा, बी.डी.ओ. अउरीडी.म. के दरखास लिखा गईल। शाम तक बाबूजी गाँव के लोगन के साथ दरखास देके चल आयिनी।
अब गाँव में सुबह शाम बैठकी होखे लागल अउरी हमार गाँव जिला जवार खातिर एकजुटता के मिसाल हो गईल। तमाम कोशिश के बावजूद एक महिना में कानून से कवनो रोक के आदेश न मिल पावल पर बाबूजी अउरी गाँव के लोग निराश न रहे। रामचरण के दुकान न खुल पावल काहे से कि अभी तक उनका के केहू दुकान देबे के तैयार न रहे।
एक दिन सबेरे सबेरे बड़ा शोर गुल से हमनी के नींद खुल गईल। बड़ा जोर जोर से झगडा के आवाज आवत रहे। गईला पर पता चलल कि भीम अउरी सुन्दर भैया एक तरफ रहे लोग अउरी दूसरा तरफ विक्रमा। दुनु तरफ से लाठी निकलल रहे। विक्रमा के घर में भी स्वांगी के कमी न रहे अउरी पांचू भाई लाठी निकला के खड़ा रहे लोग. बाबूजी दौड़ के जाके बिच में खड़ा हो गईनी। तब पता चलल की विक्रमा मोड़ पर आपन दुकान रामचरण सेठ के दे देहले रहले। भीम भैया अउरी सुन्दर भैया एहिके के विरोध करत रहे लोग। कुछ ही देर में पूरा गाँव इकठ्ठा हो गईल। बाबूजी के भी बड़ा खीस बरल अउरी साथ ही उहा के बड़ा आश्चर्य भईल कि गाँव के कई लोगन के विक्रमा के साथ रहे। गाँव में फूट एकदम सामने रहे अउरी बाबूजी समझ गईनी की रामचरण के पैसा अब गाँव के लोगन के संकल्प पे भारी पडत रहे। रामबिहारी मास्टर खुल के विक्रमा के समर्थन में आगे आ गईले अउरी बाबूजी से गरमा गरम बहस चालू हो गईल। रामचरण के एजेंट लोग भी मास्टर साहेब के साथै हो गईल लोग अउरी मास्टर साहेब बाबूजी के देख लेबे के चुनौती दे देहले। वैसे त बाबूजी मास्टर साहेब के धमकी के कुछ न समझी काहे से की उहा के १९७१ के लड़ाई लड़ चुकल रहनी अउरी एकर जबाब देहल उहा के बाये हाथ के खेल रहे पर उहा के हिंसा के विरोधी रहनी। संख्या बल के हिसाब से अभी भी रामचरण के विरोधी के संख्या ज्यादा रहे। कुछ ही देर में घर घर से लाठी निकला गईल पर बाबूजी बड़ा मेहनत क के सबके शांत कईनी। तय भईल की कानून से ही मामला के निपटारा होई।
एक महिना अउरी बीत गईल पर दुकान न खुलल काहे से की अब ऊपर से नोटिस आ गईल रहे दुकान न खोले के। सुन्दर भैया, उनकर चेला सुग्रीव अउरी भीम भैया नियमित रूप से सुबह शाम आवे लोग बाबूजी से चर्चा करे अउरी चाय पिए।
फेरु कुछ दिन बाद इ सिलसिला बंद हो गईल। कई दिन से वो लोग के कुछ पता न रहे। एक दिन शाम के चिमनी के तरफ से खेल के लौटत घरी हम सुन्दर भैया के रामचरण के साथे हस हस के बतियावत देखनी। हम तुरंते आके बाबूजी के इ बात बतवनी पर उहा के विश्वास न भईल। अगिला दिने सबेरे खुद सुन्दर भैया अयिले भीम भैया अउर सुग्रीव के साथे।
"कहा रहल ह लोग हो एतना दिन से?" बाबूजी उलाहना से पूछनी।
"चाचा एगो बात कहे के बा." सुन्दर भैया बाबूजी के जबाब ना देके कहले "ई बताव अगर हमनी के दू पैसा कमाई जा। हमनियो के घर में दुनु बेरा तरकारी बने त तहरा कवनो हर्ज़ बा?"
"नहीं हमरा काहे हर्ज़ होई अगर तू दू पैसा कमा त" बाबूजी उनकर बात न समझ के कहनी।
"तू त जानते बाद की हमनी के लगे कवनो कमाई भी नइखे न तहरा खान पेंशन। खेती भी केतना बा इ त जानते बाड़."
"तू पहेली मत बुझाव। साफ़ कह"
"चाचा हमनी के रामचंरण के दारू के दुकान में नौकरी मिलता। हमके चौकीदार के अउरी सुन्दर के मुनीम के। सुग्रीव्वा वोहिजा अंडा के दोकान लगायी" भीम भैया कहले।
"का बात करतार तह लोग ? पागल त नइख न भईल लोग। अब तह लोग दारू के दुकान में काम करब लोग." बाबूजी खिसिया के कहनी।
"एईमे हर्ज़ का बा बाबा ?" सुग्रीव कहले "शहर में भी त लोग दारूखाना में काम करेला। बुराई त तब बा जब हमनी के खुद पी जा."
"वइसे देख चाचा त शराब कवनो एतना बुरा भी चीज ना ह, नात बच्च्न साहब के बाबूजी वोइपर किताब थोड़े लिखते." सुन्दर कहले
"अमिताभ के बाबूजी भी मधुशाला के पैरवी कईले बाड़े."
" इ तहके के बतावल ह . तू त एतना नइखे पढले." अनपढ़ गवार लोग के मुह से मधुशाला के चर्चा सुन बाबूजी चिहा के पूछनी।
"मास्टर साहेब" भीम भैया सीना चौड़ा क के कहले "अब जाके हमनी के बुझाईल ह कि शराब एतना ख़राब न होला."
"पर तह लोग के उ विरोध अउरी गाँव के भविष्य के का होई" बाबूजी दुखी होके कहनी "तह लोग के तनिको ई ख्याल बा कि आवे वाला पीढ़ी हमनी के ख़राब हो जाई."
"ई न होई चाचा। जब हमनी के वोहिजा नौकरी करेब जा त गाँव के लोगन पे भी ध्यान रखेब जा। फेरु हमनी के नया पीढ़ी कैसे ख़राब होई."
बाबूजी बुझ गईनी कि अज्ञानता पे लालच अउरी स्वार्थ आपन रंग चढ़ा देले बा। अब समाज के अच्छाई अउरी बुराई के परिभाशा भी बदलाता। ऐ लोग के ढेर समझवाला के कवनो फायदा नइखे।
"तह लोग का चाहत बाड़ लोग ?" दुखी मन से बाबूजी पूछनी।
"उ दरखास वापस लिया जाऊ."
"गाँव के अउरी लोग से भी पूछा जाऊ। हम अकेले कैसे इ निर्णय ले सकेनी" बाबूजी कुछ देर सोच के जबाब देहनी।
कुछ देर में गाँव के लोग भी जुट गईल अउरी बाबूजी के ई जानके तनिको आश्चर्य न भईल कि ऐ लोग के साथे गाँव के अधिकतर लोग रहे। मने बाबूजी के छोड़ के लगभग सब केहू अब शराब खोलला के पक्ष में रहे। ई बड़ा अजीब स्थिति रहे पर इहे गांव के विशेषता ह। जवना बात के विरोध में पहिले सगरी गांव के एकजुट खड़ा रहे आज ओहि बात के सपोर्ट के एक साथे खड़ा रहे। ओइदिन एक दूसरा पर लाठी ताने वाला विक्रमा अउरी भीम भैया आजुएक दुसरे के गले में हाथ डाल के खड़ा रहे लोग। अच्छाई पे बुराई के जीत होत रहे मास्टर साहब मंद मंद मुसकुरात रहनी कि फौजी के उहाँके मात दे देहनी जबकि बाबूजी में दुखी रहनी कि अब त आवे वाला पूरा पीढ़ी खतरा में रहे। एक हफ्ता में दारू के दोकान खुल गईल अउरी तीनो जाना के नौकरी भी लाग गईल। आजु ऐ बात के लगभग पच्चिश साल बीत गईल बा अउरी गाँव में काफी तरक्की हो गईल बा। स्कूल त एके बा पर दारू के चारगो अउरी दुकान खोला गईल बा। सुन्दर भैया, भीम भैया अउरी सुग्रीव बाबूजी से कहल अपना वादा पर खरा न उतर पावल लोग अउरी खुद जवार के बड़का पियक्कड़ बनके स्वर्ग सिधार गईल लोग। एक जाना के गुर्दा ख़राब भईल, एक जाना के फेफड़ा अउरी एक जाना के लीवर। गाँव के लोगन के भी शराब से दूर रखे के बात गलत भईल अउरी गाँव के ९०% लोग अब सुबह शाम ऐ सोमरस के आनंद उठावता। मास्टर साहब रिटायर होके फुल टाइम पियक्कड़ बन गईल बानी अउरी सगरी दारू के दुकान पे लरियायिल रहेनी। कबो केहू चेला भेट जाला वोइदीन उहाँ के दावत रहेला। सुग्रीव के लईका अब अपना बाबूजी के जगह पे अंडा बेचता। सुन्दर अउरी भीम के लईका लोग अब मुंबई जाके सिक्यूरिटी गौर्ड बन गईल बा। कभी कभी मास्टर साहेब बाबूजी के सामने आ जानि त विजयी भईला के घमंड में मूडी ऊपर उठवला के जगहि लाजे उहाँ के आँख से दुगो आंसू टघर जाला जवन ऐ बात के गवाह ह कि उहाँ के गाँव के चारित्रिक पतन खातिर खुद के उत्तरदायी बुझेनी। रामचरण के पूरा जिला में शराब के सैकड़ो दुकान खुल गईल अउरी अब उ सांसद बन गईल बाड़े पर तबो पूरा गाँव में एगो बाबूजी ही अईसन आदमी बानी जेके देख के उ झुक जाले अउरी प्रणाम करेले जवन कि ऐ बात के निशानी ह की बुराई चाहे केतनो ऊपर उठ जाऊ पर ओके अच्छाई के सामने नवे के पड़ेला अउरी उ सत्य अउरी अच्छाई पे कभी भी विजय नइखे पा सकत।
धनंजय तिवारी
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