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रेनकोट.....मर्यादा तोड़ी भी तो वेलेंटाइन सप्ताह में : सर्वेश तिवारी श्रीमुख
BY Suryakant Pathak10 Feb 2017 5:11 AM GMT
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Suryakant Pathak10 Feb 2017 5:11 AM GMT
प्रधानमंत्री द्वारा दी गयी "रेनकोट पहन कर नहाने" वाली उपमा ने सदन की मर्यादा को इतना तार तार किया, कि एकाएक पुरे देश को याद आ गया कि भारत में कुछ बर्षों पूर्व तक मर्यादा नाम की भी एक वस्तु होती थी। लोगों ने याद करना सुरु कर दिया कि उन्होंने आखिरी बार मर्यादा को कब देखा था। देश के कुछ बुद्धिजीवी युवाओं ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने कभी मर्यादा को देखा नही है, अतः मर्यादा रानी पद्मावती की तरह एक काल्पनिक पात्र हैं। फेसबुक पर सक्रीय अतिराष्ट्रवादी युवाओं ने पता लगाना प्रारम्भ कर दिया कि यह मर्यादा मेल है फीमेल, ताकि फीमेल होने की स्थिति में शीघ्र ही उसे मित्रतानुरोध भेज कर उसके हृदय में स्थान बनाया जा सके। कुछ जानकार बुजुर्गों ने बताया कि भारतीय राजनीति के इतिहास में अंतिम बार मर्यादा तब दिखी थी जब सुभाष चंद्र बोष ने अपने सबसे बड़े विरोधी गांधी को महात्मा कहा था, उसके बाद से मर्यादा कहाँ फरार हो गयी आज तक पता नही चला।
वैसे प्रधानमंत्री ने मर्यादा को "तार तार" कर के बहुत बड़ा अपराध किया है। अगर वे युवा होते तो जनता यह सोच कर माफ़ कर देती "कि बच्चों से गलतियां हो जाती हैं", पर एक बुड्ढे का मर्यादा तोडना तो कहीं से भी माफ़ी के लायक नही है। और मर्यादा तोड़ी भी तो किसकी? संसद की। आम आदमी या आम समाज की मर्यादा तोड़ी होती तो कोई बड़ी बात नही थी, वह तो बड़े लोग रोज ही तोड़ते रहते हैं, पर संसद की मर्यादा क्यों तोड़ी? संसद क्या मर्यादा तोड़ने की जगह है? अरे मजाक का मन था तो किसी के ऊपर कुर्सी फेंक देते, कोई अध्यादेश फाड़ देते, अध्यक्ष के हाथ से रजिस्टर छीन के फाड़ देते, मर्यादा तोड़ने की क्या आवश्यकता थी? अगर ज्यादा ही मन ख़राब था तो संसद के किसी कोने वाली सीट पर बैठ कर ब्लू फिल्म देख लेते, इससे संसद की मर्यादा नही टूटती। पर नहीं, इस प्रधानमंत्री को तो सिर्फ तोडना आता है। कभी किसी पार्टी की कमर तोड़ता है, कभी देश के हजारों अमीरों, राजनेताओं का दिल तोड़ता है, कभी राष्ट्रवाद की बात कर के देश तोड़ता है और कभी संसद की मर्यादा तोड़ता है। भारत की जनता ने कभी ऐसा तोड़ू प्रधानमंत्री नही देखा। भारत की जनता को तो जोड़-तोड़ कर बनने वाले जोडू प्रधानमंत्रियों की आदत है, यह तोड़ू किधर से आ गया?
इस प्रकरण में सबसे बुरी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने मर्यादा तोड़ी भी तो वेलेंटाइन सप्ताह में तोड़ी। वेलेंटाइन सप्ताह क्या मर्यादा तोड़ने के लिए होता है? अरे चॉकलेट डे का दिन था, अमित शाह या राजनाथ सिंह जैसे किसी दोस्त की पॉकेट से पांच सौ रुपये चुरा कर किसी को चॉकलेट देते या आधुनिक युवाओं की तरह किसी पार्क की झाड़ी में छिप कर समाजवाद की स्थापना करते, यह मर्यादा तोड़ कर देश के बुजुर्गों को मर्यादा की याद दिलाने की क्या आवश्यकता थी? अब तो बुड्ढों को मर्यादा याद आ गयी, अब वे युवाओं को बार बार मर्यादा की याद दिला कर वेलेंटाइन डे का सत्यानाश कर देंगे। इस तोड़ू प्रधानमंत्री को तो युवाओं की हाय लगेगी।
प्रधानमंत्री को देश के युवाओं से माफ़ी मांगनी चाहिए और अपने पूर्ववर्ती तथा अन्य साथी सांसदों से मर्यादा की रक्षा के गुर सीखने चाहिए। वे उन्हें बता सकते हैं कि किस तरह संसद में नोटों की गड्डी उड़ा कर सदन की मर्यादा बचाई जाती है, किस तरह शराब के नशे में सदन में तमाशा कर के सदन की मर्यादा बचाई जाती है, या किस तरह संसद में सर्वसम्मति से सांसदों के लिए "घोटाले का अधिकार" कानून पास करा कर उसकी गरिमा बढ़ाई जाती है। प्रधानमंत्री सीखना चाहें तो साथी सांसद उन्हें बहुत कुछ सीखा सकते हैं।
वैसे उत्तर प्रदेश जैसे मर्यादित राज्य के चुनावों के समय "जहां एक नेता पूरी मर्यादा के साथ सरेआम दूसरे नेता की बेटी मांगता है" प्रधानमंत्री ने "रेनकोट पहन कर नहाने" जैसे अश्लील मुहावरे का प्रयोग कर जो अपराध किया है, जनता उसकी सजा उन्हें जरूर देगी। जय जनता...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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