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त्यौहारों में क़ीमत नहीं बढ़ने देगी सरकार

त्यौहारों में क़ीमत नहीं बढ़ने देगी सरकार
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नई दिल्लीः कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है. दाल, चीनी और कुछ सब्ज़ियों की आसमान छूती क़ीमत से परेशान मोदी सरकार त्यौहारों के सीजन से पहले ही चेत गयी लगती है. सरकार ने राज्यों से ज़रूरी चीज़ों के दाम नियंत्रण में रखने के अलावा मिलावट पर रोक लगाने के लिए सख्त क़दम उठाने का निर्देश दिया है. केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव हेम पांडे और राज्यों के अधिकारियों के बीच आज हुई एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई.

त्यौहारों के सीजन में खाने पीने की चीज़ों में मिलावट की शिकायत आम रहती है. खाने के तेल, दूध और दूध से बनी चीज़ों, जैसे खोया और पनीर में मिलावट का मामला सामने आता है. ऐसे में आज की बैठक में केंद्र ने राज्यों से ऐसे मामलों में विशेष ध्यान देने को कहा है. राज्यों को निर्देश दिया गया है कि मिलावट रोकने के लिए अपनी एजेंसियों से लगातार निगरानी करवायी जाए. ज़रूरत पड़े तो छापे की कार्रवाई कर ऐसे व्यापारियों पर कड़ी नज़र रखी जाए. राज्यों से ऐसे मामलों का पता लगाने और उनसे निपटने के लिए एक विशेष टीम भी गठित करने के लिए कहा गया है. डब्बा बंद खाने के सामान पर भी सरकार की नज़र है और इसलिए केंद्र सरकार ने ऐसे मामलों में बड़े-बड़े मॉल्स पर भी निगरानी रखने के लिए राज्यों को कहा है.

वैसे मोदी सरकार की प्राथमिकता फिलहाल दाल की क़ीमत को किसी तरह नीचे लाने और उसको नियंत्रित करने की है. सरकार ने इसके लिए एक बहुआयामी प्लान भी तैयार किया है.

सरकार का पहला लक्ष्य दालों की मांग और आपूर्ति में अंतर कम करना है. इस साल अच्छे मॉनसून से दाल के उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी की संभावना है. एक अनुमान के मुताबिक़ इस साल दालों का उत्पादन 200 लाख टन तक हो सकता है जो पिछले सालों से 30 लाख टन ज्यादा है. वहीं दाल की कुल मांग 230 लाख टन के क़रीब है. ऐसे में सरकार को आपूर्ति के लिए पिछले सालों के मुक़ाबले इस साल आयात पर कम निर्भर रहना पड़ेगा. दूसरी तरफ़ चावल और गेहूं की तरह सरकार ने दालों का बफर स्टॉक यानि सुरक्षित भंडार भी बनाने का बड़ा फ़ैसला किया है.

लोगों तक सही दाम में दाल पहुंचाना अगली चुनौती है. आज की बैठक में उपभोक्ता मामलों के सचिव हेम पांडे ने राज्यों के अधिकारियों विशेष तौर पर कहा है कि वो अपने अपने राज्यों में दालों की थोक और ख़ुदरा क़ीमत में अंतर को कम करें. मिसाल के तौर पर जहां कोलकाता में ये अंतर सिर्फ़ 7 से 8 फीसदी है तो चेन्नई, दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में ये अंतर 28 से 30 फ़ीसदी है. मतलब ये कि इन शहरों में ख़ुदरा व्यापारी दाल पर 28 से 30 फीसदी तक मुनाफ़ा कमा रहे है. राज्यों ने भरोसा दिलाया है कि त्यौहारों से पहले ही थोक और ख़ुदरा व्यापारियों के साथ बैठक कर इसका समाधान निकालेंगे.

सही दाम पर दाल उपभोक्ताओं तक पहुंचे इसके लिए सरकार कुछ वैकल्पिक व्यवस्था लाने पर भी विचार कर रही है. सरकार बिग बाज़ार जैसे बड़े रीटेल आउटलेट्स के माध्यम से भी दाल और कुछ दूसरी चीजें बेचने का मन बना सकती है. ऐसा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि केंद्र के लगातार अनुरोध के बावजूद कई राज्य केंद्र से उस दाम पर दाल ख़रीदने और बेचने में आनाकानी कर रही हैं जो दाम केंद्र ने तय किए हैं. मसलन केंद्र सरकार राज्यों को अरहर दाल 67 रूपये प्रति किलो और उड़द दाल 82 रूपये प्रति किलो पर देने को तौयार है बशर्ते राज्य सरकारें उसे 120 रूपये प्रति किलो से ज्यादा पर न बेचें.

वैसे इस साल उत्पादन में संभावित बढ़ोत्तरी से दिसंबर तक दालों की क़ीमत में ज़बर्दस्त गिरावट को लेकर भी सरकार सशंकित है. अधिकारियों का मानना है कि उत्पादन बढ़ने से दामों में गिरावट का असर किसानों की आमदनी में गिरावट के रूप में भी पड़ सकता है.

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