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व्यंग ही व्यंग

बद अच्छा बदनाम बुरा!

बद अच्छा बदनाम बुरा!
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अपराध जगत की दुनिया की सबसे बड़ी सिफत यह है कि एक बार थाने में ठीक से रजिस्टर्ड हो गये तो.. "आसपास कोई भी घटना घटी तो एक साथ बहुतेरों की फटी" उसने, जिसने जुर्म को अंजाम दिया तथा उन सब की भी जो विगत कई साल पहले ऐसे ही किसी केस में थाने में पेश हो चुके हों. यहाँ तक की उनके परिवार तक की जान पत्ते पे अटक जाती हैं.

कोई पूर्व अपराधी, भले ही अपराध से तौबा करके भगवद्भजन में लगा हो, ससुराल के विवाह में कैमरा लेकर टहल रहा हो. अस्पताल में किसी की तीमारदारी कर रहा हो. उसे ज्यों ही खबर होगी कि फलाने जगह यह घटना घट गई, तो ये जानते हुए भी कि वह निर्दोष हैं.. चहारदीवारी फांदकर भागता है.. क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम है कि उसे पुलिस के सामने ये सिद्ध करने में हफ्तों लग जायेंगे कि फलां दिन, फलां टाइम हम अपने ससुराल दूल्हे की गाड़ी में बैठकर फलां जगह जा रहे थे. शादी कार्यक्रम में मेरे साथ फलां-फलां लोग थे. जब तक यह सिद्ध होगा तब तक पुलिस की दर्जनों लाठियाँ उसकी पीठ पर होम हो चुकी होगीं. यदि वो खुद को निरपराध सिद्ध कर पाया, तो भी लाठियाँ तो वापस होंगी नहीं..ऊपर से थाने-पुलिस में जो खर्च होगा उसकी कोई गिनती ही नहीं.. सो ऐसे पूर्व पंजीकृत अपराधी मौके पर से भाग खड़े होने में ही अपनी भलाई समझते हैं. उनके परिवार की धड़कने बढ़ जातीं हैं.. उन्हें पूरी तरह मालूम होता है कि उसका बेटा या पति निर्दोष है या अमुक कांड में इसकी तनिक भी संलिप्तता नहीं फिर भी उनके प्राण अटके रहते हैं जब तक वास्तविक अपराधी गिरफ्तार न हो जाये.

बिल्कुल यही हाल 'मुर्गे' और 'अण्डे' का है. बेचारा मुर्गा एक बार "बर्डफ्लू" में अपराधी क्या घोषित हुआ.. तब से कोई भी वायरस का खतरा बढ़ता है. मुर्गा और उसके पूरे कुनबे की जान पर बन आती है.. वो और उसके पालक यह सिद्ध ही नहीं कर पाते कि उसका और चमगादड़ में कोई रिश्ता ही नहीं. इसलिए सबसे पहले बेचारे मुर्गे की गरदन दबोची जाती है.

ऐसे ही स्वाइन फ्लू का सम्बंध हालांकि सुअर से था, फिर भी जहां सुअर मजे से नालियों में मौज मना रहे थे, वहीं मुर्गा अपने मुर्गा होने का दण्ड भुगत रहा था।

भारत में कोरोना के दस्तक देने से पहले ही मुर्गे के दड़बे में हलचल मच गई.. बिल्कुल वैसे ही जैसे बम विस्फोट किसी देश में हो और दाऊद के गुर्गों के अड्डों पर पुलिस दबिश देना शुरु कर दें.

कोरोना महामारी में बेचारा मुर्गा और अंडा यह सिद्ध ही नहीं कर पाया कि मेरा उस वायरस के लाने या ले जाने में कोई हाथ नहीं. उससे पहले ही करोड़ों के मुर्गे और अंडे या तो औने पौने पर बेच दिये गए या फिर दफन कर दिये गये.

इसलिए कहते हैं "बद अच्छा बदनाम बुरा!"

रिवेश प्रताप सिंह

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