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व्यंग ही व्यंग

पूरे गांव को ढंक लेगी ये चादर....

पूरे गांव को ढंक लेगी ये चादर....
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जयपुरिया चादर बिकने के लिए आया है आज मेरे गांव में। रोज कोई न कोई शहर मेरे गांव पर आक्रमण कर देता है, और मेरा गांव अपनी पुरातनता को गोद में छिपाए कराह उठता है।हर दिन शहर कुछ न कुछ बेच देता है गांव को। और बदले में ले लेता है उसकी आंचलिकता उसकी मौलिकता, उसका ग्रामतत्व।गांव लड़ रहा है एक तरफ इस जयपुरिया चादर रुपी शहर से, और दूसरी तरफ नई पीढ़ी से। शहर हर चीज की कीमत लगाता है और नई पीढ़ी हर चीज की कीमत समझती है। चादर वाला कह रहा है कि- 'अरे ई चादर एतना बड़ा है कि पूरा गांव ढंक लेगा।' गांव की औरतें हंस कर कहती हैं - भक्क!! पूरा गांव को कईसे ढंक लेगा जी ?
कुछ ही साल पहले जब डाकिया 'गोबरधन मिसिर' के नाम की चिट्ठी लाता था तो पहले उत्तर टोला वाले गोबरधन चाचा के घर चिट्ठी खुलती थी। सास की तबीयत खराब जानकार रोना- पीटना मच जाता था लेकिन चिट्ठी अंत तक आते आते बता ही देती थी कि हमको पूरब टोला वाले गोबरधन मिसिर के यहां जाना था।
साधुआईन चाची के मरते ही पुरुब टोला की बिजान्ती भाभी ने अपने गाँव चिट्ठी भेजी थी कि साधुआईन चाची को 'इसवर' ने मार डाला। दसवें दिन ही भोपाल से चिट्ठी आ गई कि हम लोग तो 'इसवर मिसिर' को बड़ी बढिया आदमी बूझते थे। कांहे मार दिए... तब दुबारा से तार भेजा गया कि अरे 'इसवर मने इसवर चचा नहीं। इसवर मने भगवान् जी।
दीना काका की पतोह घर में से आवाज दे रही है कि गनेस बाबा के टीबुल पर से थोड़ा धनिया का पतई ले आइए। अब आठ बजे के निकले दीना काका बारह बजे घर आते हैं हरी हरी पतईयां लेकर। पतोह चुपचाप चटनी पीसने में लग जाती है।
सहुवाईन काकी के खड़खड़ाते रेडियो पर आठ बजे सुबह जब लता जी गाने लगतीं थीं - 'मन मेरा प्यार का शिवाला है, आपको देवता बनाना है... तो कवल बाबा का हनुमान चालीसा का पाठ,पूरे पांच मिनट तेईस सेकेंड के लिए रुक जाता था।
यही गांव है और यही इसकी आंचलिकता। अपनी नादानियों और पिछड़ेपन पर भी मस्त। कहीं जाना ही नहीं इसको तो' कॉम्पिटीशन' किससे और क्यों?
लेकिन अब बाजार ने अपना केंद्र गांवों को बना लिया है। इससे गांव भी धीरे-धीरे स्मार्ट हो रहा है। ग्लोबलाइजेशन के ऊंचे ऊंचे टाॅवर छतों पर मचल रहे हैं जिस पर टंगे कैटरीना के हाथ का डव साबुन छलक पड़ना चाहता है। 'समाजवादी उम्र' में ही पा गये लैपटॉप को देखकर मां बाप की उम्मीदें जवान हो रही हैं कि लड़का इन्जीनियर बन ही गया समझो।उधर लड़का सनी लिओन के साथ असमाजवादी हो रहा है।
इधर धोबिन हैरान है कि दुलहिनिया की पियरी, धोने के लिए लेने आई थी तो आंगन बड़ा था। अब धोकर देने आई है तो आंगन आधा हो गया। उंगली पर जोड़ती है एकम, दूज, तीज, चौथ..... हे भगवान् दसवें दिन घर का बंटवारा हो गया। गांव कराह उठता है - होगा नहीं! दुलहिनिया लक्मे का चार सौ निन्यानवे रुपये वाला ओठलाली लगाती है। माई बाबूजी का खर्चा कौन उठाता!
गांव के दोनों गोबरधन मिसिर का झगड़ा अब जिला कोर्ट से आगे हाई कोर्ट में जा रहा है। गांव कराह उठता है क्यों नहीं जाएगा ! सारा प्रेम उस चिट्ठी पर ही तो टिका था। जबसे मोबाइल में 'पैटर्न लाॅक' लगने लगे भाई से भाई दूर होता गया
बिजान्ती भौजी की लड़की उनके ही सामने सिगरेट धरा के पीती है। भौजी डांटती है कि अरे ई तुम्हारा दिल्ली नहीं है, गांव है। लड़की 'हा हा हा' करके हंसती है और कहती है जस्ट चील ममा... तुम अपने जमाने में 'इसवर चचा' और 'ईश्वर' में अन्तर नहीं जानती थी और मैं 'द गाॅड आफ स्माल थिंग्स' तक जानती हूँ।
दीना काका की छोटकी पतोहू घर से आवाज देती है- हैप्पी जरा धनिया पत्ती लाना बेटा... हैप्पी ने एक सौ पच्चीस सीसी पल्सर बाईक स्टार्ट की है। तीसरे मिनट में मम्मी धनिया पत्ती की चटनी पीस रही हैं। दीना काका चटनी खाते समय कह उठते हैं कि अब वो सवाद नहीं रहा धनिया की पतई में भी। गांव कराह उठता है - कहां से ऊ तीन घंटा वाला सवाद मिलेगा। उसमें गनेश बाबा के टिबुल की मिट्टी और आपसी मुहब्बत जो थी। इस धनिये को पैसे से खरीदा गया है...
कवल बाबा परमोदवा से कहते हैं ए बेटा कोई गाना सुनाओ। परमोदवा मोबाइल में गाना बजा देता है - आज ब्लू है पानी पानी... कवल बाबा उठ कर सोचने लगते हैं कितना बदल गया है संगीत।
गांव कराह उठता है -बदलेगा नहीं! लता जी दिल में रहतीं थीं, हनी सिंह चिप में रहते हैं...
ओह! फिर यह चादर वाला कह रहा है- बहुत बड़ी है ये चादर पूरा गांव ढंक लेगा।
हां मैं मान रहा हूँ कि यह चादर आज नहीं तो कल पूरे गांव को ढंक ही लेगा...

असित कुमार मिश्र
बलिया
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