प्राइम टाइम: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अवार्डधारी पत्रकारों की चुप्पी
BY Suryakant Pathak23 Jun 2017 6:59 AM GMT

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Suryakant Pathak23 Jun 2017 6:59 AM GMT
नमस्कार,
मैं वेतनभोगी, चाटूकार पत्रकार। पत्रकारों के पास एक विशेष पावर होती है वो है फैलाने की। आज के दौर में जब आम जनता, जो फेसबुक आदि पर नए जुड़े हैं, और जिन्हें लगता है कि जो भी बात टाइप की हुई है, वो सही है। वो जनता जो ये कहकर दूसरे से उलझ जाती है कि फेसबुक पर लिखा है, दिखा दें? वही जनता जो इस देश के तमाम चुनावों में लाठ प्रतिशत मतदान देकर लोकतंत्र तो जिताती रहती है।
उसी जनता के सामने जब आप अपने मालिक के कुकृत्यों की ख़बर को ऐसे जला देते हैं मानो सच में प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है! ये वो पत्रकार हैं जो स्टील की एक फ़ीट की नींब वाला अवार्ड हर साल ले जाते हैं। ये वो पत्रकार हैं जो अपने को इतना सीरियसली लेते हैं कि गाहेबगाहे आपातकाल ले आते हैं! वही आपातकाल जो इनके आकाओं के दौर में आया था। इन्हें पता है वो कैसा था, इन्हें पता है कि कैसे एक अख़बार का नाम लिया जाता है काला पन्ना छापने के लिए। तो ये भी काली स्क्रीन लेकर अपना इतिहास ख़ुद ही टेलीकास्ट करने बैठ गए।
रवीश कुमार जी, यूँ तो आप में जी लगाने की इच्छा नहीं होती लेकिन उम्र में बड़े हैं तो लगा रहा हूँ। आपने लालू द्वारा पत्रकार दुर्दशा देखी? नहीं ना? आँख में घोड़ा का बाल घुस गया होगा और कान में सेमल की रूई। ऐसा होता है। जब आप पत्रकारिता का दंभ तो भरते हैं, लेकिन नौकरी में ज्यादा विश्वास होता है तो आदमी वही करता है, जो आप करते हैं। फिर आपको प्रणय रॉय पर पड़े छापे में प्रेस की अभिव्यक्ति का हनन दिखता है, और पत्रकारों को पड़ते थप्पड़, गालियों के बारे में आपको पता भी नहीं चलता।
रवीश बाबू के भक्तों से भी निवेदन है। आपलोग भी वही करते हैं जो करने पर आपके प्रिय पत्रकार दूसरों को गरियाते हैं, और लम्बा-लम्बा ज्ञान देते हैं: ट्रोलिंग। कभी सिक्के का दूसरा पहलू भी देखा कीजिए। आपको पता नहीं होगा, पर होता है। रवीश बाबू भी पत्रकारिता के चपटे स्तम्भ हैं, जिन्हें भारत में तीन महीने का मौसमी इन्टोलरेन्स दिखता है, और वो फिर गायब हो जाता है। मोदी जुमलाबाज है रवीश जी, तो आप भी वही हैं, आप भी दाँत चियाड़ के हें, हें, हें जो करते हैं ना, उसका सत्य सबको पता है।
मुझे लगता है कि आपने पत्रकारिता कर ली है। अब आप नौकरी कर रहे हैं। आपको ये बात अपने भक्तों को बता देनी चाहिए कि आपसे पत्रकारिता अब नहीं हो पाएगी। आपको विनोद दुआ टाइप कुछ नया खोजना चाहिए। आप रायता इंडिया का, या फिर भारत के रंग-बिरंगे पक्षी टाइप का कोई शो कीजिये, मैं पैसे देकर देखूँगा।
काहे कि आप भी बिहारी, हम भी बिहारी, ये बात अलग है कि हमारा भाई सेक्स रैकेट नहीं चलाता! ये न्यूज़ चलाए थे अपने चैनल पर?
नमस्कार।
अजीत भारती
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