गांव का प्रेम और जवानी का जोम

कहते हैं गांव का प्रेम और जवानी का जोम बड़ी बेखबर चीज होती है...ठीक वैसे ही जैसे बसंती बहार... जैसे गंगा माई का कछार और जैसे चंदन और प्रीति जी का प्यार....
कौन चंदन ? कौन प्रीति ...?
उफ्फ ...भूल गए ना जी...? क्या करियेगा हम भी तो भूल ही गए हैं...एक हम-एक वो...कुछ सपने.. इनके बीच अपने...अपनो का धागा...प्रेम निकल के भागा...😊
अरे छोड़िये भी... हम भी बस खुद में ही अटके रहते हैं....।
हां तो हम कह रहे थे कि... जवानी की मोजर और बांस की कोंपल...बड़ी ही मुलायम...बड़ी ही इश्क चीज होती है ...एकदम मिसिर जी की छलकती आंखों के माफ़िक...मने ऐसी कि डियर भौजाई मिसिर जी के आंख के गड़हा में जिनगी भर डूबने को गोता मार दें...
ऐसा प्लान तो ससुर जियो भी ना दे पाया जी...।
जिंदगी की रेस और महबूब की फेस की कीमत शायद हम गांव वालों से बेहतर कोई समझ ही नहीं सकता... वरना क्या ही जरूरी था कि उहे अपना पवनवा अपना अरमान के गठरी के बेच उन्हीन के लिए माथे का ताज खरीदता ? और क्या ही जरूरी था कि प्रीति जी को करेजा का गृहमंत्री बनाने के लिए अपने मिसिर जी तड़ीपार हो जाएं ?
सच मे इश्क तो यूनिनॉर ही था...
इधर एक वो कहती हैं कि ए हो हमर मिसिर ! भले सँझवत के दिया बाती में दु चार बेरा इधर उधर हुआ होगा, पर तोहरा प्रेम के आरती हम चारो पहर लगाते हैं...और उधर वो कहती हैं यह बसंती तभी तक बसंती है जी जबतक पवन पुरवाई हैं ।
अब इन सब के बीच जिंदगी भी कम चालबाज थोड़ी है ... मने हम जैसे मनई प्राणी के लिए विशुद्ध धोखेबाज टाइप...अदने से गूगल-पे में एक स्क्रेच कार्ड न जीत पाने वाले जिंदगी के रेस क्या ही जीतेंगे...पर हाँ ऐसा भी नहीं कि हम हार ही गये हों...देखिये न रस्ते के हर एक पत्थर पर हमारी मुहब्बत अपना चटक गुलाबी वजूद छोड़ आई है...❤
संदीप तिवारी 'अनगढ़'
"आरा"




