Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

"यू टू, ब्रूटस ?"

यू टू, ब्रूटस ?
X
"हरिहर बाबू कहाँ तक मेरी फाइल पहुची ? अब तो नए साहब भी आ गए है." बदरी प्रसाद जी ने पूछा.
"फाइल तो साहब के टेबल पर ही पड़ी है. थोड़ा और समय लगेगा. अभी साहब काम समझ रहे है. " पेंशन विभाग के बड़े बाबू ने कुटिलता से जबाब दिया.
"हरिहर बाबू अब तो बहुत विलम्ब हो गया है. अगले महीने श्रीमती जी के किडनी का ऑपरेशन भी है. कम से कम दस लाख लगेगे. ऑपरेशन अब और नहीं टाल सकते" बदरी प्रसाद जी ने पसीना पोछते हुवे कहा.
"मै समझ रहा हूँ पर मजबूर हूँ" बड़े बाबू ने कहा "साहब को मै आदेश तो नहीं दे सकता."
"ठीक है फिर आप मुझे उनसे मिला दीजिये" बदरी प्रसाद जी ने कहा. आज उन्होंने तय कर लिया था की पेंशन का निपटारा करके ही घर जायेगे. वैसे भी अब उनके पास इन्तजार का समय नहीं था.
"ठीक है मै कहता हूँ" कहके हरिहर बाबू चले गए.
बदरी प्रसाद जी जनता इंटर कॉलेज में अंगेजी के लेक्चरर थे और उनके रिटायर हुवे 6 महिना बीत चुके है. पिछले 6 महीनो से वे पेंशन कार्यालय का चक्कर लगा रहे है पर अभी तक उनका पेंशन पास नहीं हुआ है. आम तौर पर लोग लेट लतीफी के लिए सरकारी कर्मचारी और विभाग को दोष देते है पर इस मामले में अगर किसी का दोष है तो वो है स्वयं बदरी प्रसाद जी. इस दफ्तर के बारे में तो मशहूर है की यहाँ तुरंत काम होता है बशर्ते की सामने वाले दस्तूर निभाए और सरकारी विभाग में दस्तूर का मतलब होता क्या है- पैसा फेको तमाशा देखो. आप सुविधा शुल्क दीजिये और अपना मनचाहा काम लीजिये. बदरी प्रसाद जी का काम तो एकदम आसन भी है. इस काम को करने में तो सामने वाले को कुछ सोचना भी नहीं है. बस लक्ष्मी की कृपा होनी चाहिए.
पर घूस की बात और वो भी बदरी प्रसाद जी से. बात करना तो दूर, सोचना भी पाप है. अगर किसी ने गाँधी जी के ज़माने की ईमानदारी नहीं देखी है तो वो आके बदरी प्रसाद जी को देख ले. उसकी कसक और हसरत दोनों पूरी हो जाएगी. वो सोच में पड जायेगा की सन २०१५ में रह रहा है या फिर १९४० में. डर के मारे कोई उनसे घूस नहीं मांगता, वो खुद देने से रहे. परिणाम स्वरुप उनकी फाइल बाबू के टेबल पर ही धूल फांक रही है पर हर बार बाबू उनको किसी न किसी बहाने से टाल देते है.
जनता इंटर कॉलेज ही नहीं बल्कि पूरे इलाके में अगर कोई ईमानदारी की मिसाल है तो वो है बदरी प्रसाद जी. सारी जिदगी उनकी १९८० की रेले साइकिल पर बीत गयी पर ना तो कभी उन्होंने किसी एक पैसा लिया और ना लेने की वकालत की. हर छात्र को मुफ्त में अंग्रेजी का ट्यूशन पढाया. उनके साथ के ही शिक्षक वर्मा जी और शर्मा जी हर साल बोर्ड परीक्षा का परिणाम आते ही अपनी साइकिल बदल देते थे या फिर कोई छात्र उपहार स्वरुप स्वयं ही दे जाता था. पिछले आठ दस सालो से साइकिल की जगह मोटर साइकिल ने ले ली है. जनता इंटर कॉलेज के भुजंगो के बीच बदरी प्रसाद जी एकलौते चन्दन के वृक्ष थे.
"गुरु जी प्रणाम" सामने से आ रहे वर्मा जी ने बदरी प्रसाद जी का अभिवादन किया "आपका पेंशन पास हो गया?"
बदरी प्रसाद जी ने उनके अभिवादन का जबाब देते हुवे कहा "प्रणाम. अभी नहीं. नए साहब के इन्तजार में रूका है."
"पर मेरा तो चेक भी मिल गया" वर्मा जी ने अपना चेक दिखाते हुवे कहा.
बदरी प्रसाद जी हैरान थे. अभी तो वर्मा जी को रिटायर हुवे एक महिना ही हुवे है और इनका चेक भी मिल गया जबकि उनको चक्कर काटते 6 महीने हो गए. ऐसा नहीं था की उनको ज़माने का चलन नहीं मालूम है पर उनको भरोसा था की उनकी ईमानदारी के वजह से कोई उनसे पैसा नहीं लेगा और नाही उनके सिद्धांत इस बात की गवाही देते है. वो कोर्ट जायेंगे, भूखे मर जायेंगे पर घूस कभी नहीं देंगे. पर अब उनको मामला समझ में आ रहा है.
वर्मा जी भी सब समझ रहे है पर कुछ सलाह नहीं दे सकते क्योकि बदरी प्रसाद जी से घूस की बात करके वो अपने बरसो के सम्बन्ध को नहीं ख़तम करना चाहते. अचानक उनको कुछ याद आता है.
"अब तो आपका काम हो जाएगा. आपको मालूम है इंस्पेक्टर कौन है"
"कौन ?" बदरी प्रसाद जी दम तोड़ चुकी उम्मीद को पुनः जिन्दा करते हुवे पूछते है.
"लल्लन. अरे वही आपका प्रिय शिष्य"
बदरी प्रसाद जी को बरसो पुराना लल्लन याद आ जाता है. लल्लन नौवी कक्षा में जनता कॉलेज में आया था. बहुत ही शर्मीला पर होनहार. गरीब होने के बाद भी स्वच्छ आचरण उसको बाकि छात्रो से अलग करती थी और यही कारण था की वो उनका सबसे प्रिय शिष्य बन गया. उसे भी अंग्रेजी साहित्य में खास रूचि थी. एक तरफ जहा अधिकतर छात्र उनकी क्लास को मिनट गिन गिन के बिताते थे वह हर लाइन पे चर्चा करता था. खासकर उसको शेक्सपीयर का नाटक बहुत पसंद था और वह स्कूल के बाद भी उनसे नाटक के पात्रो और उनके चरित्र पर घंटो बहस करता था.
ग्यारहवी में आते ही उसके साथ एक हादसा हो गया. पट्टीदारो ने उसके पिताजी को झूठे इल्जाम में जेल भिजवा दिया. जेल से छोड़ने के लिए दरोगा घूस मांग रहा था पर उसके परिवार के पास पैसे नहीं थे. अपनी बेबसी और लाचारी से तंग आकर लल्लन के पिताजी ने जेल में ही आत्महत्या करली. इसका लल्लन पे बहुत बुरा असर हुआ और फिर उसे सब कुछ नीरस लगने लगा. बस उसके दिमाग में हैमलेट का वाक्य "to be , to not be " चलते रहते था. जीवन के सार्थकता पर वो सवाल करता और फिर आत्महत्या करने की भी सोचता. ऐसे समय में बदरी प्रसाद जी ने उसे जीवन के मायने समझाए. नयी उर्जा का संचार किया और साथ ही जीने का मकसद दिया. उसने उनको वचन दिया की अगर वो बड़ा अधिकारी बन गया तो घूस को जड़ से समाप्त कर देंगा.
"साहब ने आपको बुलाया है" हरिहर जी ने आवाज दिया और बदरी प्रसाद जी वर्तमान में वापस आ गए.
बड़े गर्व और अधिकार से वह, इंस्पेक्टर के केबिन के दाखिल हुवे.
लल्लन ने भी गुरूजी का गर्मजोशी से स्वागत किया. आदर पाके वो धन्य हो गया. आज उनको अपने बरसो के सीख का परिणाम साफ़ साफ़ दिख रहा था.
कुछ देर तक पुरानी बातो के बाद लल्लन गुरूजी के मुद्दे पर आ गया. उसे गुरूजी का मकसद मालूम ही था.
गुरूजी ने सबसे पहले तो लल्लन के विभाग की शिकायत की और फिर स्टाफ की. यह भी बताया की उनसे बाद के रिटायर हुवे वर्मा जी का चेक भी मिल गया जबकि उनकी फाइल का कुछ पता नहीं है. जबाब में उनको इन्तजार था की लल्लन अब अपने स्टाफ को बुला के झिडकेगा और उनका काम हाथोहाथ हो जायेगा.
"क्या करे गुरूजी" लल्लन ने आह भरते हुवे कहा "इसमें किसी का दोष नहीं है, सब ज़माने का दोष है. बात अगर सिर्फ मेरे या मेरे जूनियर की होती तो काम अभी हो जाता. पर यहाँ तो निचे से ऊपर तक एक चेन है और सबका हिस्सा है और एक कड़ी अगर इधर उधर भी हो जाए तो कुछ फर्क नहीं पड़ता. मेरे ऊपर के अधिकारी को भी हिस्सा जाता है और मंत्री को भी. ज्यादा से ज्यादा मै अपना हिस्सा नहीं लूँगा पर बाकि लोग तो नहीं मांगेगे. आप मेरे 20 हज़ार छोड़ के बाकि रकम हरिहर बाबू को दे दीजिये और अगले हफ्ते अपना चेक ले जाईये. वैसे भी हमारे दफ्तर में घूस सबसे कम है. हम तो सिर्फ 10% ही लेते है. बाकि दफ्तरों में तो 30% तक लेते है"
बदरी प्रसाद जी के कान के परदे फट रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था की ये शब्द लल्लन के मुह से निकले है. होठ निशब्द है और आँखे भावनाशून्य.
कुर्सी से उठते हुवे उनके मुह से निकल पड़ता है.
"you too, brutus"
जूलियस सीजर का डायलाग जो लल्लन का पसंदीदा जुमला था. इसे वह अपने कॉलेज के ज़माने में अपने दोस्तों से बोलता था. जब भी वे कोई वादाखिलाफी या गलत काम करते था.

धनंजय तिवारी
Next Story
Share it