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भोजपुरी कहानिया

"ईमान"........: धनंजय तिवारी

ईमान........: धनंजय तिवारी
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"बॉस vt चलेगा?" एक अधेड़ उम्र का आदमी रघु से पूछता है। रघु उसे ध्यान से देखता है। आदमी कुछ घबराया हुआ है और जल्दीबाजी में भी लगता है। इस तरह के लोगो से मिलना उसके लिए कोई नयी बात नहीं है। वो पिछले तीस सालो से मुंबई में टैक्सी चला रहा है और उसने दुनिया के तमाम नमूने देखे है पर फिर भी ये आदमी कुछ अलग ही दिख रहा है। उसके कंधे पर एक भारी भरकम बैग है और हाथ में एक थैली भी है। खैर उसको इन सबसे क्या।

"चलूँगा साहब पर अन्दर स्टैंड में नहीं जाऊंगा" रघु कहता है।

"ठीक है ठीक है" वो आदमी दरवाजा खोलते हुए कहता है। वो आदमी व्यग्र है।

रघु की टैक्सी नरीमन पॉइंट से चल देती है और उसका पसंदीदा गाना "रघुपति राघव राजाराम बजने लगता है"

"अरे बॉस कोई बढ़िया सा गाना लगा ना। क्या ये रोता हुआ गाना लगा दिया।"

"साहब गाना तो यही बजेगा" रघु ठिठाई से कहता है "अगर आपको चाहिए तो आप दूसरी टैक्सी पकड़ लीजिये"

पिछले तीस सालो में देश दुनिया में बहुत कुछ बदला है पर अगर कुछ नहीं बदला है तो रघु का ईमान और उसका ये पसंदीदा गाना। ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है पर गाँधी जी का ये भजन उसके दिल के बेहद करीब है। इस भजन के कारण ही उसने कितने सारे सवारियों को अपनी टैक्सी से उतार दिया पर गाना नहीं बदला"

सवारी कुछ नहीं कहता है। शायद उसके लिए गाने से ज्यादा जरूरी उसका अपने मंजिल पे पहुचना है।

टैक्सी आगे बढ़ जाती है। 10 मिनट में वें vt पहुच जाते है। यात्री उसका किराया चुकता करता है और आगे बढ़ जाता है। रघु भी चर्च गेट की तरफ बढ़ जाता है। अब उसके लंच का समय हो रहा है। कुछ देर आगे बढ़ने के बाद उसको ये अहसास होता है कि पिछली सीट पर कुछ है। वो किनारे टैक्सी लगा के देखता है। उस यात्री ने अपना प्लास्टिक का बैग तो वही छोड़ दिया है। अब क्या करे। वैसे भी वो बहुत जल्दी में था। अब वापस जाने पर भी शायद नहीं मिलेगा। ये पहली बार नहीं है कि किसी यात्री ने अपना सामान भूलवश छोड़ दिया हो। जब भी ऐसा होता है, अगर यात्री का कांटेक्ट उसमे रहता है तो उसके घर सामान पंहुचा देता है या फिर पुलिस स्टेशन। वो थैली को चेक करता है कि शायद उसमे कुछ पता हो। उस यात्री में बारे में तो कुछ जानकरी नहीं है पर थैली थोड़ी अजीब है। उसकी जिज्ञासा बढती है तो थैली को खोलता है। अन्दर का सामान देखके उसकी आँखे फटी रह जाती है। अन्दर 500 के नोटों को गड्डिया है। शायद बीस है। मतलब कुल रुपया 10 लाख। इतनी बड़ी रकम। फिर उसके दिमाग में आता है की अगर ये पैसा मुझे मिल जाए तो सारी समस्याओ का अंत एक बार ही जायेगा। उसके सामने अपनी शादी के योग्य बेटी मीना का चेहरा आ जाता है। लड़के के लिए भी पढाई पर अब ज्यादा खर्च है। पैसे के वजह से माँ की मोतियाबिंद का ऑपरेशन नहीं हो पा रहा है। बाबूजी के समय के बने घर की छत भी कब गिर जाये कोई भरोसा नहीं। उसके सामने समस्याए तो ढेर सारी है और इन रुपयों से वो एक बार में ही सारी समस्याओ से निजात पा सकता है। शायद कुछ रकम बच भी जाए और वो गाँव जाके आराम से रह सकता है।

फिर उसको ख्याल आता है कि इन तीस सालो में उसने भले ही दौलत नहीं कमाई पर अपना ईमान भी तो नहीं बेचा।

तभी गाना रिवाइंड होक वापस बजने लगता है।

"ईश्वर अल्ला तेरो नाम। सबको सन्मति दे भगवान"

ये लाइन उसके डगमगाते मन को वापस सही पथ पे ले आते है। उसने अपनी टैक्सी थाने के तरफ मोड़ ली है।

10 मिनट बाद वो थाना इंचार्ज के सामने बैठा है।

वो भी हैरान है कि आज के ज़माने में भी ऐसे लोग है जिनका ईमान जिन्दा है। रघु को अभी और 10/ 20 मिनट लगेंगे क्योकि कुछ औपचारिकता पूरी करनी है।

रघु किनारे बेंच पर बैठा है।

"सर ये तो नकली नोट है" नोट का मुआयना कर रहा हवलदार इंचार्ज से कहता है।

"क्या बात करते हो" इंचार्ज के आँखों में चमक आया जाती है। एक साथ कितने सपने तैरने लगते है। कितने दिनों से वो इस रैकेट के पीछे पड़ा हुआ था। अगर आज वो इसको अपना कारनामा दिखा दे तो प्रमोशन पक्का। पर सिर्फ नोट दिखाने से बात नहीं जमेगी। कोई आदमी तो चाहिए जिसको उसका सरगना बताया जा सके। वो एक बार रघु को देखता है। ये भी बुरा नहीं है वो मन में बुदबुदाता है। मन में थोड़ा द्वन्द है पर ऐसे मौके रोज रोज नहीं मिलते। इसके बाद सीधे dsp और फिर sp । क्या पता फिर ऐसा मौका कब आएगा। उसने तय कर लिया है की वो इसको हाथ से जाने नहीं देगा।

वो आगे बढ़के रघु को एक चांटा रसीद करता है और कहता है "साले नकली नोटों का धंधा करता है"

"साहब ये आप क्या कह रहे है" हतप्रभ रघु गिडगिडाता है।

"ये भोसले डाल इसको हवालात" इंचार्ज के ऊपर रघु के रोने का कोई असर नहीं है। भोसले रघु को अन्दर बंद कर देता है।

रघु को सब समझ में आ जाता है। जिस ईमान के लिए वो थाने आया था उसी ईमान को वो पुलिस वाला कब का बेच चूका है।

अन्दर हवालात से ही रघु की नजर थाने में टंगी गाँधी जी के फोटो पर पड़ती है।

रघु मन ही मन उनको नमन करता है। उसे गर्व है कि वो उनके सामने शर्मिंदा नहीं है क्योकि उसने अपने ईमान को नहीं बेचा।

तभी किसी हवलदार के मोबाइल का रिंग बज उठता है। मोबाइल चार्ज में लगा हुआ है।

"रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम"

"तुकाराम साहीब" दूसरा हवलदार आवाज देता है "तुम्हारा फ़ोन बज रहा है"

तुकाराम अपना मोबाइल के लेके बाहर चला जाता है।

"तुकाराम साहिब का ये पसंदीदा गाना है" वो हवलदार दुसरे हवलदार से कहता है "वो हमारे थाने के गाँधी है। पिछले चालीस सालो में ना उन्होंने अपना गाना बदला ना अपना ईमान"

"हाहाह" दूसरा हवलदार खिल्ली उड़ाते हुवे कहता है "तभी तो, 6 महीने में रिटायरमेंट है पर कांस्टेबल से सिर्फ हवलदार ही बन पाए"

रघु समझ जाता है कि इस शहर में वो ईमान बचा के रखनेवाला अकेला नहीं है और ईमान वाले का हस्र यही होता है।

उधर इंचार्ज अपने कारनामें का मसौदा प्रेस में देने के लिए तैयार कर है। तुकाराम को छोड़ बाकी स्टाफ भी इस कोशिश में है कि कल अखबार में तस्वीर बढ़िया आनी चाहिए।


धनंजय तिवारी

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