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भोजपुरी कहानिया

"ए सुगना ! मन हुआ फगुना....

ए सुगना ! मन हुआ फगुना....
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ऐसे में जब फगुनी बयार करेजा को सिसका दे रही हो..., ऐसे में जब बुढ़ऊ लोगो के मन में भी 'देवर' नामक सर्वहारा रस चरस बो रहा हो..., ऐसे में जब कनिया काकी चुपके से काका के ऊपर पानी उड़ेल दे रही हो....ऐसे में जब रमेश भाई अपनी सादी आँखों में पूरे जमाने का रंग घोल भौजाई को डुबों दे रहे हो ...., ऐसे में जब अपना चिंटूआ तालिमी दोस्त कलीम को रंग पोतने का विचार कर रखा हो और...., ऐसे में जब आरा जिला की सकल बवाली उत्पाद मने भौजाई की बहिन प्रीति जी अपनी बेदाग धानी चुनरिया में चंदन बाबू के प्रेम का दाग लगाने को उतावली हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तब हमारा भी चूरूआ भर फगुना जाना तो जायज है न चंपई जान ...?

क्या हुआ अगर हमारे अरमानों पर दूरी का करिया रंग पुता हो ? क्या हुआ कि हम अपने हाथों से रंग न सके अपने मोहब्बत के रंग..? कि क्या ही हुआ कि हम खा न पाएं तुम्हारे हाथों की गुझिया..?

आखिर तुम्हारे लिट्टी जैसे गाल क्या गुझिया से कम हैं ?
तुम्हारी चवनिया मुस्कान से भी क्या कुछ ज्यादा हरियर है ? तुम्हारी सादगी क्या धवल से अव्वल नहीं ? तुम्हारे होठ क्या गुलाबियत से कम सरोबार हैं...!

अरे हमारा दिल तो तुम्हारे प्रेम के कटोरे में न जाने रोज कितनी डुबकियाँ लगाये फिरता है...रंगीन तो हम रोज ही हुये जाते हैं..बेख़बर ,बेरपरवाह ...तुम्हारे इश्क में डूबते उतराते ।
मेरे लिए तुम्हारी फिक्र तो कब का तुम्हे मेरा केसरिया बलम बना चूकी है ।

आओ ना खेलते हैं मोहब्बत के रंग से एक बार फिर....!
रंग जाते हैं उसी रंग में जिसमें बरसों से कनिया काकी और काका रंगे हैं ।
खिला दो न अपनी उन हाथों का वो गुझिया जिसमें हर एक भौजाई के हाथ की फिक्र नजर आती है भइया लोगो के कमीज के टूटे बटन को टाँकने की ।
आओ न लगा दूँ गुलाल का वो स्नेहिल स्पर्श तुम्हें जिस स्पर्श को पाकर प्रीति जी मधुरी हुये जा रहीं ।

आख़िर मेरी भंटई भेलेंटाइन तो तुम्ही न हो ?? ❤
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सुनो ना !
बवाली पकौड़े से तो बेहतर है , साली छाप गुझिया सेंटर ही खोल दें हम...
#होली_है ☺
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संदीप तिवारी 'अनगढ़'
"आरा"
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