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भोजपुरी कहानिया

फिर एक कहानी और श्रीमुख "गोकुल"

फिर एक कहानी और श्रीमुख    गोकुल
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भारत के सिंहासन पर आरूढ़ हुए औरंगजेब को दस वर्ष हो गए थे। इन दस वर्षों में उसने हिन्दू जाति को समाप्त करने का हर वह प्रयत्न कर लिया था, जो वह कर सकता था।यंत्रणा, आर्थिक दबाव, रिश्वत, बलपूर्वक धर्म परिवर्तन और पूजा प्रतिबन्ध, उसने कोई उपाय छोड़ा नहीं था, पर सत्ता प्राप्ति के दसवें वर्ष में उसने सनातन व्यवस्था पर एक बड़ा प्रहार करने का मन बनाया। उत्तर भारत के दो सबसे बड़े तीर्थों में अयोध्याजी के राममंदिर को तो उसके पूर्वज बाबर ने पूर्व में ही ध्वस्त कर दिया था, औरंगजेब ने दूसरे बड़े तीर्थ मथुराजी पर प्रहार करने का निर्णय लिया।
मथुराजी में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ओरछा नरेश बीरसिंह देव बुंदेला का बनवाया भव्य मन्दिर था। कृष्ण जन्मस्थान पर सनातन के ध्वज के रूप में खड़ा यह मंदिर इतना ऊँचा था कि आगरा से दिखाई देता था। दरबारी मुल्लाओं के कहने पर औरंगजेब ने इसी ध्वज पर प्रहार करने का निर्णय लिया, और मथुरा के प्रांतीय अधिकारी अब्दुल नवी को मन्दिर तोड़ने का आदेश दिया। औरंगजेब की क्रूर शाही सेना के दस हजार सैनिक और अब्दुल नवी की स्थानीय सेना ने मिलकर तीन दिन में कृष्णजन्मभूमि मन्दिर को ध्वस्त कर दिया।
मथुराजी की प्रजा स्तब्ध थी। एकाएक जैसे यह विश्व का प्राचीनतम तीर्थ देवविहीन हो गया था।

केशव मन्दिर के ध्वंस ने मथुरावासियों के स्वाभिमान को चोटिल किया था। अगले कुछ समय तक वे सदमे की स्थिति में थे। इधर उत्साहित अब्दुल नवी की क्रूरता बढ़ गयी थी। वह हिन्दू कन्याओं का बलपूर्वक अपहरण करने लगा। मथुरा के सभी छोटे बड़े मन्दिरों को तोड़ कर मस्जिद बना दिया गया।कृष्ण की धरती जैसे नरक हो उठी थी। उस वर्ष मथुरा में होली नहीं मनाई गई।
युगों से मुगलों की अधीनता में जी रहे मथुरावासियों का कोई बड़ा नायक तो नहीं था, पर एक सामान्य यादव परिवार उस क्षेत्र में मुखिया की तरह प्रतिष्ठित था।उस समय उस परिवार के युवक 'गोकुल' ने यादवों के नेता के रूप में प्रतिष्ठा बनाई थी। मथुरावासियों पर हो रहे अत्याचार से गोकुल जल रहा था, पर इसका प्रतिकार करने के लिए न तो उसके पास कोई बड़ी सेना थी, न ही कोई मार्गदर्शक। वह क्रोध से अंदर ही अंदर जल रहा था, पर चुपचाप था। एक वर्ष और बीत चला।
बसन्त आ गया था, पर मथुराजी में कोई हलचल नहीं थी।हिन्दू चेतनाशून्य से अपने अपने घरों में दुबके हुए थे। मथुरा जी मे सूर्य भी जैसे उदास हो कर ही उगता था। ऐसी ही एक उदास सन्ध्या में केशव मन्दिर के मुख्य पुजारी ने गोकुल की किंवाड़ खटखटाई। श्रीकृष्ण मन्दिर के मुख्य पुजारी को अपने घर आया देख गोकुल उत्साहित हो गया था। उसने पुजारी को सम्मान के साथ आसन देने का प्रयास किया, पर पुजारी ने खड़े खड़े ही कहा- क्या इस वर्ष भी मथुराजी में होली न होगी गोकुल?
गोकुल के पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। वह उदास हो कर बोला-मैं भला क्या कर सकता हूँ गुरुदेव! मुझे तो यह भी समझ नहीं आ रहा कि इस समय करना क्या चाहिए। आप ही दिशा दिखाइए न गुरुदेव...
पुजारी ने कुछ क्षण तक गोकुल का मुह देखा, फिर कहा- जानते हो गोकुल! जब परिस्थितियां बिल्कुल ही विपरीत हों तब धर्म की रक्षा का एक ही मार्ग बचता है, स्वयं का बलिदान। कर सकोगे?
गोकुल ने क्षण भर सोचा फिर पास खड़ी पत्नी की ओर देखा। गोकुल से पूर्व ही वह बोल पड़ी, क्यों नहीं महाराज! हम कृष्ण की संतान हैं। धर्म की रक्षा के लिए एक नहीं सौ बार शीश कटा सकते हैं। आप आदेश तो कीजिये।
गोकुल मुस्कुरा उठा।
आश्चर्यचकित पुजारी ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा- तुम धन्य हो देवी, यह देश तुम जैसी देवियों के त्याग के बल पर ही खड़ा है।
गोकुल धन्य हैं जो उन्हें तुम जैसी संगिनी मिली है।
गोकुल ने कहा- आप हमारा मार्गदर्शन करें गुरुदेव, महाराणा प्रताप और वीरम देव जैसे योद्धाओं की भूमि पर बलिदानियों की अब भी कोई कमी नहीं।
पुजारी ने कहा- तो सुनो गोकुल! औरंगजेब की शाही सेना कब की वापस दिल्ली लौट चुकी, मथुरा में अब केवल अब्दुल के जेहादी हैं। यदि हजार युवकों की भी सेना खड़ी हो जाय तो अब्दुल का नाश हो जाएगा।
-पर उससे क्या होगा गुरुदेव? औरंगजेब शीघ्र बड़ी सेना भेजेगा और हम समाप्त हो जाएंगे।
-किन्तु औरंगजेब की सेना आये इससे पूर्व ही देश को दिशा दी जा सकती है गोकुल। हम यह युद्ध सत्ता की स्थापना के लिए नहीं, सनातन की रक्षा के लिए लड़ेंगे। अब्दुल को मार कर यदि हम मन्दिरों को मुक्त करना प्रारम्भ करें तो तीन दिन में ही मथुरा जी की छाती पर खड़े अपवित्र ढांचे समाप्त हो जाएंगे।
- किंतु यह क्या अधर्म नहीं होगा गुरुदेव? हम उनके धर्म स्थलों पर कैसे प्रहार कर सकते हैं? यह हमारी नीति तो कभी नहीं रही।
- मूर्ख की भांति बात मत करो गोकुल। हर अप्रासंगिक रीति को तोड़ने वाले कृष्ण की धरती है यह। सनातन की रक्षा के लिए असहिष्णु होने का संदेश यहीं से भेजना होगा, नहीं तो हमें समाप्त होने में सौ वर्ष भी नहीं लगेंगे।
गोकुल निःशब्द हो कर महाराज का मुह निहारता रहा, जैसे वह उनकी बात पूर्णतः समझ गया हो।
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औरंगजेब के अत्याचार से पीड़ित और छुब्ध यादवों के हृदय में पूर्व से ही आग धधक रही थी, उनको केवल एक नायक की आवश्यकता थी। गोकुल को हजार युवकों की सेना तैयार करने में एक सप्ताह भी नहीं लगा।
यह एक अनोखी सेना थी जिसमें कोई प्रशिक्षित सैनिक नहीं था। उनके पास न ही कोई आधुनिक शस्त्र था, न ही सैन्य शिक्षा। उनके पास यदि कुछ था तो अपने धर्म के प्रति समर्पण का भाव था, और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने का साहस था। आत्मोत्सर्ग की भावना उनका अस्त्र थी,और कृष्ण उनके शस्त्र।
गोकुल की सेना ने प्रभात में ही अब्दुल नवी पर अचानक आक्रमण किया, और जबतक उसके सैनिक कुछ समझ पाते तबतक सब के सब काट दिए गए। अब अगला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ हुआ। अब्दुल नवी ने वर्ष भर में जितने भी मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बनाया था, यादवों ने सबको तोड़ना प्रारम्भ किया। यह पहला अवसर था जब किसी हिन्दू ने किसी धर्म स्थल पर प्रहार किया था। मथुरा जी की छाती के दाग एक एक कर मिटने लगे थे।
समाचार को मथुरा से दिल्ली पहुँचने में कितना समय लगता, अगली सुबह ही औरंगजेब की सेना मथुराजी की ओर निकल पड़ी।
शाही सेना के आने का समाचार गोकुल को भी मिल चुका था। उसे अपनी सम्भावित स्थिति का ज्ञान था। वह थोड़ा सा समय निकाल कर घर पहुँचा जहाँ उसकी पत्नी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों अपना अपना भविष्य जानते थे, किसी ने किसी से कुछ कहने का प्रयास नहीं किया। दोनों की आँखों मे एक दूसरे के प्रति समर्पण और अतुल्य सम्मान भरा था। कुछ पल बाद गोकुल ने कहा- तो चलूँ?
पत्नी चुप रही।
गोकुल ने कहा- अब मथुरा में फिर होली होगी, गोपियों से कहना कि हम हजार ग्वालों को स्मरण रखें।
पत्नी की आँखों मे यमुना उतर आयी। उसने धीरे से कहा- तुमको इस देश की मिट्टी युगों युगों तक स्मरण रखेगी ग्वाले। जबतक धरती पर होली होगी, तुम भी जियोगे।
गोकुल घर से निकल आया। उसके हजार योद्धा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। यह अद्भुत सेना मथुरा जी की सीमा से बाहर निकल कर जंगलों में शाही सेना की प्रतीक्षा करने लगी। दिन ढलते समय जब शाही सेना पहुँची तो अचानक उसपर यादवों का आक्रमण हुआ। स्वयं की बलि देने निकले यादवों ने अपनी समस्त उर्जा झोंक दी, और शाही सेना की जितनी क्षति कर सकते थे कर गए। पर कितना... सब वीरगति को प्राप्त हुए, गोकुल पकड़ा गया।
अगले दिन शाही सेना के शिविर में गोकुल का एक एक अंग काट काट कर कुँए में डाला गया। उधर मथुरा जी में अश्रुओं में घुले रंगों की होली प्रारम्भ हो गयी थी।
गोकुल अब भी जीवित हैं। हाँ, उनकी पत्नी का नाम इतिहास को पता नहीं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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