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भोजपुरी कहानिया

क्रांतिकथा

क्रांतिकथा
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बाबा चुमण्डल का मन गंडगोल है। महीनों हो गए कोई मजगर मुद्दा मिले, जिस पर उल्टी कर सकें। दो चार दलित युवतिओं के साथ दुर्व्यवहार भी हुए तो उसमें भी अपराधी कम्बख्त जय मीम वाले निकल आये। उनपर बोलें तो जय भीम-जय मीम का गठजोड़ कमजोड़ पड़ता है। समझ में नही आता कि बोलें तो किसपर बोलें। ये सवर्ण हरामखोर भी आजकल कुछ गलत नही कर रहे। एक बिहार में देह तस्करी का धंधेबाज पकड़ाया भी तो कम्बख्त दोस्त का भाई निकला। और तो और कोई दलित भी आज कल आत्महत्या नही कर रहा। एक दो फांसी ही लगा लेते तो क्या बिगड़ जाता कम्बख्तों का, जी कर ही क्या कर ले रहे हैं अभागे। ऐसा दुर्दिन तो पूरे जीवन में नही आया था।
उधर ईसाई मिशनरी वाले भी यह कह कर पैसा देने से मना कर रहे हैं, कि जब धर्मपरिवर्तन करा ही नही पा रहे हो तो पैसा किस बात का दें। पैसा तो तब देंगे जब दलितों को ईसू की शरण मे लाओगे। खुद धर्मपरिवर्तन करते समय बाबा चुमण्डल ने सोचा था कि ईसू की शरण में बैठे बैठे जम के मलाई चापेंगे, पर वह तो मोदी से भी बड़ा घाघ निकला। अबे कहाँ से इतना लोग लाएं कि हर महीने सौ आदमी का टारगेट पूरा करें। बाबा कभी कभी कंफ्यूज हो जाते हैं कि यह ईश्वर है या किसी बिमा कम्पनी का रीजनल मैनेजर, जो हर महीने टारगेट ले के सर पर चढ़ा रहता है कि इतने लोगों का बीमा करना ही है। वैसे बीमा कम्पनी के एजेंट के पास तो कम से कम इतनी सहूलियत है कि एक कम्पनी छोड़ कर दूसरी पकड़ लें, पर इस ईश्वर के एजेंट के पास तो यह सहूलियत भी नहीं। ईसू को छोड़ कर दूसरा कोई ईश्वर तो चवन्नी नही देता, जायें भी तो कहाँ जायें?
बाबा चुमण्डल सोचते हैं, सबसे ज्यादा कष्ट इस कम्बख्त मोदी ने दिया है। सारे एन जी ओ को बंद करवा दिया, अब बाहर से पैसा आये भी तो कैसे? दोष मिशनरी वालों का नहीं दोष इस दक्षिणपंथी का है, जब उनके पास पैसा ही नही आ रहा है तो दें कहाँ से? पर इस कम्बख्त मोदी का कोई इलाज भी तो नही दीखता, दिन भर गाली देते रहने के बाद भी तो इसका कुछ नही बिगड़ रहा है। दिन भर इसके खिलाफ पोस्ट लिखते हैं, गाली देते हैं, इतने से संतोष नही होता है तो अपने चेले डोम कानवी से लिखवाते हैं, पर इस नामुराद का बाल भी बांका नही होता। लगता है यह "हत्यारा" जान ले कर ही मानेगा।
सुबह से शाम तक इसी बेचैनी में जलने के बाद भी जब बाबा चुमण्डल की बेचैनी दूर नही हुई तो हार कर बाबा ने अपनी मौसीआउत बहन को फोन लगाया। बाबा की दीदी एक बड़े पंचायत की परधान हैं, और इन दिनों अपनी परधानी के चुनाव में ब्यस्त हैं। बाबा को कभी कभी दीदी से आर्थिक मदद भी मिलती रहती है, सो बाबा भी यदा कदा उन्हें याद करते रहते हैं।
बाबा ने दीदी को फोन लगाया तो चार घंटी लगने के बाद उधर से फोन रिसिभ हुआ। बाबा बोले- जय भीम जय मीम!
उधर से आवाज आई- सीम सीम!
बाबा- जी हुजूर, आप कौन साहेब बोल रहे हैं?
उधर से आवाज आई- हम मिसिर जी बोल रहे हैं, मैडम के खासमखास।
बाबा का बरमंड झोंकर गया, पर गुस्सा दबा कर बोले- परनाम मिसिर जी, हम बाबा चुमण्डल बोल रहे हैं। क्या हाल हैं?
- बाबा चुमण्डल? अरे तुम हमको परनाम किया? आज कहाँ से यह कमाल हो गया? तुम भूल गए क्या कि हम बाभन हैं और बाभन को गाली देना तुम्हारा पेशा है?
- अरे नही महाराज, उ सब तो हम पेट के लिए करते हैं, आप तो जनबे करते हैं। नहीं तो हम आपका इतना आदर करते हैं कि मौका मिले तो दोनों समय आपके चरण धो धो के पियें।
मिसिर जी समझ गए कि जरूर कम्बख्त को पैसा मांगना है, तभी इतना मासूम बन रहा है। बोले- अच्छा तो और बताइये, कैसे याद किया?
- जी साहेब, वो आजकल तनिक कड़की चल रही है। कुछ मदद मिल जाती तो...
- अरे अभी मदद कहाँ से होगी भाई, अभी तो अपनी ही जान फंसी हुई है। ये नोटबन्दी के चक्कर में तो यूँ ही लाले पड़े हुए हैं।
- अरे महाराज, उसी में कुछ हमारी भी सोचिये।
- अरे तुम्हारा कैसे सोचे भाई? तुम तो फेसबुक पर झाड़ा फिर कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हो, पर हमें एक एक भोट का हिसाब करना पड़ता है।
बाबा को गुस्सा आ गया। इस हरामखोर बाभन की यह मजाल कि परम प्रतापी बाबा चुमण्डल की बात काटे, पिनक कर बोले- अरे सीधे सीधे बोलिये, पैसा देंगे की नही?
मिसिर जी बोले- अबे तेरा दिमाग तो ख़राब न हो गया बे करियठ? हमसे तेज आवाज में बात करेगा तो पकड़वा कर इतना थुरवाएंगे कि तेरा क्रांतिक्षेत्र लाल हो जायेगा। अबे पैसे क्या तेरे बाप के यहां से आते हैं बे कम्बख्त? चल फोन काट!
बाबा कुछ बोलते इससे पहले ही फोन कट गया।
बाबा को इतना गुस्सा आया कि मन किया कि क्रांति कर दें, पर रुक गए। वे जानते थे कि ज्यादा तिगिड़ बिगिड़ किये तो बड़ी मार खानी पड़ेगी। आज कल तो यूँ ही बुरे दिन चल रहे हैं।
बाबा ने फेसबूक आईडी खोली और कीबोर्ड को तोड़ देने वाले दबाव के साथ लिखा- ब्राम्हणवाद मुर्दाबाद!

बाबा मोतीझील वाले
मोतीझील....
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