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भोजपुरी कहानिया

इति वेलेंटाइन कथा...

इति वेलेंटाइन कथा...
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दिलकुदरिया का दिल हिल गया है आज। एक तो अपने वेलेंटाइन का दिन, आ ऊपर से पाकिट में चवन्नी नहीं। मन ही मन सोचता है कि साला हमसे बड़ा दलित खोजने से नहीं भेंटायेगा। रोज डे के दिन साढ़े तीन किलो मकई बेंच के पैंतीस रूपइया ले के गुलाब किनने गया कि सनीचरी को गुलाब देंगे, त सरवा दोकानदार कह रहा है कि पैंतीस रोपिया में खाली सूंघने भर के लिए गुलाब मिलेगा। इस देश मे गरीब गुरबा को तो प्यार करने का सुबिधा भी नहीं है। हो भी कैसे, जब मोदी जैसा कुंअरठेल आदमी परधान मंत्री बनेगा, आ जोगी जैसा साधु महत्मा मुख्यमंत्री बनेगा त इहे नु होगा। ई लोग क्या बूझेंगे कि एगो परेमी केतना दुख भोगता है, केतना जतन करता है। एगो प्रेमिका के लिए कितना बार थुराना पड़ता है, और कितना बार गोड़ पर गिरना पड़ता है ई हम नु बुझते हैं। सरकार को तो प्रेमियों के लिए अलग से सब्सिडी की बेवस्था करनी चाहिए, लेकिन करे तब तो...
बेचारा दिलकुदारी सोचता है, सईयो डेढ़ सौ रुपइया होता तो...
हार कर सनीचरी को चिट्ठी लिखता है दिलकुदारी...
प्रिय सनीचरी, करेजा के पोर पोर से पियार।
हाल चाल का क्या कहें, उ त लालू जी से भी ज्यादा खराब हो गया है। तुम तो जनबे करती हो कि हमारे बाबूजी बिहार के सरकारी मास्टर हैं, इसलिए किसी तरह दलिद्दर जैसे जी रहे हैं। बाबूजी को आठ महीना से तनखाह नहीं मिला है, सो आज कल तरकारी भात पर भी आफत है। मन में बड़ी इच्छा थी कि आज बेलेन्टाइन डे के दिन तुम्हारे साथ पोखरा के पानी में गोड़ डाल के बैठते, लेकिन गरीब की इच्छा कब पूरी होती है। कल रात आइडिया भिड़ा के सोचे कि किसी के खेत मे से दु-तीन बोरा आलू कोड़ के बेच देंगे तो तुमको गिफ्ट देने भर का जोगाड़ हो जाएगा, सो रात भर आलोक पाण्डेय के खेत मे आलू कोड़े। लेकिन जब किस्मत में लालू हो तो आलू कइसे मिलेगा डार्लिंग! अब बस बोरा में कसिए रहे थे कि दुकेने से आलोक पण्डेयवा आ गया। हम मुड़ी गाड़ के तबातोर आलू कस रहे थे, आ उ कमबख्त पीठ पर खड़ा था। बुझ जाओ डार्लिंग कि एक लाठी तो उ चभक के बैठा कि तीनू त्रिलोक दिखने लगा, बाकिर दूसरा लाठी गिरने से पहिले ही छरक के सरक गए।
इसीलिए हम हमेशा कहते हैं कि ई बाभन जात बड़ी खराब होता है।
अच्छा जाने दो, दुख बस इतने का है कि मेहनत कर के रात भर आलू कोड़े हम, आ चोखा खायेगा आलोक पण्डेयवा। बताओ, यह शोषण नहीं तो और क्या है?
अच्छा सुनो! दु महीना पहिले हम बाबा का तिलकहा लोटा, इआ का कंठा, आ माइ का बियहुति बटुली चोरा के बेंचे थे तो साढ़े सत्ताईस सौ रुपया मिला था। हालांकि बुढ़वा को शक हो गया था, लेकिन हमहूँ त एक्के पीस हैं। भले हमको छोलनी धिका के तीन जगह दाग दिया सब, बाकिर हम 'ना' छोड़ के कुछ नहीं बोले। उसी पइसा से तुम्हारे लिए एगो कान का बाली किने हैं। लेकिन बिपत एतने नहीं नु है, होने अरबिंद सिंघवा बजरंग दल जोआइन किया है। पचास गो चेला चपाटी के साथे लाठी ले के घूम रहा है कि कहाँ कोई परेमी मिले कि उसका बोखार झारे। अगर उ आज हमको तुम्हारे साथ देख लिया तो मार के मेरा गोबर काढ़ देगा। ई राजपूत एतना खतरनाक आदमी है कि पकड़ ले तो बेलेन्टाइन बाबा से अपने खेत मे सोहनी कराएगा। इहो कम शोषक नहीं है। बाकिर हम भी कम हुसियार नहीं हैं, हमने भी इतना जब्बर जोगाड़ लगाया है कि सौ नहीं हजार आदमी भी मिल के नहीं पकड़ पाएंगे। घण्टाहवा पीपर पर रजोखर साह का जवन नवका घण्ट टँगाया है, उसी में हम तुम्हारा बाली डाल दिये हैं। चुपके से जाना आ घण्ट फोर के अपना गिफ्ट निकाल लेना। ओइसे तो घण्ट फोड़ने का काम महापात्र बाभन का है, लेकिन परेम में एक दिन के लिए महापात्र भी बनना पड़े तो का दिक्कत है। आज शाम को चुपके से जाना आ गिफ्ट ले लेना। ई अरबिंद सिंह का डर नहीं होता तो हम आज बिना तुमसे मिले नहीं मानते पर क्या करें, जान है तो जहान है। हम तुमसे कल शाम को मिलेंगे। कल शाम को पांच बजे हम तुम्हारे घर के सोझा से निकलेंगे। हमारे हाथ मे जदि लोटा हुआ तो बुझना कि आलोक पाण्डेय के आलू में मिलेंगे, और जदि बोतल हुआ तो बुझना कि पोखरा के घाट पर मिलेंगे।
ढेर क्या लिखें, मिलने पर बाकी बात बताएंगे। अभी तो जा रहे हैं रामकबूतर साह के छोटका बेटा को पांच रोपिया का पकौड़ी खिया के किसी तरह चिट्ठी चहुपाने का बेवस्था करने।
बाकी सब मजगरे है।
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
लालकुदारी कुमार
बेचारा लालकुदरिया का करे, सचहुँ इस देश मे परेम करने वालों का कोई माई बाप नहीं।
खैर, सबको हैप्पी बेलेन्टाइन।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार
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