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भोजपुरी कहानिया

यह प्रेम ससुरी चीज ही ऐसी है

यह प्रेम ससुरी चीज ही ऐसी है
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यदि किसी छोकड़े को 'सूखी मछली' में मलयगिरि चंदन की सुगंध आने लगे तो मैं तुरंत समझ जाता हूँ, कमबख्त जरूर कोई "प्रेमी" होगा। यह प्रेम ससुरी चीज ही ऐसी है, कि दसो इन्द्रियों को अपने वश में कर लेती है। परेमी मनुष्य को राखी सावंत में हेमा मालिनी दिखने लगती हैं, भोजपुरी की कर्कश 'कल्पना' के कुकुरराग में लता मंगेशकर की सुरीली ध्वनि सुनाई देने लगती है, घुइयां के कोफ़्तों में पनीर का स्वाद मिलने लगता है। और तो और, नशीला प्रेमी सूखे पेंड की खुरदुरी जड़ को ही प्रेयसी का अधर समझ कर चूमने लगता है।
अभी कल परसों ही समाचार सुना कि भारतीय लोकतंत्र के चौथे खम्भे के एक तीसरे दर्जे के पत्रकार महोदय लंदन के होटल में चांदी की चम्मच चुराते हुए पकड़े गए। देश की बज्र-सभ्य प्रजा पत्रकार की चोरी से बड़ी लज्जित है। आप ही बताइए, जिस देश की महान प्रजा जीवन मे कभी भ्रष्टाचार नहीं करती, जिस देश के घरों में कभी ताले नहीं लगते, जहां किसी ब्यक्ति का एक-डेढ़ किलो सोना सड़क पर गिर जाय तो दस दिन बाद भी वहीं पड़ा मिलता है, जिस देश के अधिकारी इतने कर्तव्यनिष्ठ हैं कि पल भर में ही प्रजा का बड़े से बड़ा काम निपटा देते हैं, जहाँ की न्यायपालिका इतनी न्यायप्रिय है कि दरिद्रों को पकड़ पकड़ कर न्याय देती है, वहां का पत्रकार चोरी के केस में पकड़ाए तो यह कितनी लज्जा की बात है। पूरा देश सन्न है, और क्रोध में जल रहा है पर मैं जानता हूँ कि पत्रकार का कोई दोष नहीं। वह अवश्य ही कोई प्रेमी होगा। विदेश में जा कर चांदी की चम्मच चुराने का साहस कोई प्रेमी ही कर सकता है। अवश्य ही उसने अपनी प्रेमिका को उसी चम्मच से पतंजलि का आटा-नूडल खिलाने का स्वप्न देखा होगा। प्रेम मनुष्य से कुछ भी करा लेता है। मैंने तो कई प्रेमियों को प्रेमिका की सैंडल खरीदने के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल की पॉकेट मारते देखा है, पत्रकार ने तो केवल चम्मच चुराया है। मुझे उसके साथ पूरी सहानुभूति है।
एक बार मैंने 'हूँ' को 'हुँ' लिख दिया तो बलिया वाले बुजुर्ग साहित्कार असित कुमार मिश्र ने मुझे पूरे डेढ़ घण्टे तक प्रवचन सुनाया, कि बाबू सर्वेश! हिंदी साहित्य के इतिहास में शुकुल बाबा लिखते हैं कि.... आज वही असित बाबा प्रेम के रंग में रंग कर स्वयं ही 'असित' से 'सित' हो जाते हैं तो लगता है कि सचहूँ यह परेम 'भाँग की पकौड़ी' है। अच्छा खासा आदमी बौरा जाता है परेमी हो कर।
आपने प्रेम में पड़ कर व्यक्ति को चोर होते हुए देखा होगा, पागल होते देखा होगा, दरिद्र होते देखा होगा, पर मेरे एक मित्र प्रेम में पड़ कर समाजवादी हो गए। एक जमाना था जब वे इतने कट्टर भाजपाई हुआ करते थे कि घर का बेलन और झाड़ू तक भगवा रंग का खरीदते थे, कि पत्नी से मार भी खाएंगे तो... आज वे ही साहब इतने कट्टर समाजवादी हैं कि कोई भी बस्तु क्रय करने से पूर्व विक्रेता से कहते हैं- भइया तनिक मुलायम सा देना। बेचारा विक्रेता अचंभित हो जाता है कि पीतल की कड़ाही भी मुलायम कब से आने लगी?
आज उस महायोद्धा का जन्मदिवस है। उन्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामना। मैंने कई बार कहा है- अभिनव पाण्डेय 'अतुल' किसी व्यक्ति का नहीं, मेरे पिछले जन्म के किसी पुण्य का नाम है। अतुल भइया मुझे बहुत प्रेम करते हैं। अरे नहीं, यह प्रेम भी न....

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
करवतही बाजार, कुचायकोट, गोपालगंज, बिहार, भारत, भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया, पृथ्वी, सौर्यमण्डल, मिल्कीवे ग्लैक्सी, ब्रह्मांड।
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