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भोजपुरी कहानिया

रजाई

रजाई
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आठ महीने बक्से में उपेक्षित जीवन बिताने के बाद जब दुनिया, 'रजाई' मुंह तक खीच कर सोती है तो रजाई को कितनी कोफ्त होती होगी कभी सोचा है आपने.. नहीं न! आप क्यों सोचेंगे ! आपको तो मोबाइल और सोशल मीडिया से ही फुर्सत नहीं। भला! आपको किसी के जज्बात की क्या परवाह आप तो खोले,खींचे, ताने और खर्राटे भरने लगे। आपको इतनी फुरसत कहाँ कि आप रजाई के रूदन को सुन सकें।

ज्योंही नवम्बर की गुलाबी ठंड दस्तक दी आप लग जाते हैं बड़का बक्सा खोलने के फिराक में,और नवम्बर आते ही आपके दिल में रजाई के लिये ऐसी मुहब्बत जग जाती है कि पूछिए मत.. इतनी मुहब्बत की पूरे आठ घंटे लिपट और चिपक कर सोते हैं आप। उसे कोई अपनी तरफ जरा सा खींच क्या ले आप फौजदारी पर उतर जाते हैं लेकिन होली आते-आते न जाने कौन आपके कान भरता है कि आप उसे उसे छोड़ उसकी सौत 'चादर' से लिपटने लगते है। क्या वो इतनी बुरी हो जाती है मैं कि आप उसे लात से मारकर ढकेल दें...

मार्च में जब आप उसे बक्से में ठूंसते हैं तो तो लगता ही नहीं कि वो वही है जिसके नीचे आप ख्वाबों के बागान लगाते थे। अरे यार! कोई ऐसे भी ठूंसता है जैसा आप ठूंसते है, सांस लेना भी मुहाल हो जाता है बेचारी का...ऐसा भी नहीं कि पूरे वर्ष बक्से में झांकने नहीं आते आप! आते हैं आप .....और रजाई के अगल-बगल हाथ घुसाकर अपने काम की चीज़ निकाल फिर उसे एक फीट अन्दर ठूंस कर बक्सा बंद कर देते हैं। इतना भी कोई बेदर्द होता है भला! जैसे आप हैं। बस एक बार रजाई को बाहों मे लेकर बाहर निकाल देते, उसे जरा सा खोल कर बाहर की दुनिया दिखा देते तब भी बेचारी के दिल को तसल्ली मिल जाती ...लेकिन आपको तो आग फूंकता है...जून में रजाई देखकर, क्यों करेंगे उसके ऊपर अपना वक्त जाया।

गंभीरता से सोचिए! कोई दस जगह से मोड़कर आठ महीने बक्से में जबरदस्ती ठूंसा गया हो लेकिन आठ महीने बाद निकालने पर भी आप उसके शरीर पर एक भी मोड़ के निशान न पायें तो यह आपको समझ जाना चाहिए कि रजाई कितनी दर्दखोर है। कभी किसी नोट को एक जगह से मोड़ने के बाद दुसरी जगह से मोड़ने का प्रयास करियेगा वह तुरन्त विरोध दर्ज करायेगी। लेकिन अपनी रजाई ठहरी साधु प्रवृत्ति की, कहीं से मोड़िए आपके इशारे पर झुक कर कुंडली बना कर बैठ जाती है।

सोचिए! जिसके अंग-अंग रुई भरा हो, जो अपने मुलामियत के नाते दुनिया में जानी और पहचानी जाती हो उसकी इतनी दुर्गति कि उसके अंग-प्रत्यंग की धुनाई करायी जाती है.. उसका पूरा बदन खोलकर उसको बाज़ार में पिटवाया जाता है और हद तो तब हो जाती है कि जब आप मुंह बनाकर कहते हैं कि "सही से धुना नहीं तुमने" अरे! इतना भी कोई जालिम होता है भला!

ठीक है रजाई थोड़ी भौंड़ी और वजनी होती है लेकिन जब आप ठंड से बेचैन होते हैं तब सेकेंडों में आपके ऊपर बिछकर आपको दमदमा देती है..आपके शरीर की सारी अकड़ खोलकर सीधा करती है आपको। जब आप अपने दोनों तरफ से इसे लपेट कर सोते हैं तब आप मालूम कैसे दीखते हैं ?.. बिल्कुल जलपरी जी हां ये वही रजाई है जो आपको भौंड़ी सी दीख रही थी आपसे लिपट कर जलपरी बन जाती है।

हां! एक सबसे जरूरी बात-
जब आप यह समझते हैं कि रजाई में घुसते ही वह गर्म होने लगती है तो यह आपकी गलतफहमी है क्योंकि जब तक वह आपसे दूर पालथी मारकर बैठी है तब तक वह बिल्कुल बर्फ की तरह शीतल होती है लेकिन ज्योंही आपका स्पर्श पाती है तो लगती है गर्म होने और आप यह सोचकर फूलने-पचकने लगते हैं कि यह मेरे इंतजार में घंटों से बैठी थी...जी नहीं! आप इसे गंभीरता से समझ लिजिये जब आप उसे खींचकर झपटते और लिपटते हैं तो उसके तन-बदन में आग लग जाती है वो क्रोध के अग्नि में बराबर सुलगने लगती है और आप मुगालता पाल लेते हैं कि वह गर्म कर रही है.. दरअसल वो इस फिराक में रहती है कि इतनी गर्म हो जाऊँ की रूई सुलगा दूं लेकिन आपको ज्यों ही यह एहसास होता है तो आप रजाई थोड़ी उठाकर बाहर की हवा से गठबंधन करके इसके मंसूबों पर पानी फेर देते हैं। मैं कहता हूँ इतनी उपेक्षा सहने के बाद किसी को आप स्पर्श करेंगे तो कैसे नहीं वह तमतमा जायेगा..कैसे नहीं उसके रोम-रोम से आग बरसेगा..

इसलिए इस बार ध्यान रहे मुहब्बत से रखना है रजाई.. ठूंसकर नहीं.....और बक्सा खोलने पर जरा सा पुचकार लिजियेगा...तब नवम्बर में निकालिएगा अपनी प्यारी रजाई॥ 😄

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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