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स्वेटर बनाने वाली कम्पनी से बीस फीसदी कमीशन लेकर शीतलहरी बह रही क्या ?

स्वेटर बनाने वाली कम्पनी से बीस फीसदी कमीशन लेकर शीतलहरी बह रही क्या ?
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शीतलहरी चरम पर है, हवा ऐसे बह रही है जैसे किसी स्वेटर बनाने वाली कम्पनी से बीस फीसदी कमीशन पर मामला तय हुआ हो। इधर जाड़े से मैं कांप रहा हूँ, तो उधर गोपालगंज के दूसरे रत्न लालू प्रसाद सस्पेंस में कांप रहे हैं। सीबीआई अदालत के जज साहेब दो दिनों से सजा का ऐलान रोज अगले दिन के लिए टाल दे रहे हैं। उधर हमारी कवि बिरादरी के सबसे हॉट गायक राज्यसभा का टिकट नहीं मिलने के कारण गुस्से से कांप रहे हैं। वैसे जीत के अहंकार में कांप तो गुजरात वाले जिग्नेश मेवानी भी रहे हैं, पर उनसे ज्यादा कांप रहे हैं देश के असंख्य हिंदुत्ववादी युवा। कहते हैं कि हरामखोर जातिवाद के नाम पर देश को तोड़ रहा है। हालांकि मुझे ऐसा नहीं लगता, मैं दलितवाद के पुरोधाओं का भविष्य पढ़ने वाला ब्राह्मण हूँ। मैंने "तिलक तराजू और तलावर, इनको मारो जूते चार" गाने वाली भैनजी को समय समय पर "हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रम्हा विष्णु महेश हैं" गाते सुना है। मैंने देखा है कि दलितवाद के नाम पर चलने वाली दो सबसे बड़ी पार्टियों बसपा और लोजपा ने राष्ट्रीय महासचिव के पद पर ब्राह्मणों को बैठा रखा है। असल में लोकतंत्र में दलितवाद सत्ता की पहली सीढ़ी होती है, पर आगे चढ़ने के लिए उसे ब्राह्मणवाद का टीका लगाना ही पड़ता है। दलितवादी राजनीति की यही लोकतांत्रिक नियति है। कल को यही जिग्नेश मेवानी यदि सवर्णों को झुक कर साढ़े तीन बार सलाम करें तो आश्चर्य मत कीजियेगा, क्योंकि गाली गलौज कर के जितना पाया जा सकता है, उतना वे पा चुके। आगे कुछ पाने के लिए उन्हें सलामी दागनी ही होगी। यही लोकतंत्र है। और जो बच्चे यह सोच रहे हैं कि जिग्नेश देश तोड़ देंगे, वे निश्चिंत रहें। विश्व का सबसे पुराना देश जिग्नेश जैसे "कौड़ी के तीन" लोगों के तोड़ने से नहीं टूटता। इसलिए कांपना छोड़िये, बहुत लोग हैं जो कांप रहे हैं। पाकिस्तान को देखिए, अमेरिका के हाथ खींचते ही उसके हाथ का कटोरा कैसे कांप रहा है। ट्रम्प को देखिए, जोंगवा के बयानों को सुन कर क्रोध से कैसे कांप रहे हैं। जापान को देखिए, कि कोरिया-अमेरिका झगड़े के कारण वह कैसे कांप रहा है। वह जानता है कि लड़ेंगे ये, और बम गिरेगा मुझपर। दुनिया तो कांप ही रही है।
कांपना ही जीवन का लक्षण है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था हमेशा कांपती रहती है। हमारे नेताओं का ईमान हमेशा कांपता रहता है। सीमा पर खड़े हमारे देवताओं के परिवारजनों का कलेजा भी लगातार कांपता रहता है, कि क्या पता कब बेटा... कम्पन ही हमारे देश की नियति है शायद।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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