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भोजपुरी कहानिया

आलोक पुराण १४

आलोक पुराण १४
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आलोक पांडेय दालान में बैठ कर मन ही मन अकेले कौन सा विमर्श कर कर रहे हैं, यह तो वही जानते हैं, पर उनके मुख पर आती भाव भंगिमाओ को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे कोई फेसबुकिया बुद्धिजीवी अपनी ही ग्यारह फेक आईडी के साथ "साढूआने का रिश्ता और साम्यवाद" विषय पर चकचक विमर्श ठेल रहा हो। अकेले अकेले ही कभी हँसते हैं, तो कभी उदास हो जाते हैं, और कभी कभी एक कटाह मुस्कान के साथ इधर उधर देख कर अपना बारहमासी खजुअट खुजला लेते हैं।
अचानक आलोक का फोन बजा तो उन्होंने अनमने ढंग से फोन उठाया, पर उधर की एक आवाज सुनते ही उनके चेहरे का अनमनापन ऐसे गायब हो गया जैसे केजरीवाल जी के आते ही दिल्ली से भ्रष्टाचार गायब हो गया था। आलोक ने चिहुँक कर कहा- बीडियो साहेब? आपने मुझे फोन किया? आपको भला इस चरित्रहीन मास्टर से क्या काम पड़ गया?
उधर से बबिता पति बीडियो ने जवाब दिया- गुस्सा न होइए पंडीजी, असल में कुछ ही दिनों पूर्व मैंने अपना तबादला नोएडा में कराया था, पर यहां आते हीं मेरे प्यारे टॉमी को फ्लू हो गया जिससे कल उसका इंतकाल हो गया। अब चार दिन बाद उसका श्राद्ध है, तो मैं चाह रहा था कि आप आ कर तनिक भोजन कर लेते तो बेचारे को मुक्ति मिल जाती।
आलोक पाण्डेय के मन मे तो लड्डू की दुकान फूटने लगी, पर उन्होंने अपना उत्साह छिपाते हुए कहा- देखिये, आपके कर्म तो इतने बुरे हैं कि मुझे आपके यहाँ पानी नहीं गिराना चाहिए, पर टॉमी की मुक्ति के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। आखिर वह बबिता का दुलारा था। मैं ठीक समय पर आ जाऊंगा।
जैसे ही फोन कटा, आलोक ने मोबाइल में गाना लगाया- मौका मिलेगा तो हम बता देंगे, तुम्हे कितना प्यार करते हैं सलम।
इसके बाद ने बड़ी चतुराई से चारों ओर निहारा और किसी को न पाकर एकाएक नाचने लगे। इस समय कोई उनकी कमर की लचक देखता तो उसे विश्वास हो जाता कि "सेकुलरिज्म की अवधारणा का जन्म आलोक पाण्डेय की लचकती कमर से ही हुआ है"। उनकी कमर ऐसे डोल रही थी जैसे हनीप्रीत को देख कर इंसा का ईमान डोलता रहता है, जैसे लाश देख कर टीआरपी के लिए मीडिया का मन डोल उठता है, जैसे भारत की अर्थव्यवस्था डोलती रहती है, जैसे पाकिस्तान की सरकार डोलती रहती है, जैसे गरीब का जीवन डोलता रहता है, जैसे भारतीय रेलयात्री का कलेजा डोलता है, जैसे कुमार साब के लिए केजरीवाल भाई...... ओय छड्डो यार।
तीसरे दिन आलोक ने पत्नी को बताया कि नोयडा में एक कवि सम्मेलन के लिए मुझे बुलावा आया है, जहां जाना आवश्यक है। असल मे चरणलूटैया छंद का देश मे एकमात्र सिद्ध कवि मैं ही हूँ, सो बड़ा सम्मान मिलता है। पत्नी ने जल्दी से उनसे सारे गन्दे कपड़े और बर्तन धुलवा लिया और जाने की इजाजत दे दी।
नियत समय पर आलोक नियत स्थान पर पहुँच गए, पर गेट के अंदर घुसते ही उन्होंने जो देखा वह उन्हें चौंका गया। घर के लॉन में डॉ नित्यानन्द शुक्ला डॉक्टरी का सारा रिंच-पेचकस लिए अकेले बैठे थे। आलोक ने चौंक कर पूछा- अरे नित्य, तुम?
नित्यानंद भी ऐसे चौंक उठे जैसे किसी की खेत से मकई का बाल तोड़ते पकड़ा गए हों। उन्होंने घबड़ा कर ही आलोक को प्रणाम किया और बोले- उ का है कि कल बीडियो साहेब का फोन गया था कि बबिता जी की छोटी बहन सविता की कमर में मोच आ गयी है, सो उसी की फिजोथेरेपी करने आये थे। पर यहां तो कोई है ही नहीं। लेकिन आप यहां कैसे?
आलोक के मुह से अनायास निकला- मैं तो कुकुर का सराध खाने..... पर उन्होंने रोक कर कहा- हें हें हें, हम भी सबिता का हाल चाल पूछने चले आये।
आलोक ने कुछ क्षण सोंचा, तो जाने क्यों उनके पैर कांपने लगे। फिर भी उन्होंने हिम्मत कस कर कहा- तो यहां क्यों बैठे हो?
नित्य ने भी चिंतित स्वर में कहा- यहां तो कोई दिख ही नहीं रहा भइया। अंदर से कोई निकला ही नहीं। मुझे चिन्ता हो रही है कहीं कमर का दर्द ज्यादा तो नहीं बढ़ गया?
आलोक ने गुस्सा हो कर कहा- अरे अपने दर्द की चिंता कर मूर्ख, मुझे तो दाल में कुछ काला दिख रहा है।
फिर आलोक ने अपनी आवाज को राशिद अल्वी की तरह मीठा बना कर आवाज लगाई- बबिता! अजी कहाँ हो डार्लिंग?
अचानक अंदर से आवाज आयी- कौन है बे?
दोनों अभी गेट की ओर देख ही रहे थे कि अंदर से हाथ मे हॉकी स्टिक लिए बीडियो साहेब निकले, और इन दोनों को देखते ही जल गए। चीख कर कहा- तुम??? अबे चरित्रहीन मास्टर, तुमनें यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा? तेरे आतंक के कारण ही मैंने बलिया से तबादला करवाया, और तू यहां भी आ गया? और तू रे डाकडर, मेडिकल में फिजियोथेरेपी की जगह थेथरलॉजी में डिग्री ले लिया क्या बे?
डॉ शुक्ला ने मिमियाँ कर कहा- लेकिन आपने ही तो मुझे फोन किया था बीडियो साहेम, कि साबिता की फिजियोथेरेपी करनी है?
बीडियो गरजा- ओय झूठे, मैं तुझे क्यों फोन करूँगा बे? और सबिता को क्या हो गया जो फिजियोथेरेपी कराएगी? रुक जा तू, मैं तेरी फिजीयोथेरेपी कराता हूँ।
बीडियो ने एक इशारा किया और दस मुस्टंडों ने आ कर उनको पड़क लिया। अगले पौन घण्टे तक दोनों की मैनुअल फिजियोथेरेपी करने के बाद जब गुंडो ने इन्हें छोड़ा तो बीडियो ने कहा- सुन बे चरित्रहीन, दुबारा कभी नोयडा में दिख गया तो गोली मरवा दूंगा। और तनिक एक बात बता- यह तुमने भेपर लाइट की एजेंसी कब ले ली?
इतना सुनना था कि डॉ शुक्ला अपना सारा दर्द भूल कर खिलखिला उठे। आलोक ने चिढ़ कर नित्य से कहा- यह भेपर वाली बात इसको किसने बता दी जी? हरामखोर अब चैन से जीने नहीं देगा।
दोनों अब भारत के लोकतंत्र की तरह लंगड़ाते हुए निकल रहे थे, कि एक गाड़ी आ कर रुकी और उसमें से निकल कर सविता घर मे घुसी। बीडियो ने पूछा- कहां गयी थी सबिता?
सबिता ने मुस्कुरा कर कहा- जी सिद्धार्थ के साथ फ़िल्म देखने गयी थी, वही मुझे ड्राप कर के गए।
आलोक और नित्य दोनों चिहुँक गए। आलोक ने कहा- इसी गद्दार ने सब किया है नित्य, कमबख्त मिल जाय तो कच्चा खा जाऊं।
नित्य ने कहा- पहले यहां से निकलिए आलोक भइया, इस चुम्मेस्वरी का इलाज तो मैं करूँगा।
दोनों झटक कर बाहर निकले तो पीछे से बीडियो ने छेड़ा- अच्छा मास्टर, कौन सी कम्पनी का भेपर लाइट है तुम्हारा?
आलोक तेजी से भागे और मन ही मन कहा- रुक जा हरामखोर, तुमनें बहुत सता लिया। तेरा भी इलाज जल्द ही न किया तो मैं भी बबिता का प्रेमी नहीं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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