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भोजपुरी कहानिया

मजबूरी का नाम......

मजबूरी का नाम......
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गांधी इस युग के सबसे निरीह व्यक्ति रहे। अपने फायदे के लिए लोगों ने जितना इस व्यक्ति का उपयोग किया, उतना दुनिया मे और किसी का नहीं हुआ। आजादी के बाद सत्ता के केंद्र में रहने के लिए नेहरू के बच्चों ने गांधी का नाम चुराया। फिर जब जब जरूरत पड़ी, तब तब गांधी के नाम को बेंच कर अपनी रोटी सेंकी गयी। हर बार गांधी के कद को थोड़ा ऊंचा किया जाता, हर बार गांधी थोड़े अतार्किक हो जाते। चालीस सालों में गांधी इतने ऊंचे हो गए, कि उनकी ऊँचाई झूठी लगने लगी। "दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल" जैसे प्रचार इसी दौर के खेल थे। बिडम्बना देखिये, गांधी नाम की लूट में उनके अपने बच्चों को कोई हिस्सा नहीं मिला, सत्ता की चाभी सदैव नेहरू के बच्चों के पास रही।
फिर जब सत्ता को लगा कि अब गांधी को और ऊपर नहीं किया जा सकता, तो उसने अम्बेडकर को ऊपर उठाना शुरू किया।
अब गांधी को नीचे गिराने का खेल प्रारम्भ हुआ। पहले वालों ने गांधी को आजादी का सारा श्रेय दे दिया था, तो नए वालों ने लगे हाथ गांधी के सर भारत विभाजन की सारी जिम्मेदारी डाल दी। हालांकि सत्य यह था कि गांधी न आजादी के जिम्मेवार थे न विभाजन के, दोनों कार्य परिस्थितियों के कारण हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साम्राज्यवाद का दौर समाप्त हुआ और दुनिया के अधिकांश गुलाम देश स्वतन्त्र हुए, तो भारत विभाजन अंग्रेजों के सौ साल के षड्यंत्र का फल था। पर भारत तो अद्भुत देश है, जो कह दिया गया, सभी उसी की माला जपने लगे।
एक तरफ पहले वालों ने गांधी को ऊपर करने के लिए स्वतन्त्रता संग्राम के शेष योद्धाओं को नकार दिया, तो नए लोगों ने गांधी के योगदान को ही नकार दिया। गांधी यहां भी ठगे गए।
अब गांधी को नीचे गिराने का दौर आया था। जो गांधी की मूर्ति को जितना ज्यादा तोड़ दे, वह उतना ही बड़ा ज्ञानी।
इसी बीच एक वामपंथी पत्रकार "जिसका काम ही था हर स्थापित मिथक पर छींटा उड़ाना, और जिसने राम कृष्ण, दुर्गा सबके चरित्र पर कीचड़ उछाला था" ने एक पत्रिका में लिख दिया कि गांधी बच्चियों के साथ नंगे सोते थे। पत्रकार का क्या, वह तो पत्रिका बेचने के लिए किसी के बारे में ऐसा लिख दे। फिर क्या था, सब मान गए कि गांधी चरित्रहीन थे। गांधी बच्चियों के साथ नंगे सोते थे। किसी ने उस पत्रकार से यह नहीं पूछा कि गांधी ने अपनी आत्मकथा के किस पन्ने में ऐसा लिखा है। नेट पर लिंक बन गए, फोटो शॉप से तस्वीरें बन गईं, और भारत के अद्भुत युवा उसी को सत्य मान कर गांधी को गाली देने लगे। किसी ने गांधी की आत्मकथा पढ़ने का श्रम नहीं किया।
गांधी यहां भी ठगे गए। गांधी हर जगह ठगे गए। किसी ने उनकी मूर्ति बना कर उनको ठगा, तो किसी ने उनकी मूर्ति तोड़ कर उनको ठगा। किसी ने भी उनको इंसान समझने का प्रयास नहीं किया। सबने अपने फायदे के लिए उनका प्रयोग किया।
गांधी एक मनुष्य थे। उनमें कुछ गुण थे, तो कुछ अवगुण भी थे। उन्होंने अच्छे काम किये, तो उनसे कुछ गलतियां भी हुईं। बेहतर होता यदि हम उनका आकलन एक मनुष्य के रूप में करते, और उनको अपने तर्कों के तराजू में तौलते समय ध्यान रखते कि आज से सत्तर वर्ष पहले परिस्थितियां उतनी आसान नहीं थी, जितनी आज हैं। मजबूरी का नाम महात्मा गांधी यूँ ही नहीं होता।
गांधी अपने बल भर, अपने तरीके से भारत की बेहतरी के लिए जीवन भर लड़े। गांधी ने यदि कुछ गलतियां कीं तो इससे न उनके योगदान कम हो जाते हैं, न ही हम जैसे लोगों को "जो दिन भर में सौ बार जाने अनजाने में देश को चूना लगाते फिरते हैं" उनको गाली देने का अधिकार मिल जाता है।
फिर भी.... यदि गाली देने से मन को शांति मिलती है तो दीजिये, बुढ़वा वहां मुस्कुराएगा।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज बिहार।
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