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भोजपुरी कहानिया

"रुद्र महायज्ञ"

रुद्र महायज्ञ
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जइसही हम ऑफिस में पहुचनी एगो अनजान नंबर उभरल हमरा मोबाइल पर त हम वोके काट देहनी। टेलीमार्केटिंग वाला कुल के फ़ोन से अतना परेशां रही कि हम अनजान नंबर न उठाई। सबेरे सबेरे फ़ोन से और दिमाग ख़राब हो गईल। कुछ देर बाद फिर उहे नंबर फिर आइल त अनमने वोके लेहनी।
"who is speaking (के बोलता)?" हम खिसिया के पूछनी "यू पीपल don't have any other work in the morning (तहनी के पास दूसर काम नइखे का सवेरे)"
"राजू चाचा ?" वोने से सवाल भईल।
"हा " पूरा तरह न चिन्हला के बाद भी हम कहनी। मन में राहत महसूस भईल कि मार्केटिंंग वाला के न ह।
"अरे हम निकेश बोलतानी। गोड़ लागतानी "
"खुश रह " हम कहनी। निकेश के फ़ोन बड़ा आश्चर्य के बात रहे।
निकेश वैसे त हमरा से पाच साल बड़हन रहले पर चुकी हमार पद बड़हन रहे ए वजह से उ हमके पूरा सम्मान देस। उ गाव में ही मेडिकल के दोकान खोल के जम गईल रहले और आमदनी भी ठीक ठाक रहे पर गांव में इनकर काफी दबदबा रह काहे से कि गाव कि पियक्कड़ कुल के नेता रहले इ और स्वभाव से दबंग भी। पढ़ाई के टाइम बड़का बदमाश बने के काफी प्रयास कइले पर बहुत बड़हन स्तर पर न जा पवले। दो तिन बार मारपीट में जेल गईले पर चुकी चोर उचक्कई में पारंगत ना रहले रहले ए वजह से आगे न बढ़ले। अब गाव में रहिके गाव के अगुवाई में संतुष्ट रहले और नया पीढ़ी के प्रेरणास्रोत के काम करत रहले। घुरवा के टंकी में सबेरे सबेरे ही घुस जास और सरकार बन जाऊ। दो चार बूँद पावे के लालच में गाव के सब लइका लरियायिल रहसन। केहु बाहर से कमा के आवे तब त चाँदी हो जाऊ और इंग्लिश खूब चले। हमरा जैसन समाज विरोधी आदमी से उनका न पटे काहे से कि हम इ सब सामाजिक अच्छाईयन के विरोध करी और इ वजह से उ और उनकर समाज हीतैषी लोग हमके पसंद न करे। जवानी में उनका से कईबार हमार जबानी भिड़ंत भईल रहे पर वयस्क भईला के बाद एक तरह से एगो समझोता हो गईल, उ पद के हिसाब से हमके इज्जत देस और हमहु उनके वोही रूप में सम्मान दी। हमहु जानि कि उ ना बदल सकत रहले और उहो जानस कि हम उनके कभी पसंद ना क सकत रहनी।
"चाचा एगो जरूरी काम बा ?"
"कह। "
"एगो बड़का काम ठान देलेबानी और तहार सहयोग चाही। "
"कवन काम हो ?" हम चिहा के पूछनी।
"रुद्र महायज्ञ करावे जातानि। तू पहिला आदमी बाड़ जेके हम फ़ोन कइले बानी।"
"ई त बड़ा ख़ुशी के बात बा। कह हम का सहयोग क सकेनी अइमे "
"हम तहसे पचास हज़ार रुपया के उम्मीद करतानी चंदा में। देख ना मत करिह। दस लाख के खर्च बा। पहिला बार अतना बड़का काम होखे जाता गाव में "
हमरा समझ में न आयिल कि का कही आगे। गाव में कवनो अच्छा काम होखे इ त हमरो मन में इच्छा रहे पर पचास हज़ार रुपया कवनो कम रकम त न रहे कि झट से केहु मांगे और पट से दिया जाऊ।
हम विचार करेके बात क के फ़ोन रख देहनी। कई दिन तक मन में द्वन्द रहे कि का कईल जाऊ आखिर पहिला फ़ोन हमरे लगे आयिल रहे एहु के त ख्याल रखे के रहे। सामने आपन खर्च और जिम्मेदारी भी रहे। काफी सोच विचार और प्रयास के बाद पचिश हज़ार पर हम मन ही मन तैयार हो गायिनी।
कुछ ही दिन में यज्ञ के समय नियरा गईल और हम एक महीना के छुट्टी लेके गावे पहुच गयिनी। गावे पहुचते ही निकेश और उनकर टोली हमके घेर लेहलस। चंदा के रकम के बारे में बात चालू हो गईल। हमार सोच रहे कि उ लोग शायद हमसे नाराज होई लोग पर वो लोग हमार रकम के ख़ुशी खुशी स्वीकार क लिहल लोग। हम पैसा निकाल के देबे लगनी त उ लोग मना क दिहल लोग। कहल लोग कि पैसा सबसे अंत में लियाई। हमार पैसा कही भाग के थोड़े जायी।
अगिला दिने सबेरे सबेरे गाव में बड़ा हलचल रहे। पिंटुवा के जीप के सजावल जात रहे फूल माला से। हम वोइजा पहुचनि त पता चलल कि गाव के सबसे बड़का बहबल और निकेश व उनकर संघतियन के गुरु टुनटुन भैया ट्रैन से मैरवा स्टेशन उतरे वाला रहले और इ सब उनका स्वागत के तैयारी में होत रहे। इहो पता चलल कि टुनटुन भैया कवनो चार्ट भी लेके आवत रहले जैमे कि पूरा यज्ञ के रूपरेखा बनल रहे। उ अलग अलग दल बनवले रहले और यज्ञ में सबके काम बटाईल रहे। उ चार्ट के बनावे में बड़ा मेहनत कैले रहले । आखिर में सब गाव से बड़का यज्ञ जवन करेके रहे।
वैसे टुनटुन भैया गाव ही के ना बल्कि हमरा जवार के अनोखा आदमी रहले। कवनो अइसन बात,समस्या न रहे जई पर उनका पास मत न रहे या ओकर हल न रहे। मंगले, बिना मंगले उ सबपे आपन राय देस पर पूरा गाव में उनकर बात ई पियक्कड़ टोली के ही सबसे पसंद आवे। टुनटुन भैया दारु न पियस पर कभी कभी बियर जरूर पियस।
टुनटुन भैया के पहुचला के दूसरा दिन ही पूरा गाव के बैठक भईल चंदा खातिर। अबतक हर घर पे केतना चन्दा लगी इ तय न भईल रहे। टुनटुन भैया पंद्रह हज़ार के प्रस्ताव रखले जवना के निकेश और उनकर साथी लोग समर्थन कईल लोग।
"ई त बहुत ज्यादा रकम बा। सब केहु अतना कहा दे पायी। " हम विरोध कइनी।
"तू दे देले बाड़ न। फिर दूसरा के चिंता में काहे बाड़। " निकेश खिसिया के कहले।
"पर सबके कमाई हमरे खान त नइखे न। "
"तू आपना के बहुत बड़का कमाए वाला बुझतार का। तहरा से केहु कम न कमाला ऐजा। " दिहाड़ी मजदूरी करेवाला दिनवा हमरा बात पे आपत्ति जतवलस त हमरा सामने वोकरमाई के चेहरा आ गईल जवन कि सबेरे ही हमरा घरे २० किलो गेहू खातिर गिड़गिड़ात रहे। हम चुप हो गईनी।
अधिकतर लोग जे कच्चा मकान में रहे उ दिनवा के समर्थन कइले। उ लोग के इ बात अपना इज्जत के खिलाफ बुझाईल। वैसे भी इ धरम करम के बात रहे और वोइसे बढ़के काबा। कुछ लोग ए रकम के विरोध भी कईल तब टुनटुन भैया दस हज़ार के नया प्रस्ताव रखले। जवन कि सबलोग सहर्ष स्वीकार क लेहल। बड़ा आश्चर्यजनक पर सच्चा नजारा रहे। आज तक गाव में कभी पचास हज़ार के भी चंदा इकठ्ठा न भईल रहे और आज आनन फानन में यज्ञ के लगभग पूरा रकम के इंतजाम हो गईल। सब मिलाके आठ लाख त गाव से ही आ गईल जबकि बाकि दू लाख अन्य गाव तथा सड़क से वसूले के निर्णय भईल।
एक हफ्ता बाद यज्ञ के शुरुआत हो गईल। सबसे पाहिले यज्ञ खातिर कलश भरे के यात्रा निकलल त हाथी और घोडा कुल के लाइन लाग गईल। टुनटुन भैया खुद हाथी पे बैठ के जुलुस के नेतृतव कईले। गाव से लेके पाच किलोमीटर तक लोगन के हुज़ूम उमड़ पडल। यज्ञ के शुरुवात बड़ा धूमधाम से भईल पर हमार मन उचट गईल और मन करे कि कब वोइजा से भाग जायी। पूरा एकर संचालन पियक्कड़ कुल के हाथ में रहे जवन कि सबेरे सबेरे दारु से कुल्ला करसन और वोही से नाश्ता। हमरा बड़ा घुटन होखे। ये यज्ञ से भगवान केतना प्रसन्न होइहे ई विचारणीय रहे। कवनोगा क के हम तय कइनी कि यज्ञ छोड़ के गईल ठीक न रही। यज्ञ के तीसरा दिने दिनवा के घर पे आग लाग गईल। पुरवा पूरा बेग में बहत रहे और कवनो लड़िका के गलती से आग लग गईल। सारा लोग दौड़ के आग बुझावल और भाग्यवश केहु के कुछ न भईल पर घर के सारा सामन जर गईल। सब केहु एके यज्ञ के महिमा बतावल व सारा एकर श्रेय निकेश और टुनटुन भैया ले गईल लोग। पूरा गाव के समझ में आ गईल कि भगवान के भक्ति के का परिणाम होला। पर केहु इ न सवाल पूछल कि अगर भगवान अतने खुश रहले यज्ञ से त ओकरा घर में आग ही काहे लागल। अब समस्या ई रहे कि दिनवा के परिवार रही कहा। वोह दीन बहसे वाला दिनवा के मुह से आज कवनो शब्द न निकलत रहे और सबके तरफ उ आशा से देखत रहे।
"दिनवा के कुछ मदद करे के चाही। हम चाहतानी कि एके कम से कम एगो मड़ई भर के पैसा त दिया जाऊ। पचीस हज़ार त दिया जाऊ। आखिर बहिन बेटी कहा रहिह सन " हम सुझाव देहनी।
पर केहु के मुह से एको शब्द न निकलल। पूरा गाव के साप सुंघा गईल रहे।
इ वाकई पे अद्भुत नजारा रहे। जवन गाव धर्म के नाम पर कर्ज लेके आठ लाख आनन फानन में दे देहलस उ एगो गरीब के मदद देबे खातिर गूंग हो गईल रहे। मतलब साफ़ रहे कि केहु ओकर मदद करे के तैयार न रहे।
"न होखे त यज्ञ के पैसा में से ही दिनवा के मदद हो जाऊ।" हम कहनी
"ई कैसे हो सकेला " टुनटुन भैया कहले "उ यज्ञ के अमानत ह। "
"एकदम सही। " निकेशवा कहलस " वोइमे से पैसा नइखे दिया सकत। गाव के अधिकतर लोग ऐमे हामी भरल।
धीरे धीरे भीड़ छट गईल। हम अभीभी सोचत रहनी कि कैसे मदद कईल जाऊ। फिर ध्यान आयिल कि यज्ञ वाला पैसा त हमरा लगही बा उहे काहे न दिया जाऊ। इहो कवनो धर्म करम से कम थोड़े बा। हम घरे जाके पैसा लिआ के दिनवा के दे देहनी। ओकरा लगे बोले के कवनो शब्द न रहे। आख से आँसू गिरे लागल।
"अब आपन आख खोल लाडा के नाती " ओकर माई खिसिया के कहली " ते ये यज्ञ खातिर ते सूद प पैसा लेके देहले बड़का बने खातिर। बड़का एके कहल जाला।"
तब हमके पता चलल कि गाव के गरीब लोग बड़का बने खातिर और आपना इज्जत बढ़ावे खातिर यज्ञ कमिटी से ही सूद पे पैसा लेके चंदा देले रहे लोग। धन्य बा ई यज्ञ और हमनी के समाज जवन कि झूठा शान खातिर कुछु करा सकेला।
खैर हमार पैसा देहला के समाचार कुछ ही देर में गाव में फईल गईल और परिणाम स्वरुप यज्ञकर्ता और बाकि लोगन से हमरा झगड़ा हो गईल काहे से कि अब हम यज्ञ में पैसा देबे से इंकार क देहनी। अगिला दिने गाव छोड़ के वापस मुम्बई आ गईनी।
ये यज्ञ के आज एक साल बीत गईल बा और हम वापस गावे आयिल बानी। पिछला साल के यज्ञ के बारे में कइगो रोचक जानकारी मिलल और अब अधिकांश लोग हमसे नाराज नइखे। यज्ञ के ठीक से बीत गईल रहे पर अंत आवत आवत गाव के कई फाड़ हो गईल रहे। टुनटुन भैया और निकेश के तरीका से लोग के नाराजगी रहे और कई लोग अपना के यज्ञ से दूर क लेले रहे। यज्ञ में कुल मिलाके तिन लाख रुपया बचल जवन कि पंडीजी और निकेश के कमिटी के लोग आपस में बांट लिहल लोग। दिनवा और वोकरा जैसन और गाव के बड़का लोग अभी भी सूद भरता चंदा के पैसा के और सूद के पैसा से निकेश रोज दारू के नाश्ता करत ,करावतारे। अब कुछ ही दिन ही जे सूद नइखे भरत उनकर खेत लिखावे के तैयारी चलता।
के कहेला कि धरम करम से विकास न होला। जेकरा नइखे भरोसा उ हमरा गाव में आके देख लेउ ना त पंडीजी के गावे जाके देख लेउ। अबे एही साल उ एक बीघा जमीन लिखववले ह और गाव में दारु के दुकान के लाइसेंस भी लाटरी में मिल गईल बा। जय बोलो बाबा भोलेनाथ की।
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धनंजय तिवारी
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