धूर- धूर- गुबार देखते रहे..
BY Anonymous3 Oct 2017 2:57 AM GMT

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Anonymous3 Oct 2017 2:57 AM GMT
आज फेर ऊ जात रहली...
सुनके हमार करेजा धौंकनी लेखा धकर धकर करत रहुवे
उनकर गाड़ी तेजी से आगे सरसराईल बढ़ल चल गउवे, आ हम पाछा से खाली ओकर धुआं देखत रह गईनी।
आस्ते आस्ते आसमां पूरा धूर से भर गईल, आ गाड़ी छोट होत होत बिला गईल।
हम उनका से तब्बो ना बता पइनी, जब ऊ हमरा क्लास में पहिलका हाली पढ़े अईली।
तब्बो ना बोल पईनी जब उ हमार मोहल्ला छोड़ के दोसर शहर में जात रहली।
तब्बो ना बता पईनी,जब उ हमरा इन्हां आपन बियाह के कार्ड देवे अइल रहली।
कोशिश त भरसक कईनी, लेकिन तब्बो ना बता पईनी जब ओकर लोर से भरल आँख आपन मरद के पिटला के खिस्सा चीख चीख के बतावत रहे।
आ किस्मत के खेला देखीं, आज जब बतावे के हिम्मत जुटवनी ह, त चाहियो के ना बता सकेनी। काहेकि उ हमेशा खातिर जा तारी - "सफेद कपड़ा में लपेटल, अर्थी पर"....
कुणाल भारद्वाज
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