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भोजपुरी कहानिया

कन्हैया प्रसाद तिवारी "रसिक" जी के रचित कहानी मुअला में आनंद बा

कन्हैया प्रसाद तिवारी रसिक जी  के रचित कहानी  मुअला में आनंद बा
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जब हम सर्विस में रहीं ओह घरी के बात ह , बहुत बड़का अधिकारी के निरीक्षण होखेवाला रहे एह से काम••••काम••••• और खाली काम , कहे के मतलब कि सब काम अपटूडेट होखे के चाहीं। सभके गोड़ में चरखा लागल रहे, हमहु ओही में से एगो रहीं सुबह से लेके सांझ तक पानी पिये के समय ना रहे , तिवारीजी , हई काम ••• तिवारीजी हउ काम बाहर निकलला के देर काम के झड़ी लाग जात रहे । बाहर माने घर से बाहर ना अपना केबिन से बाहर ।
शुक के दिन रहे काम से तनि थक गइल रहनी एह से कुर्सी पो बइठ के आराम करत रहनी तले तनि झपकी आ गइल ओही झपकी में हमरा जीवन के रहस्य के दर्शन भइल आ हमार अंतरात्मा हमरा से पुछलस कि " आज यदि हम निकल जाईं त इ सब काम के करी " ।
एच बा एक हम अचकचा के उठनी आ समने दु चार गो जूनियर लइका बइठल रहलेसन , ओहनी से सवाल दोहरवनी " आज हम मर जाईं त सभ काम के करी " । लइका सभ समझ ना पवलेसन कि हमरा अंदर का चलत बा। ओहनी के सीधा जबाब रहे सर काम कबो ना रूकेला । अपना हिस्सा के केम हम खतम कर देले रहीं बाकि जाये के आदेश ना रहे। हम लइकन से कहनी कि आज अभी हम मर गइल बानी आ झोरा उठाके चल देनी ।ओह में से एगो लइका पुछलस कि सर अधिकारी पुछिहें त का कहब, हम कहनी कि कह दिहे कि तिवारी सर मर गइल बाड़े इ सनिचर अतवार मरले रहीहन । काहें से कि सनिचर आ अतवारो के ड्यूटी रहे।
घरे जाके दु दिन दिमाग से भोथर हो गइनी।
सोमार के जब ड्यूटी अइनी त हम इंतजार करत रहीं कि केहु पुछे हमरा से कि दु दिन काहे ना आइल रहनी बाकि केहु ना पुछल आ ना कवनो काम रुकल रहे । तब हमरा बुझाइल झुठहू के आदमी हाय हाय कइले बा , तब से कबो कबो मउअत के दरशन करत रहीना।
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