"एगो सभ्य पियक्कड़ के मऊअत"
BY Anonymous28 Sep 2017 7:42 AM GMT

X
Anonymous28 Sep 2017 7:42 AM GMT
बिहाने बिहाने गाँव में हल्ला मचल बा। जीतेन्द्र बाबा यानी जीतेन्द्र पाडे के मउअत के। सब लोग उनके घर कि ओर जा रहल बा। हमहू जाड़ के आलस के त्याग के उनका घर की ओर चल देले बानी। इहे त गाँव के रहन सहन, संस्कार बा। ओईसे अलग शायदे केहू हो सकेला। इहो कवनो मरे के उमिर होला। 50 के आस पास के रहले ह बाबा। वईसे जीतेन्द्र बाबा के मउगत त तय रहल ह। ई सबके मालूम रहल ह। ढेर दारू पियला से लीवर अउरी किडनी दुनु ख़राब हो गईल रहल ह।
बाबा के दुआर पर लोग के हुजूम लागल बा पर रोवे वाला केहू नईखे। चार भाई में तीसरा नंबर पर रहले ह बाबा। चारू भाई अलग अउरी आर्थिक स्थिति कि बस सबके काम चल जाला। बाबा के बियाह के कुछ ही साल बाद उनकर मलिकायीन मर गईली अउरी ओकरा बाद बाबा दारू से आपन दुसर बियाह क लेहले। बहुत लोग इहो कहेला कि उ अपना मेहरारू के बहुत मानंस अउरी एही वजह से उ दुसरका बियाह ना कईले। मेहरारू के मरला के बाद उनकर आपन स्वतंत्र जिनगी हो गईल अउरी भाई लोग के रोक टोक से आजीज आके उ अलग हो गईले। कुछ दिन खुदे खाना बनवले अउरी ओकरा बाद भाई लोग के दया आईल त उनके केहू खिया दे।
बाबा के दुआर पर सभके मुह से एकही बात निकलता भले पियक्कड़ रहले ह त का पर बहुते सभ्य पियक्कड़ रहले ह। अब रउवा सभ सोचेब कि पियक्कड़ भी सभ्य होला। वईसे त दारू पिए वाला लोग के लेके हम पूर्वाग्रह से ग्रस्त बानी अउरी पहिला नजर में हम सभ पिए वाला के ख़राब ही बुझेनी पर तबो हम इ कहेब कि सभ्य पियक्कड़ जरूर होला। हमरा नजर में सभ्य पियक्कड़ उ होला जे दारू पीके हुडदंग ना करेला, दूसरा से मारपीट ना करेला, गाली गलौज ना करेला, नाली में गिरेला अउरी जेके टांग के दू चार आदमी घरे ना पहुचावेला। जीतेन्द्र बाबा एही में के पियक्कड़ रहले ह। कवनो अईसन दिन बाव ना जाई जब उ दारु ना पियस पर मजाल केहू के कि इ कही सके कि उ बाबा के होश खोवत देखले होखे या फेरु आपा से बाहर होत देखले होखे। अगर रउवा उनका से ठीक से परिचित ना होखी त रउवा उनका से घंटो बतियाई पर रउवा कबो ना जान पयिती कि उ पियले बाडे। बोखारन के दारू से दोकान से निकलला के बाद बाबा दिन भर मणि जी के दोकान पर ताश खेलिहे अउरी शाम के लौटत समय एक पैग फेनु मार के घरे लौट जयिहे।
एगो स्वाभाविक सवाल जवन कि बहुत लोग के दिमाग में आवे अउरी रउवा सभ के दिमाग में भी आ सकेला कि जब बाबा कवनो काम करते ना रहले ह अउरी आमदनी के कवनो जरिया भी ना रहल ह त उनकर दारू के पईसा देत के रहल ह। इहे सबसे बड़ बात बा। जे दारूखाना में दारू पियले होई या पियत होई (जे घर में पियेला उ कबो ना बुझी) उ तुरंते समझ जाई कि संसार में दारू के कमी नईखे ना पिए खातिर पईसा चाही। अगर रउवा अन्दर बड़कपन बा अउरी सभ्यता बा त दारूबाज लोग के बिरादरी रउवा के पकड़ पकड़ के पियाई बस रउवा बिरादरी के तौर तरीका मालूम होखे के चाही। सच कही त अगर दारू ख़राब चीज ना रहित अउरी ओईसे लोग के पेट भरित त फेरु सरकार के गरीबी उन्मूलन के हजारो योजना ना चलावे के पडित। सब लोग के पेट भरे के जिम्मा त पियक्कड़ बिरादरी ही उठा लित पर अफ़सोस कि दारू से लीवर अउरी किडनी ख़राब हो जाला अउरी पेट भी ना भरेला। हां अगर कुछ होला त उ तृप्त होला लोग के जीभ।
जीतेन्द्र बाबा ऐ बिरादरी के तौर तरीका से भली भाति परिचित रहले ह। एही से उनके पियक्कड़ लोग बोला बोला के पियाई। बाबा के शायरी के पियक्कड़ ही ना बल्कि पूरा जवार कायल रहल ह अउरी एही शायरी के वजह से पियक्कड़ कुल के बिच उहाँ के विशिष्ट स्थान रहल ह। उहाँ के शायरी पियक्कड़ लोग के दर्द पर मरहम लगावे के काम करत रहल ह त कबो मनोरंजन।
सब बात से बढ़के जीतेन्द्र बाबा मधुशाला के इ लाइन के हमेशा मानत रहले ह - मुसलमान और हिन्दू है दो एक मगर उनका प्याला , अउरी मंदिर मस्जिद बैर कराती मेल कराती मधुशाला। दारू के ठेहा पर अगर रउवा मान सम्मान अर्जित करे के बा त फेरु ओयिजा रउवा तटस्थ बन के जाई। राजनीति अउरी जाति धर्म के भुला के जाई काहे से कि दारू के एक ही जाति धर्म होला। ओयिजा एक ही राजनीति होला कि कवनो राजनीति ना होला। अउरी एही रहस्य के बाबा जानत रहनी ह। आजतक उहाँ के कबो कवनो विवाद में ना पड़नी अउरी अगर कबो दूसरा के बिच विवाद के नौबत आईल भी त अपना शायरी से बात के रूख दूसरा ओरी मोड़ी देहनी। देखे में भले रउवा बहुत साधारण काम लाग सकेला पर इ बहुत हाई क्वालिटी के काम ह अउरी इ सबके बस के बात नईखे।
अब वीरेंदर बाबू के ही उदाहरन देख ली। उ फ़ौज से रिटायर होके अयिले अउरी इन्ही खान सभ्य पियक्कड़ बने के कोशिश कईले। चुकी उनकर पढाई लिखाई ढेर रहे अउरी ऊपर से उनके मधुशाला पूरा कंठस्थ ,जोरदार तरीका से उनकर बोखारन के ठेहा पर स्वागत भईल। दारू के जोश में उ मधुशाला के उ लाइन सुनावास जवन जीतेन्द्र बाबा कबो सुनले भी रहले अउरी पूरा पियक्कड़ झूम उठसन। पर वीरेंदर बाबू एगो गलती क देहले। उ अपना साथे दारूखाना में राजनीति भी लेके घुस गईले। फेरु का ? राजनीति के लेके पहिले बहसा बहसी, फेरु फायटा फयटी। कुछ लोग के नाक फूटल, कुछ लोग के भुभुन अउरी वीरेंदर बाबू के मुड़ी अउरी ओकरा बाद से उ मयखाना से तौबा क लेहले। उनका बुझा गईल कि सभ्य पियक्कड़ बनल खलिहा जीतेन्द्र बाबा के ही बस के बात बा।
भले बाबा के केहू शिकायत ना करे, केहू दूर ना भागे पर तबो बाबा के आपन अएब महसूस होखे। अपना के कुंठित महसूस करस। तबे त उ एक दिन हमसे कहले कि तू काहे मणि के दोकान पर जब हम रहेनी त ना आवे ल जबकि उ तहार ख़ास संघतिया हवे। हम चुपा गईनी। फेरु उहे जबाब देहनी। हम जानतानी तहरा खानदान में केहू सुरती भी ना खाला अउरी अहिसे तू हमरा जईसन पियक्कड़ साथे ना बयिठ्ले। हम बात बनवत कहनी कि नाही नाही अईसन बात नईखे। पर उ एतना मुर्ख थोड़े रहले -कहले कि हम सब बुझेनी पर का करी बाबू हमहू जानेनी , दारू ख़राब होला पर का करी, कुसुम के भुलावे के हमरा लगे दोसर उपाय नईखे। इ समझ ल कि इ दारू के रूप में ही हमार दुसर कुसुम जन्म लेले बाड़ी। हम ओइदीन उनकर पत्नी खातिर प्रेम के गहराई के महसूस कईनी।
फेरु कुछ दिन बाद पता चलल कि उनकर लीवर अउरी गुर्दा दुनु ख़राब हो गईल बा। इलाज संभव रहे पर ओतना महंगा इलाज के करायित। दारूखाना के दोस्ती में खलिहा दारू ही भर मन भेटाला। ओयिजा के दोस्ती अउरी भाईचारा ओहिजा शुरू होला अउरी ओहिजा खत्म। दूसरा जगह से सहायता मिले के कवनो उम्मीद ही न रहे।
.. त फेरु भईल उहे जवन होखे के रहे। आज ऐ जिला जवार के सभ्य पियक्कड़ जीतेन्द्र बाबा दुनिया से निकल लेहले।
....
बाबा के सिराहने उनकर डायरी मिलल बा। ओयिमे उनकर शायरी कुल लिखल बा अउरी साथ ही उनकर अंतिम इच्छा भी दर्ज बा -
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आँसूं में हाला
आह भरे वह, जो हो सुर्भित मदिरा पी कर मतवाला
दे मुझको वे कंधा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस थोर जहाँ पर कभी रही हो मधुशाला
बाबा के इ अंतिम इच्छा पढके उनका घर अउरी गाँव के लोग हैरान बा. ई इच्छा कईसे पूरा होई पर ऐ इच्छा के पूरा करे खातिर जवार के सगरी पियक्कड़ बिरादरी एक बा। कुछु होखे बाबा हमनी के शान रहले ह। उनकर इच्छा हर हाल में पूरा होई।
बाबा के लाश उठ के जरे खातिर चल देला। तय भईल बा कि बोखारन के दारूखाना के ठीके पीछे वाला जगह से बढ़िया जगह दुसर नईखे हो सकत बाबा के जरावे खातिर।
ऐ अंतिम यात्रा में हमहू शमिल बानी। मन में बस एकही बात बा। वईसे त दारू ना पिए के चाही काहे से कि अईसे लीवर अउरी किडनी ख़राब हो जाला अउरी बेसमय बेमौत मरे के पड़ेला पर अगर रउवा तभियो नईखी मानत त फेरु जीतेन्द्र बाबा जईसन सभ्य पियक्कड़ बनी। मरला के बाद भी लोग जय जयकार करी।
-धनन्जय तिवारी
Next Story