वानर गति
BY Suryakant Pathak21 Aug 2017 2:36 AM GMT

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Suryakant Pathak21 Aug 2017 2:36 AM GMT
हड़बड़ाकर जब वो नींद से जगा तो आदतन हाथ सिरहाने मोबाइल टटोलने लगे। स्क्रीन ऑन करके समय देखा तो सुबह के साढ़े चार बज रहे थे। कमरे में घुप्प अंधेरा था और बस पंखे की हन्न-हन्न आवाज नीरव सन्नाटे को तोड़कर जीवंतता का अहसास करा रही थी। उसने आंखें फाड़कर इकलौती खिड़की के बाहर रोशनी टटोलने की कोशिश की लेकिन वहां भी अभी अंधेरा तारी था। सांसें व्यस्त लुहार की धौंकनी की तरह चल रही थीं और दिल किसी बियाबान में लगातार चल रहे पम्पिंग सेट सा दनक रहा था। ओह ! ऐसा दुःस्वप्न ! उसने अपनी फिर से इंद्रियों पर काबू करके सो जाने की कोशिश की , लेकिन नींद ने इस स्वप्न के खेल में सीटी बजाकर मध्यांतर होने का इशारा कर दिया था।
वो सप्रयास सोने की कोशिश करने लगा ताकि ये दुःस्वप्न वहीं से शुरू हो , जहां आधा छूट गया था। शायद वहां से आगे कुछ अच्छा मोड़ आये! आखिर स्वप्न में तो कुछ भी सम्भव है। 'अगर सपने भी जिंदगी की तरह हौलनाक हो जाएंगे तो फिर कैसे चलेगा?सपनों को तो अच्छा होना ही पड़ेगा , भले जिंदगी जितनी भी क्रूर और हाथ से बाहर हो ले।' सपना अजीब भयावह था। उसने देखा कि कोई बच्चा खेल रहा है। हालांकि वह पहचान नहीं पाया कि कौन है लेकिन जो भी था , परिचित सा बच्चा था। तभी अचानक उसे दिखा कि बच्चा मर गया ! वो हड़बड़ा गया , जैसे कोई सूचना दे रहा हो। और तभी घबराकर उसकी नींद खुल गई। हालांकि वह चाहता था कि सपना कुछ देर और चले.… कोई चमत्कार हो और बच्चा जी उठे। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उसे नींद नहीं आई। हालांकि यह पहली बार नहीं था कि वह कोई सपना देख रहा हो और सपने के दौरान उसकी नींद उचट गई हो। धन-लाभ के सपने, अभिसार के सपने , कोई अमूल्य वस्तु हासिल होने के सपने... तमाम हसीन सपने होते जो मुकम्मल होने से पहले टूटकर छितरा जाते थे। हालांकि इन सपनों के टूटने का उसे कभी कोई खास मलाल नहीं हुआ, न नींद में और न तो हकीकत में। लेकिन यह सपना ...!
सबसे बुरी बात थी कि इस सपने का दोहराव , या भरसक तिहराव हुआ आज। पहले भी उसने एकाध रातों को ऐसे अस्पष्ट सपने देखे थे , जिसमें किसी मासूम बच्चे के मर जाने जैसी सूचनाएं ध्वनित हुई थीं । किन्तु अबकी बार सपना स्पष्ट था .. किसी परिचित बच्चे के विषय में था । वो बहुत बेचैनी से करवटें बदलते हुये सो जाने अथवा पौ फटने की प्रतीक्षा करने लगा । हालांकि लोकश्रुति थी कि सपने में किसी के मृत्यु के विषय में सूचना मिलने पर उस शख्स की आयु बढ़ जाती है .. लेकिन बावजूद इसपर विश्वास रखने के वो भीतर से बुरी तरह दहला हुआ था।
जब इंतजार की बेचैनी नाकाबिलेबर्दाश्त हो गयी तो वो जल्दी से बिस्तर से खड़ा हुआ और हाजत से निबटकर मकान से बाहर आकर सड़क पर टहलने लगा । हर मकान के सामने से गुजरते हुये उसने अपने चौकन्ने कान दीवारों के भीतर की सरगोशियों पर सटा लिए। कहीं कोई अप्रिय चीख पुकार नही थी । वो निश्चिंत होने का दिखावा कर सकता था । कम से कम पार्क में टहल कर रोशनी और गाढ़ी होने का इंतजार तो किया ही जा सकता था !
पार्क में फूलों की बनावटी क्यारियों के बीच दो-तीन अदद लोहे की बेंचें पड़ी थीं । उन्ही में से एक बेंच पर वो जाकर बैठ गया । 'रात कितनी भी गर्म उमस भरी हो लेकिन लोहे पर जरा सी नमी छोड़ जाती है' अपने बगल में रखे हाथ पर नमी महसूस करते हुये उसने सोचा । फिर उंगली से उंगली रगड़कर उसने नमी हटाने की कोशिश की । ये क्या ! चिपचिपी और गाढ़ी सी कोई चीज है .. सूंघकर देखा तो चिरायंध गन्ध है । 'रात में किसी मनचले ने इकसठ-बासठ किया है । या फिर अपनी भावनाशून्य प्रेमिका के साथ रति-क्रीड़ा की है।' घृणा से उसने हाथ घास में पोंछ लिए । 'प्रेमिकाओं को भावनाहीन नही होना चाहिये। उनमें रति का उन्माद नही अपितु प्रेम का ठहराव होना चाहिये , अन्यथा वो बस देह होती है.. सस्ती और उबाऊ!'
वो दुःस्वप्न से धीरे-धीरे उबर रहा है । अपनी प्रेमिकाओं के बारे में क्रमबद्ध रूप से सोचने की कोशिश कर रहा है । उसकी सोच में प्रेम व्यवस्थित ढंग से आने लगा । देह नही है इसमें , न कोई वासनामय छिछलापन। हालांकि पिछले हफ्ते एक नवयुवती दोपहर के समय दरवाजे को खटखटा रही थी .. उसे किराये के मकान के लिये दरियाफ्त करनी थी । वो दरवाजे पर आया तो पता नही एकांत के उन क्षणों का दोष था या युवती के छलकते मादक शरीर का.. उसे विचित्र तरह का उन्माद भरा तनाव महसूस हुआ था । जल्दी से उस युवती को निबटाकर अंदर आया तो फिर बिस्तर पर लेटकर हाथों से ही उसने तनाव के घोड़े खोल दिये थे । आंखें बंद करके वो उस युवती के शरीर के कटाव , उसकी मुस्कुराती शरारती आंखों के बारे में सोचने की कोशिश करने लगा । लेकिन तभी दुःस्वप्न आकर मस्तिष्क के पटल पर दस्तक देने लगा । 'खट-खट .. आसपास कोई मकान खाली है क्या?' 'पता कर लीजिये इसके पीछे वाली गली में एकाध फ्लैट खाली हैं शायद!' 'वो तो ठीक है , क्या आसपास कोई बच्चा मर गया है?' (युवती की पुतलियां भय से फैली हुई हैं).... हड़बड़ाकर उसने आंखें खोल दी और पार्क की घास पर असामान्य गति से टहलने लगा । पौ फट गई है .. आसमान सिंदूर हो रहा है .. पार्क के पेड़ों पर चिड़ियों की चीख-पुकार मची है। उसने मोबाइल स्क्रीन ऑन की , साढ़े पांच बज रहे हैं ।
पार्क में बूढ़े , औरतें , बीमार आ रहे हैं । उसे बूढ़ों और औरतों में कोई दिलचस्पी नही है, बस बच्चों को ध्यान से देखना है । अगर वो सपने वाला बच्चा दिख जाए तो वो चीखकर उसे सावधान करेगा । नही शायद ये करना ठीक न हो ..! उसके घरवालों को ताकीद देगा कि इस बच्चे के स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखा जाए । पीछा करके घर भी पता किया जा सकता है , ताकि उसके स्वास्थ्य पर नजर रखी जा सके ।
उसने हर बच्चे के चेहरे को गौर से देखा .. यहां तक कि उनकी माएँ उसे घूरने लगीं और अपने बच्चे को लेकर पार्क के दूसरे हिस्सों में लेकर जाने लगीं । काफी देर बाद जब धूप थोड़ी गर्म होने लगीं तो पार्क खाली होने लगा । माली आकर फूलों-पौधों को देखने लगा । थोड़ी देर बाद माली ऊबकर दातुन चबाता उधर को चला गया तो वो भी पार्क के गेट से बाहर निकल आया । सड़क पर बच्चे अपनी पीठ पर बस्ते लादे खड़े स्कूल बसों का इंतजार कर रहे हैं । कुछ को अभिभावक पहुंचाने ले जा रहे हैं । उसने हर बच्चे का चेहरा ध्यान से देखा और पहचानने की कोशिश करने लगा ।
घर आया तो पत्नी चाय और अखबार दे गई। अखबार पर पहले पन्ने पर हस्पताल में बच्चों के मरने की खबर है। वो हड़बड़ा गया .. गर्म चाय से जीभ और तालू जल गई । अखबार रखकर वो बेचैनी से टहलने लगा । पत्नी उसे अजीब नजरों से देखती रही । घर में उसका दम घुटने लगा । उसका मन हुआ कि बाहर जाकर सड़क पर चिल्ला दे कि इन बच्चों की मृत्यु उसके दुःस्वप्नों की वजह से हुई है । लेकिन उसे भय था कि उसे पागल करार दे दिया जायेगा । बाहर निकलने की उसकी हिम्मत नही हुई .. वो छत पर जाकर बैठ गया ।
छत पर सीढ़ियों के कमरे के ऊपर पानी की टंकी लगी हुई थी । उसने देखा कि टंकी का ढक्कन जमीन पर औंधा पड़ा हुआ था । ये बंदरों के झुंड की शरारत थी । वो गर्मी से आतप्त होकर आते और टँकी का ढक्कन खोलकर पानी पीते थे । उसने कई बार ढक्कन बंद करके उसपर ईंटें रख दी थीं लेकिन बन्दर उन ईंटों को हटाकर ढक्कन फेंक देते थे और पानी की टँकी में औंधे झुककर पानी पीते थे । उनके छोटे-छोटे बच्चे या तो माओं के सीने से चिपके रहते थे या फिर झुंड के पीछे-पीछे बड़ी कठिनाई से इमारतों के रेलिंगो पर काफिले का अनुगमन करते थे । कुछ बच्चे शरारत में झुंड से इधर-उधर होने होने की कोशिश करते तो कुत्तों द्वारा खदेड़ दिए जाते थे । अभी पिछले दिनों इस झुंड का एक बच्चा छत कूदने के दौरान गिरकर मर गया था । झुंड के बंदरों ने उसे चारो तरफ से घेर लिया था । उसकी माँ बार-बार बच्चे को सीने से चिपकाने की कोशिश करती , फिर जीवन का कोई चिह्न न पाकर मायूसी से उसे जमीन पर रख देती थी । बंदरों ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया न दी । न चीखे न चिल्लाये । अंत में उसकी मां उस बच्चे की लाश को कुछ दूरी तक घसीटते ले गयी और अंततः छोड़कर चली गयी । कुत्तों ने कुछ समय तक उसमें दिलचस्पी दिखाई फिर अंततः वो भी गाड़ियों के पीछे भूंकते हुये दौड़ने लगे । बंदरों का झुंड भी दो-तीन दिन नही दिखा फिर वापस उनकी हरामीपंती शुरू हो गयी ।
उसने सोचा काश कि इंसान की याददाश्त और संवेदनाएं भी बंदरों जैसी होती , ताकि दो तीन दिन में सब भूलकर वापस अपनी दिनचर्या में लग जाते..... या शायद थीं भी! इंसान की संवेदनाएं भी बन्दरनुमा ही थीं..... आदमी भी वानरगति को प्राप्त हो रहा था !
उसने औंधी पड़ी हुई बांस की सीढ़ी को उठाया और ऊपर टँकी वाली छत पर चढ़ गया । उसने ढक्कन लगाया और उसपर ईंटें रख दीं, फिर वापस सीढियां उतरने लगा । आधे रास्ते में अचानक उसे न जाने क्या हुआ कि वो वापस सीढियां चढ़ने लगा । उसने ढक्कन पर रखी हुई ईंटें हटायी ... ढक्कन खोलकर एक तरफ फैंका और कमर तक औंधा उलटकर टंकी में मुंह धांसकर चप-चप पानी पीने लगा !!
अतुल शुक्ल
गोरखपुर
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