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भोजपुरी कहानिया

लघु कथा (एक्स्ट्रा क्लास )

लघु कथा     (एक्स्ट्रा क्लास )
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"एक्सक्यूज मी! यह लेडिज सीट है ।आप अपने लिए कोई दूसरी सीट देखिए ।"

जैसे ही यह वाक्य मेरे कानों तक पहुँचा, मेरी नजर बरबस ही बस की सीट के बगल में लाल रंग से लिखे शब्द "महिलाएं" पर चली गयी ।
-"ओह साॅरी मैम! जल्दबाजी में में मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा ।"
अपने हैंडबैग को हाथ में लेकर सीट से उठते हुए मैंने उस लड़की से माफी मांगी ।
-"इट्स ओके । कोई बात नहीं ।आप कहीं और जाकर बैठ जाईए ।"
इतना सुनते ही मैं बस के अंदर अपने बैठने के लिए चारो तरफ देखने लगा मगर बैठना तो दूर खड़े रहने के लिए भी जगह नहीं था ।
किसी तरह उसी लडकी के पास खड़ा हो गया ।
बस जिला मुख्यालय,को जा रही थी ।
लड़की स्कूल ड्रेस में थी ।ड्रेस के कलर देखकर ही मुझे उसके स्कूल के नाम के बारे पूछने की जरूरत नहीं पड़ी।अच्छे-अच्छे पब्लिक स्कूल जिला मुख्यालय में ही थे ।

शायद सुबह में उसके स्कूल की बस उससे छुट गयी होगी ।इसलिए किसी दूसरे साधन से स्कूल जा रही थी ।
अभी एक घंटे का सफर बाकी था ।बस में देर से खड़े-खडे मेरा मन ऊब रहा था ।सोचा कि इसी लड़की से थोड़ी बातचीत करके लम्बी दूरी के बोझिल दूरी सफर को दूर करूँ ।
-"तुम्हारा नाम क्या है, बेटी? "
मेरे इस प्रश्न पर वह लड़की असहज महसूस की ।क्योंकि उसके भाव-भंगिमा से मुझे ऐसा लग गया।फिर भी थोड़ी देर रूख कर उसने जवाब दिया ।
-"जी, प्रगति ।
-"किस क्लास में पढ़ती हो?
-"जी 12 th में,"
-" अच्छा । किस विषय से?
-"साइंस ।"
फिर मैंने पूछा, -"मैथेमेटिक्स से या बायोलॉजी से।
-"मुझे तो मैथ्स पसंद है बट पैरेंट्स मुझे डाक्टर बनाना चाहते हैं ।"

ऐसे ही बातें करते हुए हमारी बस कब अपने गंतव्य तक पहुंच गई, पता ही नही चला।

-"ओके बेटी! मन लगाकर पढना ।अपने मम्मी-पापा के सपनों को जरूर पूरा करना ।"
आशिर्वाद देकर मैं अपना विशेष कार्य करने के हेतु पैदल प्रस्थान किया ।प्रगति भी अपने स्कूल के तरफ चली गयी ।
पूरे दिन के अपने आवश्यक व्यस्त कार्यक्रम से फुर्सत पाते ही एक रेस्टोरेंट में स्नैक्स लेने के लिए चला गया ।रेस्टोरेंट में जाकर मैंने वेटर को एक कप काफी का आर्डर दिया ।
फिर मेरी नजर कोने में बैठे एक कपल पर जाकर ठिठक गयी ।
-"अरे! ये तो वही लड़की है,प्रगति जो मेरे साथ सुबह बस में आयी! इसका स्कूल तो दो घंटा पहले ही ओवर हो गया होगा ।फिर घर जाने की अपेक्षा यहाँ इस लडके के साथ क्या कर रही है? "
अभी मैं खुद से यह प्रश्न कर ही रहा था कि प्रगति का मोबाइल पर फोन आया ।प्रगति ने फोन रिसीव करते ही बोला, -"हैलो, माँ "
अब उधर क्या आवाज आयी मुझे नहीं पता लेकिन प्रगति के बात करने के तरीके से मैंने यह अंदाजा लगाया कि इसकी मां इसके ससमय घर नहीं पहुंचने से परेशान होंगी ।
,-"ओह! माँ । आज मैं एक्स्ट्रा क्लास कर रही हूं न ।"
मैंने खुद से प्रश्न किया, "एक्स्ट्रा क्लास! और वो भी रेस्टोरेंट में! !!"
अब मुझे यह समझने में देर नही लगा कि प्रगति अपने पैरेंट्स को धोखे के सिवाय कुछ नहीं दे रही थी ।

कितना विश्वास होगा प्रगति के माता-पिता का अपनी बेटी पर?

प्रगति के माता-पिता को अपने बेटी को डाक्टर बनाने के सपने का क्या होगा?
अपने मन में पुन: कुछ और अनुत्तरित प्रश्न लेकर मैं सर झुकाकर काॅफी पीने लगा।

नीरज मिश्रा
बलिया (उत्तर प्रदेश )।
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