आदरणीया खुश्बू जी!
BY Suryakant Pathak18 Aug 2017 2:32 AM GMT

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Suryakant Pathak18 Aug 2017 2:32 AM GMT
कहां से शुरु करुँ? आज 'सरस सलिल' के मुखपृष्ठ पर आपकी सुन्दर सी फोटो देखी और बगल में 'भाभी लूटे मजा' शीर्षक देखा तो खुद को रोक नहीं सका। सर्वप्रथम बधाई स्वीकारें।
और जो हमारे सम्मानित पुरूष भाई लो जो द्विअर्थी के नाम पर अश्लील गाते है सबके लिए पर आपके लिए विशेष ।
आप मुझे नहीं जानती... लेकिन मैंने आपको उस दिन जाना था, जब बलिया जाते हुए सवारी बस से दो लड़कियाँ बीच रास्ते में इसलिये उतर गईं कि उसमें आपका अतिप्रसिद्ध गाना 'शमियाना के चोप तोरी'... बज रहा था।हांलाकि उन लड़कियों ने बलिया तक का किराया दे दिया था। उस दिन भी मैंने आपको जाना था जब, कुशीनगर की मेरी एक फ्रेंड ने मुझे बस इसलिये अनफ्रेंड कर दिया कि आप 'भोजपुरी' में गाती हैं और मैं भी भोजपुरी भाषी हूँ।आप जैसे गायक/गायिका को उस पल भी महसूस करता हूँ जब कालेज जाने वाली किसी लड़की का सर शर्म से झुक जाता है आपके द्वारा गाये गानों पर।
अश्लीलता जहाँ शर्मसार हो जाती है वो दहलीज आपकी ही है मैडम।द्विअर्थी भाषा में श्लेष-यमक और मादक उतार-चढ़ाव द्वारा शाब्दिक बलात्कार करती हुई आपकी सम्मोहक आवाज़ भोजपुरी क्षेत्र में लड़कियों के पांव घर से निकलने नहीं देते। भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में मान्यता दिलाने के लिये कुछ लोग रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। बोलने वालों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ी बोली है यह। पर अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिली।क्यों? सोचिएगा कभी। भोजपुरी क्षेत्रों के अल्प शिक्षित युवा आपके आपके गानों को ही सुन-सुन कर बलात्कार जैसे अपराध के लिये उत्प्रेरित होते हैं। क्योंकि संगीत का प्रभाव गहरे अर्थ में पड़ता ही है मनुष्य पर, यह आप भी जानती ही हैं।
बहुत कुछ लिखना है मैम!लेकिन मैं "भाषिक सनी लियोन टाईप" लोगों पर नहीं लिखता। मेरी कलम श्रृंगार लिख सकती है, अश्लीलता नहीं। हाँ! एक प्रार्थना है ईश्वर से कि, आपकी एक सुन्दर सी पुत्री हो...वो भी जब कालेज जाए तो उसके कानों में भी आपके यही कामुक उत्तेजक अश्लील और घटिया गाने सुनाई पड़ें। फिर वो जब घर आएगी तो उसकी आँखों में देखिएगा... उस दिन आपको अपनी इस 'प्रसिद्धि' की कीमत पता चलेगी।
यह पोस्ट आप तक जाएगी जरुर, मैं जानता हूँ।भोजपुरी के कुछ मठाधीशों की नज़र में भी आऊंगा अब। पर मेरा कुछ बिगड़ेगा नहीं मैडम। क्योंकि भोजपुरी मेरे लिये 'साधन' नहीं 'साधना' है। हाँ,'धूमिल' की दो पंक्तियाँ ले लीजिए-
"जिन्दा रहने के पीछे अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेचकर या रण्डियों की
दलाली करके रोजी कमाने में कोई फर्क नहीं है।।"
और सोचिएगा आज की रात। क्योंकि 'भोजपुरी' में आपका भी इतिहास लिखा जाएगा... और शायद मेरा भी।
असित कुमार मिश्र
बलिया
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