Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

"छोटू चौबवा , सरवा जगलर है...

छोटू चौबवा , सरवा जगलर है...
X
छोटू चौबे जगलर मनई हैं।
यूँ तो भोली भाली पब्लिक ई जानती है कि ऊ ठीकेदार हैं , लेकिन सुधीजन और विद्वान् एकमत हैं कि "छोटू चौबवा , सरवा जगलर है!" जो लोग ई मानते हैं कि छोटू ठीकेदार हैं , उनको शायद नही पता कि चौबे जी कि कुल ठीकेदारी सुबह बुलेट इस्टार्ट करके हौसिला तिवारी एमएलए के हाते पर जाकर ठहरती है , एमएलए साहब के निकलते वक्त लपककर पजेरो में बैठती है और शाम ढले वापस आकर पजेरो से उतरकर , बुलेट से घर चली आती है । ऐसा नहीं है कि छोटू इस ठीकेदारी से कुछ उत्पादित न करते हों... ठीक ठाक ताम-झाम फैला लेते हैं चौबे जी ।

आजकल छोटू की ठीकेदारी बन्द है । उसके पीछे की उपकथा ई है कि चौबे जी के चमचा-ए-आजम सोनू पाठक के बहिन का पिछले महीने बियाह था .... गुरुदेव ने गोलघर के 'रसभरी स्वीट हॉउस' से दस किलो काजू बर्फी और बीस किलो खोया बर्फी बरतियों को पानी पिलाने के लिए तौलवा लिया । पैसा मांगने की अनैच्छिक बेला में चौबे जी ने अपनी झक उज्जर बुशर्ट उठायी , और जीन्स में खुंसी हुयी मुंगेर निर्मित पिस्तौल निकालकर काउंटर पर धर दी । और अमिताभ बच्चन के अंदाज में मिष्ठान भण्डार के स्वामी रसिक लाल से दस हजार का सवाल पूछा "अग्रवाल जी.. ई बताइये कि मैगजीन में कै ठो गोली है?" अग्रवाल जी की आयु काफी थी , किन्तु अपनी पूरी जिंदगी में इस तरह की हॉट सीट पर बैठने का उनको कोई तजुर्बा नहीं हुआ था । उन्होंने थूक निगलकर शीशे के पार दिख रही पुलिस चौकी की तरफ नजर डाली... पुलिस चौकी सौ मीटर दूर थी और भरी हुई पिस्तौल मात्र सौ सेंटीमीटर ! रसिक लाल ने जल्दी से काउंटर में मुंडी गाड़कर बहीखाता उलटना शुरू कर दिया । चौबे जी ने तमंचा वापस खोंसा , साथ के लौंडों ने मिठाइयों के पॉलीथिन उठाये और काफिला दहेज़ में देने को प्रस्तावित नवकी बिना नम्बर की बोलेरो में बैठकर विवाह स्थल को रवाना हो गया ।
शाम को जब एमएलए साब का पर्सनल नम्बर से फोन आया , उससे पहले चौबे जी को जरको नही मालूम था कि एमएलए साब के नवके बन रहे अपार्टमेंट में आधा पैसा रसभरी स्वीट्स वाले अग्रवाल जी का लगा हुआ था और अग्रवाल जी का गोरका-पतरका लौंडा ही उस प्रोजेक्ट का होलसोल इंचार्ज था । आखिर राष्ट्र की सेवा में दिनरात रत विधायक जी के पास इन दुनियावी खरीद-बिक्री के कामों के लिये फुर्सत कहाँ..! एमएलए साहब ने उधर से हेलो कहा तो चौबे जी की आत्मा हिल उठी । वार्तालाप का सारांश ये रहा कि चौबे जी दस हजार रुपया तुरंत दुकान पर पहुंचा जाएँ और दोबारा इस तरह की समाजसेवा करते पाये जाने पर विधायक जी के पहलवान अपने मोज़े उनके मुंह में ठूंसकर जूतों से सर गंजा कर देंगे । सो चौबे जी का हाते पर जाना बंद , इसी क्रम में ठीकेदारी भी बंद !

इसी बेरोजगारी के आलम में एकदिन जब चौबे जी चौराहे पर पान घुलाते हुये चमचों को तत्वज्ञान बाँट रहे थे (अर्थात भरे चौराहे ओल छील रहे थे) , तभी मोबाइल की घण्टी बजी और उठाने पर उधर से महिला कंठ से एक सुमधुर आवाज आयी । बनाने वाले ने भी क्या-क्या दिलफ़रेब चीजें बना रखी है ! आवाज का जादू , बेहिस तन्हाई और बेरोजगारी का आलम ... चौबे जी भूल बैठे कि स्त्री नर्क का द्वार है । लड़की ने बताया कि अगर छोटू चौबे उसकी कंपनी से पचास हजार सालाना प्रीमियम की पालिसी कराते हैं तो उनकी जीवन की सुरक्षा के साथ साथ एक निश्चित रिटर्न का भी प्रावधान था । साथ ही साथ यदि वो ऐसी चार पॉलिसीज और करवा देते हैं तो कम्पनी के बिजनेस एसोसिएट भी बन जायेंगे ।
चौबे जी स्थितिप्रज्ञ युवक थे । अपने जीवन का उचित मूल्य समझते थे । उन्हें पता था कि ये निस्सार जीवन पचास रुपये के वन टाइम प्रीमियम के योग्य नहीं है , पचास हजार सालाना तो दूर की बात है ... किन्तु दिल कहाँ मानता है ! तय हुआ कि शाम को बैंक रोड स्थित गैलेक्सी रेस्टुरेंट में चौबे जी उक्त कन्या से मिलेंगे और उसकी झील सी आँखों में डूबकर जीवन बीमा के फायदे जानेंगे ।

चौबे जी जगलर थे ... दस सर वाले रावण !
उन्होंने अपने दसो सरों में अवस्थित दिमाग के घोड़े खोल दिये । यहां वहां से करके अपनी और अपने चमचा-ए-आजम 'पाठक' की पॉलिसी करायी और हर रिश्तेदार , परिचित के पीछे शेष दो पॉलिसियों के लिये पड़ गये । ऐसे ही एक जलकल के इंजीनियर साहब से बात करने के दौरान जब उन्होंने पॉलिसी की बात उठायी तो इंजीनियर साहब ने बड़ा अजीब मुंह बनाते हुये कहा "क्या यार चौबे जी ! आप भी किन फालतू चक्करों में पड़े हुये हैं ? हमारे साढू की जमीन राप्तीनगर में खाली पड़ी थी । उसपर कुछ मुर्गे वालों ने अवैध कब्जा कर रखा है । आप उसे खाली करवाइये और कुछ दिन बैठिये वहीँ , दावत सावत करिये ... मैं आपको एक लाख दिलवा दूंगा । ई सब पॉलिसी फॉलिसी मत बेचिये , भेड़िया मारकर खाता है , मांगकर नहीं !"
चौबे जी ने रोष में भरकर एकबार फिर अपनी कमर टटोली और तब जाकर उन्हें याद आया कि पॉलिसी के चक्कर में तमंचा भी चौबीस हजार में बिक गया है । चौबे जी खिसियाकर उठे और बाहर निकल गये । उन्हें पिक्चरों का वो सीन याद आ रहा था जब हीरो सारे गलत धंधे छोड़कर डॉकयार्ड पर कुली का काम कर रहा होता है और तभी सूट पहने उसका पुराना सेठ आकर बोलता है कि "बिजय.. ई का कर रहे हो ? बंदूक उठाने वाले हाथों में बोरियां नही जँचती!"
लौटानी में चौबे जी ने बुलेट कमरुद्दीन मिस्त्री के यहाँ रोकी और ताकीद की कि जल्दी से इसका ग्राहक ढूंढो । अब चौबे जी बुलेट बेचकर बाउजी का इंश्योरेंस करवाएंगे ।

ऐसी ही एक शाम को , जब हवा बारिश की बूंदों के बोझ से जरा भारी होकर बह रही थी ... मौसम गुलाबी हुआ जा रहा था ... रोज हो रही बारिश से पेड़ों के पत्ते धुले धुले दीखते थे । चौबे जी पाठक की टुटही स्प्लेंडर से व्ही पार्क पहुंचे तो लड़की को नयी स्कूटी पेप से आते देखकर आह्लाद से भर उठे । कम्पनी से मिले कमीशन से लड़की ने स्कूटी खरीदी थी । चौबे जी ने अपनी बिक चुकी बुलेट को आखरी बार बड़ी शिद्दत से याद किया और फिर इस स्वार्थी ख्याल को बड़ी बेरहमी से झटककर दिमाग से निकाल फैंका । क्या हुआ जो गाड़ी चली गयी ! पारुल की गाड़ी क्या परायी है ? आखिर वो होने वाली जीवन संगिनी थी उनकी !!
लड़की ने थैला खोलकर मिठाई निकाली और अपनी पतली पतली सुकुमार अंगुलियों से चौबे जी के मुख में ठूंस दी । छोटू चौबे अंगुलियों का स्वाद पाकर दैवीय आह्लाद से भर उठे । कुछ क्षण उन्होंने ऑंखें खोलना भी मुनासिब न समझा ।
थोड़ी देर बाद उन्होंने बताया कि "बेबी ... बड़ी मुश्किल से जीजाजी मान गए हैं । कल घर पर बुलाया है .. साथ में चलना और पॉलिसी का फॉर्म भरवाकर चेक ले लेंगे !"
लड़की की ऑंखें चमकी , मुखकमल से वॉव की ध्वनि उच्चारित हुयी और भावावेश में चौबे जी के गले से लिपट पड़ी ।

इस मुलाकात के तकरीबन एक हफ्ते बाद छोटू चौबे को अपने एक विश्वस्त मुखबिर से सुचना मिली कि पारुल भउजी कल रात्रि ग्यारह बजे अपने सीनियर मैनेजर अविनाश शर्मा के साथ होटल विवेक से बाहर निकलती देखी गईं है । सुबह से चौबे जी पचहत्तरों फोन और दर्जनों मैसेज पारुल को कर चुके हैं लेकिन न फोन उठा न जवाब ही आया । बहुत देर बाद एक मैसेज आया तो लिखा था "आप हमें भूल जाइये । हमारा ट्रांसफर बनारस हो गया है । अगले हफ्ते ज्वाइन भी कर लेंगे ।"

दोपहर को एक अनजान नंबर से फोन आया चौबे जी ने लपककर रिसीव किया तो उधर से एक लड़की थी । चौबे जी ने चारों पॉलिसी दे दी थी और अब उनको कंपनी ने अपना बिजनेस एसोसिएट घोषित कर लिया था ।
लड़की ने मखमली आवाज में कहा "मिस्टर अनिरुद्ध चतुर्वेदी ! मुबारक हो आपका एजेंसी कोड जनरेट हो गया है । कल ब्रांच पर आकर कलेक्ट कर लीजियेगा । अब आप शामिल हो गये हैं......"
"चूतियों की लिस्ट में न मैडम जी?" चौबे जी ने लड़की की बात बीच में काटकर रुद्ध गले से कहा !!


अतुल शुक्ल
गोरखपुर
Next Story
Share it