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भोजपुरी कहानिया

चंपवा कि राखी

चंपवा कि राखी
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भगेलू आज अपने को बहुत ही असहज पा रहा था । माई ने खटिया पर अधलेटी खाँसती हुई बोली ,
" ए भगेलू .. बेटा बहुत दिन हो गए , चंपवा की कोई खबर नही मिलती है । हमरा जिनगी अब कितने दिन का है । जब राम जी बोला लें तब ही जाना पड़ेगा । जबसे तोर बाबूजी गये .. ई दमा हमको दे गए कि जल्दी सरग में उनसे भेट हो । जा रे बचवा आज राखी है । खिस - पित का भी एगो उमर होता है । अब जा और ई महुअर का लाटा लेते जा , चंपवा को बहुत पसंद है । "

डेढ़ साल पहले ओकरे ससुराल से भगरासन भगत आये थे तो बोले कि .. का रे किसनवतिया ! कवना पियक्कड़ के हाथे चंपवा को बेच दी है ! दिन भर ताड़ी - गांजा से बेहोश रहता है । चंपवा गल के रांगा हो गई है । ऊपर से लरकोरी .. खाली हाड़ ही है अब ।

अब बहिन के घर पाँच साल बाद जाने कि सोंच में भागेलुआ अतीत में खो गया ।
चंपवा से में दो साल बड़ा था । दोनों साथ - साथ बनिहारी कर के पले - बढ़े थे । चंपवा छोटी थी फिर भी दु कट्ठा धान रोपने के बाद साँझ को खाना बनाती थी और कभी भी थकती नही थी । सबेरे माई से भी पहले उठ के खाना बना के साथ मे बिया उखरवाने चल देती थी । किसी भी पर्व - त्योहार पर कपड़े या किसी सिंगार के लिए हठ नही करती थी । कही किसी के यहॉँ से कुछ मिल जाये तो पूरा मुझे दे देती थी ।
और मैंने बहन से कभी यह नही बोला कि तुमने खाया या लिया कि नही ! घटे घर और दिन - रात के अलग - अलग टुकड़ों में विभाजित जिंदगी में सपनों का कोई मोल नही होता है ।
बाबूजी दमा के मरीज थे । चंपवा के कन्यादान की चिंता में जिया करते थे । कहते थे मुझसे कि जल्दी चंपवा का बियाह हो जाये तो मैं चैन से मर जाऊँगा । रहन - स्वभाव ..गुण .. रूप सब धरे रह गए चंपवा के और अगुआ ने पियक्कड़ से गांठ बंधवा बाबूजी का बोझा हल्का कर दिया । बाबूजी ने दहेज में गाय देना तय किया था क्योंकि बिक्रम के पास दु कट्ठा जमीन और अपना घर भी था । मैं तब अठारह साल का था । मैंने बाबूजी को बोला भी कि उस गाँव मे हमारे इयार - दोस्त है और कहते हैं कि बिक्रम पियक्कड़ है । बनिहारी से रुपया जो इकठ्ठा हुआ था उसे भी सेंध मार कर चोर ले गए । गाय और बकरी बेंचने के बाद भी दस हजार करजा हो गया ।अब बेटी बिदा तो हुई लेकिन दहेज के लिए झगड़ा हो गया और लड़के के पिता ने कसम लिया कि इज्जत कि बात है तो तुम्हारी बेटी को ले जा रहा हूँ लेकिन तुम कभी मुँह न दिखाना मुझे । और अब चंपवा नईहर कभी भी नही आयेगी ।बाबूजी बोझा हल्का करने में सब हार गए थे । अब हालात देख बेटी के कहते थे कि कवनो पूर्व जनम का चूक है और इसी हूक में चले गए दोगुना बोझ लेकर सरग में ।
हठी ससुर ने अपना प्रण तोड़ा । बाबूजी के मरने कि खबर सुन के आई थी ।
माई के आवाज ने भगेलू को अतीत के स्वपन से जगाया । नहा धो कर भगेलू चंपवा के पहुँच गया था । भाई को अचानक पाँच साल बाद देख चंपवा के नयन नीर सैलाब बन चुके थे और भगेलू उसके हालात को देख रो रहा था । सोंच रहा था .. सब भाग्य का दोष है । छोटे - छोटे भगिना - भगिनी .. भाई - बहन का रोना देख जोर - जोर से रोने लगे । बाल मन कितने आशंकाओं का केंद होता और कितना क्षणभंगुर भावुक भी । चंपवा माई के बारे में पुछ रही थी । राखी बांध रही थी तभी बिक्रम आया । नशे में लड़खड़ाते बोला ,
" यहाँ क्यो आये हो ? यहॉँ कोई तुम्हारी बहन नही है । तुमने दहेज वाला गाय अभी तक नही दिया । "
अश्रुधार लिए चंपवा भगेलू से बोली ,
" ई महुआ का लाटा क्यो ले के आये भैया तुम ? लाटा यात्रा के लिए अशुभ होता है । देखो हो गया न झगरा ! माई कि भी मति खराब है । "

भगेलू टुकुर - टुकुर बहन को निहार रहा था और लोर सहमति दे रही थी लाटा यात्रा पर अशुभ है । बिक्रम खटिया पर निढाल हो गया । चंपवा अब दाल - पूड़ी परोस रही थी भाई के लिए और भागेलुआ के गोदी में भगिना - भगिनी मामा - मामा कर रहे थे ।


सुधीर पाण्डेय
गोपालगंज
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