बदमाशी के पिटारे से......
BY Suryakant Pathak4 Aug 2017 3:46 AM GMT

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Suryakant Pathak4 Aug 2017 3:46 AM GMT
बात ओह बेरा के ह जब हम छोट बच्चा रहनी आ देखा देखी हमरो ट्यूशन पढे के इच्छा होखे त गाँव में ही हमार ट्यूशन के व्यवस्था हो गईल । रोज समय से पढे जाईं आ कुछ महीना ले खूब मन से पढे । घरे आके जवन टास्क मिले तवन रोज समय से पूरा होखे आ जल्दिए सर के चहेता बन गईनी । परिणाम ई भईल कि सर के घरे रखल कैरमबोर्ड हमरा चलते आऊर लईका लोग खातिर फ्री हो गईल आ अब हमनी के पढे के टाईम से आधा घंटा पहिले पहुँच जाई सन आ पढला के बाद आधा घंटा फेर खेल के आईं जा लेकिन एही खेल में अब पढाई से दूरी बने लागल । अब हम पढे ना जाईं , बस कैरम खेले जाईं आ जेह दिन टास्क ना बने ओ दिन बढिया से थुराई होखे हमार । हम रो - गा के ओही काम के ओजा करीं आ घरे खातिर फेर जवन मिले तवन ओहिजा पूरा होखे । एक दिन काम ना बनल रहे तबो सर दोसर काम देनी ओजा बनावे के आ इ हमरा इ डर मिलल कि जदि आज वाला आ काल्ह वाला काम दुनु बन के ना आईल त कस के पीटाई होई । हमरा इ बात का जाने काहे ना सुनाईल । हम घरे आके ओह दिन वाला टास्क बना लेनी आ पिछला दिन वाला छोड़ देनी । जब अगिला दिने गईनी त मन में इ रहे कि आज ना पीटाएम लेकिन हाय रे हमार भाग । सर के याद रहे आ जब पन्ना पलट के हमरा से पिछला दिन के काम ना बनला के कारण पूछनी त हम सीधा सीधा जवाब दे देनी कि इ ना बनल रहे तवना खाति हम काल्ह पीटा गईल रहनी , एही से ना बनवनी ह । सर हमार जवाब सुन के खिसिया गईनी आ हमार फेर ओह दिन देह पर गर्दा झरा गईल ।
असल में ओह घरी हमनी नियन हर लईका के मन में इहे होखे जवन काम ना बनल होखे आ जदि ओ खाति हमनी के पीटा जातानी सन त ऊ काम भविष्य में फेर कहियो ना बनी आ इहे बात हमरो मन में आ केहु से सीखीए के रहे लेकिन बहुत कम लोग एकरा के लागु करे । ओह दिन के पीटाई के बाद कुछ सुधार त भईल लेकिन फेर अब एगो नया उत्पात शुरू हो गईल ट्यूशन बीच बीच में ना जाए के । रोज घर से निकलीं पढे जाए खाति आ आधा दुर आके एक आदमी के घरे घुस जाईं टीवी देखे खाति । ओह घरी गाँव में लाईन ना रहे आ टीवी त एक्का दुक्का के घरे रहे ऊहो करियक्का आ उजरका चेहरा वाला जवन बैट्रो से चल जाए । ऊ लोग तनी शौकिन रहे लोग एसे ओ लोग के घरे रहे आ हमनी कुल्ही लईका उनका घरे जाके देखी जा ।
जब सर के इ पता लागल त उहाँ के फेर पीटनी आ घरे आके खबरो देनी । जब घर के लोग उहाँ के सामनहीं हमार भरपेट ठोकाई कईल लोग तब जाके इहो आदत छूटल ।
आज जब अपना ओर कबो कबो ताकेनी त सोचेनी कि का हम ऊहे प्रीतम हईं जवन लईकाई में रहे । Madhusudan सर , का हम ऊहे हईं जवन बचपन में रहनी , जवन घर से पईसा चोराके बेमतलब के खर्चा करे , खूब झूठ बोले , किसिम किसिम के बहाना बनावे , का हम ऊहे प्रीतम हईं ?
एगो बात आऊर बतावतानी कि जेकरा बदमाशी से घर-टोला के लोग तबाह रहे ऊ आज ओकरा पर खुश रहेला । जे रोज दोसरा के घरे टीवी देखे भाग जाओ , आज अईसन बा कि जल्दि केहु के घरे ना जाला । लईकाईं साचहूँ बड़ी मस्त रहे । कवनो पर्दा ना रहे , कवनो लाज ना रहे , कवनो रोक-टोक ना रहे , बस अपना मन में जवन आवे तवन करत रहे आदमी , बिना इ जनले कि एकर परिणाम का होई ।
आज तनि सेयान का हो गईल आदमी सबकुछ बदल गईल । सोच के बोलल , ठीक से चलल , लाज-लेहाज , इज्जत-आदर सब सीख गईनी जा ।
काहे के हमनी सेयान भईनी जा ।
प्रीतम पाण्डेय सांकृत
बचपन के पिटारे से
बसडिला , छपरा ।
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