लघु कहानी कलक्टर बेटा (पार्ट -2)
BY Suryakant Pathak25 July 2017 6:32 AM GMT

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Suryakant Pathak25 July 2017 6:32 AM GMT
हंसराज और उसकी पत्नी अपने अफसर बेटे के द्वारा अपने प्रति किये गये दुर्व्यवहार से छुब्ध होकर अपने गाँव आ गये। पूर्व की भांति हंसराज अपने काम में लग गया । अगले दिन हरिहर चाचा ने जब हंसराज को चमड़े का जूता सिलते हुए देखा तो पूछ बैठे -"अरे ! ये क्या हंस?
हंस ने हंसते हुए जवाब दिया -"सचमुच अब मेरा बेटा अफसर बन गया है । हम दोनों को दूर से देखते ही दौड़कर हमारे पास आया और गले लगा लि,,,,,,,,,,।"यह कहते हुए हंसराज का गला भर आया और फूट-फूट कर रोने लगा ।
हरिहर चाचा को पूरी कहानी समझते देर नहीं लगी ।उन्होने कहा -"जाने दो हंस ।दुखित मत हो ।तुमने पिता होने का फर्ज निभाया न।कोई बात नहीं ।चुप हो जाओ ।"
हरिहर चाचा ने हंसराज को गले लगाकर ढांढस बधाया ।
इधर तमाम आनंद राज ने अपने ही बैच की आईएएस अधिकारी लड़की से लभ मैरिज शादी कर लिया । दोनों हंसी-खुशी एक सफल जीवन व्यतीत कर रहे थे ।शादी के बहुत वर्षों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।
इन्होंने बेटे का नाम समीर रखा ।बेटा बडा होकर जब दादा-दादी के बारे में पूछने लगा ।
-"आनंद, चलो न गाँव! सास-ससुर का दर्शन कर लिया जाये।"
आनंद की पत्नी, मीरा ने अपनी इच्छा जाहिर की ।
-"मैं गांव नहीं जा सकता ।बाबू जी ने मुझे कसम दिया था कि मैं उनके जीते जी उनके सामने कभी न जाउंगा ।"
यह कहते हुए आनंद की आँखे भर आयीं ।और उसने अपनी पत्नी को सारी बात बता दिया ।
-"यह आपने बहुत गलत किया ।चलिए मुझे अपने सास-ससुर से अभी मिलना है ।"
मीरा के जिद के आगे आनंद को झुकना पड़ा ।
मगर जब ये दोनों जब गाँव पहुंचे तो पता चला कि इनके मां-बाप के मरे हुए कई साल हो गये ।
आनंद राज के पिता हंसराज की बात सत्य साबित हुई ।उन दोनो के आँख बंद होने के बाद ही बेटा देखने पहुंचा।
क्रमश :
नीरज मिश्रा
बलिया (उत्तर प्रदेश )।
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