लघु कहानी "ब्रह्मरेख"
BY Suryakant Pathak22 July 2017 6:30 AM GMT

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Suryakant Pathak22 July 2017 6:30 AM GMT
-"जी आपकी बेटी हमारी बेटी है ।लिजिए मुँह मीठा कीजिए और जाईये धूमधाम से शादी की तैयारी कीजिए ।"
मनोहर, लड़की के पिता के मुँह में एक लड्डू डालते हुए कहा।
-"फिर भी आप एक बार आप अपने बेटे, सत्यव्रत की भी इच्छा जान लेते । आजकल का माहौल अलग है।" लड़की वालों के तरफ से लड़की के पिता ने कहा ।
मैंने जो कह दिया वही ब्रह्मरेख है ।घर में मेरा ही निर्णय सर्वमान्य होता है । मेरे घर का सिद्धांत है कि शादी सम्बन्धी निर्णय अगर एक बार बड़े बुजुर्ग जो ले लेते हैं,लड़कों या लड़कियों को उस निर्णय का पालन करना पड़ता है ।
-"नहीं पिताजी !मैं यह शादी हरगीज नहीं कर सकता ।"अपने मकान के प्रकोष्ठ में अपने पिता, और लड़की वालों के बीच अपनी शादी सम्बन्धी बात को कई घंटो से घर के अंदर बैठकर सुनते हुए जब सत्यव्रत के सहन से बाहर हो गया तब उन सब के बीच अचानक आकर अपने मन की इच्छा जाहिर किया ।
अपने बेटे के द्वारा किये गये इस धृष्टता पर मनोहर अपने आपे से बाहर हो गया और जोर से चिल्लाने लगा -"क्या बात है? क्यों नहीं शादी करेगे? अच्छे रिश्तेदार हैं !लड़की भी योग्य और सुंदर है !
-"अभी मुझे अपना कैरियर बनाना है पिता जी ।मैं अभी से शादी करके फंसना नहीं चाहता ।"
सत्यव्रत ने अपने पिता के समक्ष अपनी बात रखी ।
तब मनोहर ने कहा -" मेरा तो नौकरी शादी के बाद ही लगा और तुम्हारे चाचाओं की भी ।"
आप लोगों के जमाने की बात दूसरी थी ।अब की दूसरी है ।
इतना सुनते ही मनोहर क्रोधित हो गया और अल्टीमेटम देते हुए कहा -" यदि तुमने मेरी बात नहीं मानी तो आज से अपनी रोजी-रोटी,रहने-सहने की व्यवस्था अलग कर लो ।"
सत्यव्रत -"ठीक है, पिता जी ।मैं अभी घर छोड़कर जा रहा हूँ ।" इतना कहकर सत्यव्रत अपना सारा आवश्यक सामन बैग में पैक करके घर से निकल गया।
नीरज मिश्रा
बलिया (उत्तर प्रदेश )।
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