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भोजपुरी कहानिया

लघु हास्य लेख "बबीतेश्वर पुराण की महिमा-2"

लघु हास्य लेख     बबीतेश्वर पुराण की महिमा-2
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बबीता के गोद में उसके पति, रामभरोसी ठाकुर (बी डी ओ ) अपना सर रखकर घास के तिनके को मुंह में रखते हुए पूछे -"एक बात पूछूँ??
बबीता जी-"पूछो न ।"
बी डी ओ के सर के बाल को सहलाते हुए बबीता जी ने अपने पति के आँखों मे अपनी आँख डालते हुए और चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लाते हुए बोली ।

बी डी ओ -"मुझसे शादी से पहले तुम्हारे जिंदगी में कोई और भी था क्या?यदि था तो बता दो! क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम दोनों के बीच कोई बात छिपी रहे ।झूठ मत बोलना ।तुम्हें मेरी कसम ।"
अपने चेहरे पर प्रश्नवाचक भाव लाते हुए बी डी ओ साहब पूछ बैठे ।
अचानक से अपने पति के द्वारा इस प्रकार से पूछे गये प्रश्न पर बबीता जी का बाल सहलाता हुआ हाथ रूक गया ।और वह सोच में पड़ गयीं कि क्या करें?कुछ पल बाद अपने पति से सब सच बताने लगी ।
"मेरे भूतपूर्व प्रेमी का शुभ नाम आलोक पाण्डेय है।हमारी और उनकी मुलाकात एक शादी समारोह में हुई थी ।वो पोथी पातरा लोटा लेकर पूजा करने आये थे मैं उस घर में लवनी(नाई) बन कर गयी थी ।सत्यनारायण भगवान का वो पाठ कर रहे थे ।उसी दरम्यान हमारी और उनकी आँखे चार हो गयीं ।"बबीता जी अपनी प्रेम कहानी सुना रहीं थी और बी डी ओ का चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था ।बबीता जी को बीच में ही रोकते हुए उसने बोला -"क्या आलोक से तुम्हारी अभी भी बात होती है? ?
बबीता जी -"जी लभ लेटर के द्वारा "।सर झुकाते हुए बबीता जी बोली ।
बी डी ओ -"तुम दोनों आपस में कब और कहां मिलते थे?
बबीता जी -"लगन के समय में उनके यजमान के घर और खेत में, ।"शर्माते हुए बबीता जी ने कहा।
गुस्से में लाल बी डी ओ ने बबीता जी का झोंटा पकड़र घसीटते हुए अपने लाॅन से बाहर कर दिया और बोला -"जाओ अब उसी के साथ रहो ।"

नीरज मिश्रा
बलिया ।
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