कंता पहलवान
BY Suryakant Pathak15 July 2017 4:35 AM GMT

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Suryakant Pathak15 July 2017 4:35 AM GMT
दो-तीन दशक पहले गांवों में पहलवानी को एक बड़े शौक के रुप में लिया जाता था। हर गांव में दो-चार समृद्ध और सम्पन्न लोग अपने घर में एक पहलवान काढ़ते थे। होता यूँ था कि घर में दूध-दही की प्रचुरता के कारण सम्पन्न घर का मुखिया, अपने तीन-चार बच्चों में से एक ह्ष्टपुष्ट और मरकहे टाइप लड़के को पहलवानी के लिये छांट लेता था।
ऐसी ही एक कहानी सुना रहा हूँ कंता पहलवान की-
कंता छोटे कद के थे। गोल-मटोल और फरहर। कंता के बाऊ ने कंता में वह संभावना तलाश ली और उनके दोनों हाथ और गले में काला धागा और निंगोटा पहनाकर उस नन्हें पहलवान का दुनिया से परिचय कराया।
भोर से ही कंता के बाऊजी कंता को साजने में जुट जाते थे । दण्ड, बैठक, मुग्दर, बीम खींचना, दौड़, कुश्ती और मिट्टी लेपन के बाद शुरू होती थी कंता के खुराकी की व्यवस्था।
कंता पहलवान के जिम्मे दैनिक क्रियाओं से अलग केवल दो ही काम होता था- एक वर्जिश और दूसरी उनकी खुराकी। कंता के लिये घर में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में एक बड़ा हिस्सा आरक्षित होता था। यदि घर में दस लीटर दूध की उपलब्धता हो तो लगभग छह लीटर कंता गटकते थे और चार लीटर में पूरा परिवार, बच्चे, चाय-पानी, नात-रिश्तेदार, खीर दही सब होता था।
इसी तरह दो किलो मुर्गा में एक किलो कंता पहलवान के हिस्से में आता और एक किलो में पूरा परिवार, कुक्कुर-बिलार सब रहते। ऐसी बहुत सी विशिष्ट खाद्य सामग्रियाँ भी थी जो केवल कंता के लिये उपलब्ध करायीं जातीं जिसमें, मेवे, फल, घी आदि प्रमुख था।
परिवार के सभी सदस्यों का आधा हिस्सा कंता पहलवान को समर्पित था। कुछ दिनों के अन्दर ही सभी का हिस्सा कंता पहलवान के सीने, जांघों और बल्लों में चटकने लगा।
कंता पूरे परिवार में अलग और मजबूत दीखने लगे। कंता का पूरा परिवार कंता को देखकर फूले नहीं समाता और दिनभर उसके शरीर और ताकत के कसीदे पढ़ता। जब कंता कुश्ती में अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को पटखनी देते तो पूरा परिवार खुशी से चिल्लाता और मुंह से नगाड़े बजाता। कभी पटखनी खाने पर पटखनी केवल कंता पहलवान के हिस्से में नहीं आती वह पराजय पूरे परिवार की होती। परिवार के प्रतिष्ठा की होती।
धीरे-धीरे कंता पहलवान अपने पहलवानी और ताकत के बलबूते पूरे गांव-जवार में चटक गये। गाँव के लोग सलामी ठोंकने लगे। गांव के नये लड़के उनकी चेलाई करने लगे। कोई उनके लिये बादाम घिसता कोई जाघों पर तेल मलता तो कोई सूर्ती ठोंकता।गांव की पंचायत, झगड़े, परधानी आदि में कंता की अच्छी दखल हो गई। खेत मेड़ में एक-आध हाथ बढ़ जाने पर भी पर-पट्टीदार डर के मारे चुप्पी साध जाते।
कंता के बाऊजी और दोनों भाई भी कंता के शक्ति को हथियार बनाकर चौराहे पर दागते रहते और चाय-पकौड़ी उड़ाते।
वैसे ऐसा नहीं होता कि आपके घर में रखी हुई चाकू जिस पर धार भी आप ही लगाते हों उससे कभी आप, जख्मी न हुए हों। हुआ भी वही घर के अन्दर देवरानी-जेठानी के झगड़े की लपट बाहर बरामदे तक आ गई। कंता और उनके भाई भी कुछ हक-हिस्से की बात पर उलझ पड़े, मामला तनी-तना का आ गया। लेकिन कंता ठहरे पहलवान एक ही हाथ में उनके बड़े भाई जमीन पकड़ लिये बीच बचाव में कंता के भतीजे और दूसरे भाई भी पांच-सात लाठी खाकर बखार में शरण लिये। कंता के बाऊजी मौके की नजाकत भांप नहीं पाये। बेचारे खटिया पर से दौड़ कर आये लेकिन कंता द्वारा ऐसा हूरपेटे गये कि खटिया पर लाद कर बंगाली दवाखाना ले जाना पड़ा। जेठानी डरके मारे कमरे की सीकड़ चढ़ा कर थर-थर कांपने लगीं। कंता की ललकार से पूरा परिवार अपनी जान लेकर भागा।
कंता के भाई और बाप को तेहरी चोट आयी पहली लाठी की, दूसरे अपने खून से पिटने की और तीसरा जो सबसे अधिक दुखदायी थी वो थी अपने हिस्से की खुराक दूसरे के शरीर में देकर खुद पिट जाने की।
गांव जवार भी शक्ति की उंगली थाम लिया। लोग डर के मारे विरोध नहीं किये। पट्टीदार मन ही मन आह्लादित थे। चौराहे से लेकर बाग तक कंता पहलवान की वीर गाथा गूंजने लगी।
वैसे,ऐसी परिस्थितियाँ तकलीफजदा करने वाली होती हैं। जब आप द्वारा दिया गया पोषण, कुल्हाड़ी बनकर आपकी जड़ें काटने लगे और आप विशाल वृक्ष की तरह लाचार होकर कुल्हाड़ी की प्रहार गिनते रहें, सहते रहें, घुटते रहें और कटते रहें।
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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